ग्वालियर : दवा बाजार में भी जमकर हो रही जीएसटी की चोरी, बिना बिल के ही चल रहा काम

जीएसटी विभाग नहीं लेता सुध …

ग्वालियर. दवा कारोबार में भी जमकर जीएसटी कर अपवंचन जारी है। बिना बिल के ही दवाओं को मंगाकर ही बाजार में खपा दिया जाता है। आगरा और दिल्ली से दवाओं की बड़ी खेप भेजकर इस तरह की कर चोरी की जाती है लेकिन जीएसटी विभाग कभी भी इनकी जांच करने की सुध भी नहीं लेता। कई बार दवाओं की कम बिलिंग करके भी दवाएं खपाई जाती हैं।

कई दवा कारोबारियों पर जीएसटी नंबर ही नहीं

कर सलाहकार ….. अग्रवाल ने बताया कि दवाओं के होलसेल और रिटेल प्राइज में काफी अंतर होता है। फुटकर कारोबारी एमआरपी पर दवाइयां बेचते हैं और अधिकांश ग्राहकों को बिल नहीं देते हैं। दवाओं पर 5 और 12 फीसदी जीएसटी लगता है, कुछ दवाइयों पर 18 फीसदी जीएसटी भी लगता है। खास बात यह है कि फुटकर विक्रेता जो अपना जीएसटी रिटर्न दाखिल करते हैं इनमें से अधिकांश पर जीएसटी नंबर ही नहीं है। ऐसे दुकानदार परचेज प्राइज में अपना मुनाफा जोडकऱ रिटर्न दाखिल कर देते हैं, जबकि उन्हें एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) पर रिटर्न दाखिल करना चाहिए। एक्सपायर दवाइयों पर कंपनी वाले बिना जीएसटी का क्रेडिट नोट जारी करते हैं, इससे भी टैक्स की चोरी की जाती है। इस कारण से फुटकर विक्रेता टैक्स रिवर्स नहीं करते हैं और खरीदी की पूरी आइटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) क्लेम कर लेते हैं।

फैक्ट फाइल

● हर माह शहर में 50 करोड़ से अधिक का दवा का व्यापार होता है।

● 700 से अधिक मेडिकल स्टोर हैं जिले में।

● 300 से अधिक थोक दवा कारोबारी

जीएसटी का नुकसान होता है

दवाओं के बिना बिल के माल बिकने से जीएसटी का नुकसान होता है क्योंकि कम्पनी से माल बिल से ही सप्लाई होता है किंतु खुले बाजार में टर्नओवर से बचने के लिये बिना बिल के माल खरीदा व बेचा जाता है। इससे काफी कर अपवंचन हो जाता है।

 अध्यक्ष, ग्वालियर केमिस्ट एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स फेडरेशन

19 सितंबर को मिला था बड़ा स्टॉक

19 सितंबर को क्राइम ब्रांच और ड्रग विभाग की टीम ने मिलकर बहोड़ापर स्थित मेवाती मोहल्ला में एक घर में छापा मारा था, जहां से बिना बिल के बड़े पैमाने पर दवाओं का स्टॉक किया जाना पाया गया। इसमें मनोज गोयल नामक व्यक्ति आगरा की मार्केट से अवैध रूप से दवाओं को बिना बिल के लेकर आ रहा था और मेवाती मोहल्ले स्थित अपने घर पर स्टॉक कर रहा था। इन दवाओं को ग्वालियर की मार्केट में खपाया जाना था।

सैंपल की दवाओं में ऐसे चलता खेल

जीएसटी लागू होने के बाद से दवा कंपनियों ने खेल यह किया कि सैंपल की दवा पर भी कीमत लिख दी, लेकिन जब यह दवा कंपनी से बाहर निकली तो उसे सैंपल की दवा दर्शाया गया। कागजों में इसकी कीमत शून्य दिखाई। कीमत शून्य होने की वजह से जीएसटी जमा नहीं किया गया।

 

 

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