PFI नेताओं के खिलाफ कार्रवाई एक सही वक्त पर उठाया गया कदम है
2006 में जिस PFI की स्थापना हुई, अब उसकी जड़ें कम से कम 16 राज्यों में फैल चुकी हैं और छोटे-छोटे शहरों में इसका काडर बन चुका है।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने गुरुवार की सुबह एक देशव्यापी अभियान में प्रवर्तन निदेशालय (ED) और पुलिस के साथ मिलकर 15 राज्यों में 202 जगहों पर छापेमारी की। कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन पीपुल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके साथ जुड़े संगठन SDPI के 100 से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया।
गुरुवार को दिल्ली, मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे, जयपुर, उदयपुर, बारां, बहराइच, कानपुर, लखनऊ, औरंगाबाद, पुणे, कोल्हापुर, बीड, परभनी, नांदेड़, जलगांव, जालना, मालेगांव, दक्षिण कन्नड़ा, मंगलुरु, उल्लाल, कोप्पल, दावणगेरे, शिवमोग्गा, मैसूर, बेंगलुरु, मल्लापुरम, तिरुवनंतपुरम, एर्नाकुलम, चेन्नई और मदुरै में छापेमारी की गई।
गिरफ्तार लोगों में PFI के अध्यक्ष ओ.एम. अब्दुल सलाम, इसके उपाध्यक्ष ई.एम. अब्दुल रहीमन, राष्ट्रीय सचिव वी.पी नजरुद्दीन एल्लाराम, केरल राज्य प्रमुख सी. पी. मोहम्मद बशीर, प्रो. पी. कोया और SDPU के अध्यक्ष ई. अबूबकर शामिल हैं। केरल हाई कोर्ट द्वारा हड़तालों पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद PFI ने शुक्रवार को सुबह से शाम तक राज्यव्यापी ‘केरल बंद’ का आह्वान किया गया था।
शुक्रवार को केरल के कई शहरों में तोड़फोड़ और हिंसा की कई घटनाएं हुई। कई शहरों में बंद समर्थकों ने केरल राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों, ट्रकों और अन्य निजी गाड़ियों पर पथराव किया । सैकड़ों प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने एहतियातन हिरासत में ले लिया।
NIA ने अदालतों के समक्ष अपनी रिमांड एप्लिकेशन में आरोप लगाया है कि PFI राष्ट्रविरोधी एवं आतंकी गतिविधियों में लिप्त था और अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा, इस्लामिक स्टेट समेत कई अन्य आतंकवादी संगठनों में शामिल होने के लिए मुस्लिम युवाओं का ब्रेनवॉश कर रहा था। अपने रिमांड एप्लिकेशन में NIA ने आरोप लगाया है कि PFI नेता तकरीरों और रैलियों के जरिए गैर-मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैला रहे थे, और नफरत भरे संदेश फैलाने के साथ-साथ PFI की गतिविधियों के बारे में गोपनीय जानकारी प्रसारित करने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का गलत इस्तेमाल कर रहे थे। PFI नेताओं के दफ्तरों और घरों से कई मोबाइल फोन और कंप्यूटर डिवाइसेज जब्त की गई हैं।
NIA द्वारा PFI पर तैयार किए गए एक डोजियर के मुताबिक, कट्टरपंथी संगठन का मकसद कई तरह की स्ट्रैटिजी अपनाकर भारत में तालिबान ब्रैंड के इस्लाम को लागू करना था। यह अपने कैडर और केरल के मजेरी, मलप्पुरम जिले में स्थित सत्यसारिणी मरकजुल हिदायत एजुकेशनल ऐंड चैरिटेबल ट्रस्ट जैसे संस्थानों के जरिए कट्टरपंथी इस्लामवाद का प्रचार कर रहा था।
PFI नेताओं और कार्यकर्ताओं के खिलाफ देशव्यापी छापेमारी में 300 से ज्यादा अधिकारी शामिल थे। अकेले NIA अधिकारियों ने 93 जगहों पर तलाशी ली और PFI के 45 नेताओं को गिरफ्तार किया। NIA अधिकारियों ने कहा कि कि ये छापे गैरकानूनी गतिविधियों के सबूत मिलने के बाद पूरी तैयारी के साथ मारे गए।
PFI के खिलाफ इस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन मिडनाइट’ नाम दिया गया था। आधी रात के बाद करीब एक बजे यह ऑपरेशन शुरू हुआ और सुबह 5 बजे तक खत्म हो गया। इस पर नजर रखने के लिए गृह मंत्रालय में एक कमांड सेंटर बनाया गया था। ऑपरेशन के बेहतर कोऑर्डिनेशन के लिए देश के 6 अलग-अलग इलाकों में जोनल कमांड कंट्रोल सेंटर भी बने थे। पूरे ऑपरेशन पर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल सीधी नजर रख रहे थे, और इसकी पूरी जानकारी गृह मंत्री अमित शाह को दी जा रही थी।
पूरे ऑपरेशन को बेहद कॉन्फिडेंशियल रखा गया था। NIA के एक ADG लेवल के अधिकारी, 4 IG और 16 SP को इस ऑपरेशन को पूरा करने का जिम्मा दिया गया था। NIA के 200 अधिकारियों की टीम को देश के अलग-अलग हिस्सों में छापेमारी के लिए भेजा गया था। कुछ राज्यों के एंटी टेरर स्क्वॉड को भी इसमें शामिल किया गया था। कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने के लिए 5 हजार से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे।
PFI के सबसे ज्यादा 22 नेता केरल से गिरफ्तार किए गए। कर्नाटक और महाराष्ट्र के संगठन के 20-20 नेताओं को गिरफ्तार किया गया। तमिलनाडु से 10, उत्तर प्रदेश से 8 और असम से 9 नेताओं को गिरफ्तार किया गया। छापेमारी के दौरान कई संदिग्ध दस्तावेज, हथियार और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बरामद हुई हैं।
पूरे ऑपरेशन को गुप्त रखा गया था और छापे के बारे किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। फिर भी NIA और स्थानीय पुलिस अधिकारी यह देखकर हैरान रह गए कुछ ही वक्त में सैकड़ों लोग उस जगह पर इकट्ठे हो गए जहां रेड हो रही थी। जब PFI के नेताओं को हिरासत में लेकर गाड़ियों में ले जाया जा रहा था तो सैकड़ों लोग विरोध कर रहे थे। इससे इस बात का अंदाजा लगा कि PFI का नेटवर्क और कम्युनिकेशन सिस्टम कितना मजबूत है। तमिलनाडु के डिंडीगुल, केरल के मल्लपुरम, कर्नाटक के कलबुर्गी और महाराष्ट्र के नासिक जैसे दूर-दराज के इलाकों में सैकड़ों PFI समर्थक जमा होकर इन गिरफ्तारियों का विरोध करने लगे।
2006 में जिस PFI की स्थापना हुई, अब उसकी जड़ें कम से कम 16 राज्यों में फैल चुकी हैं। इन 16 राज्यों के छोटे-छोटे शहरों में PFI का काडर बन चुका है। छापा मारने से पहले NIA ने PFI की पूरी कुंडली खंगाल ली थी। एजेंसी ने एक डोजियर तैयार किया था जिसमें हर नेता और हर दफ्तर के बारे में पूरी जानकारी थी। PFI की फंडिंग कहां से हो रही है, कितना पैसा आ रहा है और कहां खर्च हो रहा है, सब पता लगा लिया गया था।
NIA के अफसरों को मालूम था कि छापेमारी होने के साथ ही विरोध शुरू हो जाएगा, और ऐसा ही हुआ भी। कर्नाटक के मंगलुरु, कलबुर्गी और बेंगलुरु के साथ-साथ केरल के विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। NIA ने यह भी पाया कि PFI नेता केवल पढ़े-लिखे मुस्लिम नौजवानों की भर्ती करते हैं ताकि उनका ब्रेनवॉश किया जा सके। यह संगठन भले ही हाई-फाई टेक्नॉलजी से दूर रहता है लेकिन इसका सूचना तंत्र बहुत मजबूत है।
NIA के डोजियर में इस बात का भी जिक्र है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) लागू होने के बाद उत्तर भारतीय राज्यों में PFI ने कैसे अपनी गतिविधियां बढ़ा दीं। PFI उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में ऐक्टिव हो गया, और दिल्ली में शाहीन बाग के विरोध प्रदर्शन और दिल्ली दंगों में PFI का एक बड़ा रोल सामने आया। इस साल जून में कानपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ नूपुर शर्मा के बयान के बाद हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में भी PFI का हाथ पाया गया था।
PFI समर्थकों ने गुरुवार को लखनऊ और कानपुर में विरोध प्रदर्शन किया। राजस्थान में पिछले एक साल में सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाएं हो चुकी हैं। करौली में एक हिंदू जुलूस पर हमला किया गया, जोधपुर में दंगे जैसी स्थिति पैदा हो गई और उदयपुर में एक हिंदू दर्जी कन्हैयालाल का सिर कलम कर दिया गया। इन सभी घटनाओं में PFI का कनेक्शन पाया गया। NIA ने उदयपुर, जयपुर, जोधपुर, बारां और कोटा में PFI के ठिकानों पर छापेमारी की और इसके नेताओं को गिरफ्तार किया। इसके तुरंत बाद कोटा, बारां और जयपुर में विरोध प्रदर्शन हुए।
NIA अफसरों का कहना है कि PFI की विचारधारा वही है जो सिमी और उसके बाद इंडियन मुजाहिदीन की रही है। लेकिन काम करने के तरीके और रणनीति के मामले में PFI, सिमी और इंडियन मुजाहिद्दीन से बहुत अलग है। PFI की रणनीति है कि टेक्नॉलजी में माहिर, कानूनी पेचीदगियों के जानकार, पढ़े-लिखे मुस्लिम नौजवानों की ऐसी फौज तैयार की जाए जो कानूनी पचड़े में फंसे बिना, भारत में इस्लामिक तौर तरीके लागू कराने के लिए लड़े।
मैंने जांच एजेंसियों के सीनियर अफसरों से पूछा कि PFI को बैन क्यों नहीं किया जा रहा। जवाब यह मिला कि सिमी को बैन करके कोई फायदा नहीं हुआ, इसकी जगह PFI बन गया। PFI ने पहले ही अपने कई संगठन बना रखे हैं और यह खुद सामाजिक संगठन के तौर पर रजिस्टर्ड है। SDPI इसका पॉलिटिकल विंग है, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया PFI का स्टूंडेंट विंग है। ये सारे अलग संगठन के तौर पर रजिस्टर्ड हैं। PFI ने ऑल इंडिया इमाम काउंसिल के नाम से मौलानाओं और मौलवियों का एक अलग संगठन बना रखा है। गैर-मुसलमानों का इस्लाम में धर्मांतरण कराने के लिए इसने केरल में सत्यसारिणी एजुकेशनल एंड चैरिटेबल ट्रस्ट खोल रखा है। महिलाओं के लिए इसने नेशनल वुमेन फ्रंट बनाया हुआ है। इसी तरह एम्पावरमेंट फ्रंट ऑफ इंडिया, रिहैब इंडिया फाउंडेशन, नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स और ऑल इंडिया लॉयर्स काउंसिल को भी PFI नेतृत्व ने रजिस्टर्ड करवाया है।
सीनियर अफसरों ने मुझसे कहा कि चूंकि PFI के इतने सारे संगठन हैं, इसलिए इन सभी पर प्रतिबंध लगाना अक्लमंदी की बात नहीं होगी। इसीलिए इन संगठनों की गतिविधियों को काबू में करने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि देश विरोधी गतिविधियों को रोकने के दो तरीके हैं। पहला, अधिकांश सक्रिय सदस्यों को सलाखों के पीछे डालना, और दूसरा, पैसा मिलने के रास्ते बंद कर देना।
जब PFI के वित्तीय स्रोतों के बारे में जांच शुरू हुई तो जो बातें सामने आईं, उन्हें देखकर अफसर भी हैरान रह गए। पता लगा कि PFI को विदेशों से बेशुमार पैसा मिल रहा है। PFI के बड़े नेता अक्सर सऊदी अरब, UAE, कतर, कुवैत और इराक जैसे खाड़ी देशों का दौरा करते हैं। PFI के नेता तुर्की का दौरा भी कई बार कर चुके हैं। उन्हें इन सभी देशों से पैसे मिलते हैं।
ED अफसरों को इस बात के सबूत मिले हैं कि PFI से जुड़े बैंक खातों में 60 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम जमा हुई थी। इनमें से 30 करोड़ रुपये तो कैश ही जमा हुए। पिछले महीने ED ने PFI के 22 बैंक खाते फ्रीज कर दिए थे। पुराने पुलिस अफसर बताते हैं कि PFI के लोगों को पकड़ना, सबूत जुटाना आसान नहीं है क्योंकि इसका नेतृत्व अपने समर्थकों को सबसे पहले यही सिखाता है कि सबूत कैसे मिटाए जाते हैं और बिना सबूत छोड़े काम कैसे किया जाता है।
PFI पर हुई छापेमारी को लेकर मुख्य धारा के राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया आमतौर पर सतही रही। ज्यादातर पार्टियां PFI को अपने सियासी फायदे के दायरे में देख रही हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने इस मामले की गंभीरता को समझा और एक सधी हुई और ठोस कार्रवाई की।
PFI एक मजबूत संगठन है जिसका काफी ज्यादा राजनीतिकरण हो चुका है। यह नए जमाने के डिजिटल नेटवर्क का दुरुपयोग करने में माहिर है। इसके पास फंड की कोई कमी नहीं है। जब सिमी पर प्रतिबंध लगाया गया तो उसके ज्यादातर नेता जो अंडरग्राउंड हो गए थे, वे फिर से सामने आए और उन्होंने PFI का गठन किया। नए संगठन ने सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने के अलावा मुसलमानों को संगठित करने, युवाओं को बरगलाने और उन्हें हथियारों और डिजिटल डॉमिनेशन की ट्रेनिंग देने का काम शुरू किया।
CPM और RSS के कई कार्यकर्ताओं की नृशंस हत्याओं में PFI का नाम सामने आया। 2012 में केरल सरकार ने हाई कोर्ट में एक हलफनामा दिया था जिसमें केरल की 27 सियासी हत्याओं में PFI का हाथ होने का दावा किया गया था। इसी एफिडेविट में केरल सरकार ने बताया था कि 2012 तक अकेले केरल में हुई 106 सांप्रदायिक घटनाओं में PFI का कनेक्शन पाया गया था। 2015 में PFI के 13 कार्यकर्ताओं को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। PFI के इन कार्यकर्ताओं ने पैगंबर साहब के अपमान का आरोप लगाकर केरला के एक प्रोफेसर का हाथ काट डाला था।
दस्तावेज बताते हैं कि PFI भारत को इस्लामिक मुल्क बनाना चाहता है और उसने इसके लिए 2047 की डेडलाइन तय कर रखी है। PFI ने विजन 2047 नाम का डॉक्यूमेंट तैयार किया है जिसमें भारत को इस्लामिक मुल्क बनाने के लिए क्या-क्या करना है, वह विस्तार से बताया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे अपने काडर को सरकारी नौकरियों में घुसाना है, कैसे बड़ी संख्या में अपने सदस्यों को फौज में भर्ती कराना है, और कैसे सरकारों में अपनी भागीदारी बढ़ानी है। PFI नेताओं पर देशव्यापी छापा उन देश विरोधी ताकतों को खत्म करने के लिए सही समय पर उठाया गया एक कदम है, जो भारत को तोड़ना और इसे कमजोर करना चाहते हैं