जिंदगी एक सफर है सुहाना, लेकिन यहां कब गड्ढा हो, किसने जाना?

हर घर कुछ कहता है, इसमें कौन रहता है। कुछ साल पहले एक पेंट कम्पनी का ये स्लोगन काफी मशहूर हुआ था। उसी तरह देखा जाए तो हर सड़क कुछ कहती है, पब्लिक कैसे सहती है! कच्ची सड़क, पक्की सड़क, सीधी सड़क, टेढ़ी सड़क- सब की खासियत एक। उस पर से गुजरते हुए झटके लगेंगे अनेक। वैसे तो जो सरकार ना दे पाए, वो प्राइवेट में लोग अपनाएं। बिजली नहीं तो जनरेटर ले आओ, पानी नहीं तो टैंकर। मगर सड़क का क्या?

चाहे उस पर अमीर चलता हो या गरीब, सड़क तो एक ही है। हाल ही में अहमदाबाद-मुम्बई राष्ट्रीय महामार्ग पर उद्योगपति साइरस मिस्त्री और उनके सहयात्री दुर्घटनाग्रस्त हुए। मर्सीडीज गाड़ी में होते हुए भी, वो बच ना पाए। अब कहा जा रहा है उन्होंने सीटबेल्ट नहीं पहनी थी। गाड़ी तेज रफ्तार में थी। लेकिन इसी सड़क पर पिछले नौ महीनों में 262 दुर्घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 62 लोगों की जान गई। लेकिन प्रशासन की आंखें अब खुली हैं, जब एक जानी-मानी हस्ती का निधन हुआ।

अब तक सिर्फ जांच-पड़ताल चल रही है, मगर इतने हो-हल्ले के बाद आशा है कुछ सुधार भी होगा। ये विचारधारा सिर्फ सड़कों के मामले में नहीं, हर विषय पर विचार-विमर्श चलता रहता है। नतीजा कुछ निकलता नहीं। निजी जीवन में भी हम सोच में ही रह जाते हैं, कुछ सुधार करने से कतराते हैं। जब पानी सिर के ऊपर से निकल जाता है, तब हम हाथ-पैर मारना शुरू करते हैं। अब स्वास्थ्य का मामला ले लीजिए। दिल के धड़कने वाली सड़क- यानी हमारी आर्टरीज पर- हम मनमानी स्पीड पर चलते हैं।

जब दुर्घटना हो जाती है, तब डॉक्टर का उपदेश हमारे दिमाग पर कुछ असर करता है। फिर करेले का जूस, सुबह-शाम सैर और प्राणायाम हम शुरू करते हैं। वैसे जिंदगी एक सफर है सुहाना, लेकिन यहां कब गड्ढा हो, किसने जाना? जिस तरह अच्छी सड़क बनाने के लिए सही मात्रा में अच्छा मटैरियल चाहिए, हमारे शरीर का भी वही हिसाब है। फर्क सिर्फ ये है कि सड़क में कांट्रैक्टर और मिले-जुले नेता-लोग हमें धोखा देते हैं, अपनी हेल्थ के मामले में हम अपने आप को धोखा देते हैं।

इसी तरह, सफलता भी एक सड़क की तरह है। टॉप पोजिशन में पहुंचने वाले बड़ी-बड़ी गाड़ियों में सफर करते हैं। अपनी उपलब्धि का नशा कुछ ऐसा चढ़ जाता है कि उन्हें कुछ सुध-बुध नहीं रहती। उनके लिए नियम कोई मायने नहीं रखता। चाहे उनकी गाड़ी के नीचे कोई कुचल भी जाए, तो कोई बड़ी बात नहीं। मैं असली गाड़ी की नहीं, आचार और व्यवहार की बात कर रही हूं। देखा जाता है कि सबसे अमीर घरों में नौकरों की सबसे ज्यादा बेइज्जती होती है। उल्टे तरीकों से कमाए हुए पैसों से दान-दक्षिणा दी जाती है।

बैंक से लिए कर्जे के सहारे हवा महल खड़े होते हैं। लेकिन एक ना एक दिन गाड़ी जवाब देगी और उस दिन वो लोग दुनिया में बिलकुल अकेले होंगे। इस सड़क पर और भी वाहन हैं, जैसे टू-व्हीलर, और खासकर मोटरसाइकिल वाले। इनका जिक्र मैं इसलिए कर रही हूं, क्योंकि वाहन छोटा है पर शक्ति है बड़ी। तकलीफ ये है कि इनको शॉर्टकट लेने की आदत है। दो गाड़ियों के बीच अगर छोटा-सा गैप है तो उसमें से निकलना जरूरी है।

चाहे जान का जोखिम क्यों न हो। मेरी छोटी-सी गाड़ी पर मोटरसाइकिल से कई स्क्रेच भी लगे हैं। पहले गुस्सा आता था, अब लगता है चलो ठीक है। ये लोग शायद जीवन में आगे बढ़ने की आकांक्षा रखते हैं। उनका कोई बॉस होगा जो दो मिनट लेट पहुंचने पर डांटेगा। जाने दो। ऐसा करने से मैंने पाया कि मैं खुद अंदर से काफी शांत हो गई। तो मेरे लिए ड्राइविंग अब एक आध्यात्मिक अहसास है।

हर मोड़ पर मेरे धैर्य और संयम की परीक्षा होती है। 98% नम्बर से मैं पास होती हूं। 2% गुस्सा अब भी आता है। कि क्यों कोई गलत साइड से ओवरटेक करता है। क्यों ट्रक से इतना धुंआ निकलता है। क्यों टूटी-फूटी सड़कों पर इंसान दम तोड़ रहे हैं। क्यों कुछ लोग हमारा भविष्य खरीद रहे हैं। ये सृष्टि का अद्भुत खेल है, इसमें कोई पास कोई फेल है। मगर चीटिंग करने वालों की हार क्यों नहीं होती। या फिर भगवान को प्यारा वही, जिसकी उमर छोटी।

मेरे लिए ड्राइविंग अब आध्यात्मिक अहसास है। हर मोड़ पर मेरे धैर्य और संयम की परीक्षा होती है। 98% नम्बर से मैं पास होती हूं। 2% गुस्सा अब भी आता है। कि क्यों कोई गलत साइड से ओवरटेक करता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *