134 मौतों के जिम्मेदार हैं ये 5 कारण, क्या यह घटना आखिरी होगी…कोई करेगा वादा?

मोरबी की घटना क्या आखिरी होगी? क्या जिम्मेदार ऐसी घटना की कभी न होने का वादा कर पाएंगे? क्या सरकारें इस घटना से कुछ सबक लेंगी या फिर इसी तरह की किसी घटना के होने का हम इंतजार करें?

गुजरात के मोरबी में हुए हादसे में देश-दुनिया स्तब्ध है. माच्छू नदी पर बना यह पुल कैसे टूटा यह जांच का विषय है लेकिन एक बात साफ है वो ये कि इस पुल से जुड़े अफसर और विभागों ने अपना काम ठीक से नहीं किया. 134 लोगों की जान लेने के गुनहगार कोई नये लोग नहीं हैं. ये वही पुराने लोग हैं जो कभी अस्पतालों, सिनेमाघरों और बिल्डिंगों आदि में हुए हादसों के लिए जिम्मेदार होते रहे हैं. आग लगती है तो फायर डिपार्टमेंट से एनओसी नहीं होती है, बिल्डिंग गिरती है तो फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं होता, भगदड़ मचती है तो जरूरत से अधिक लोग परमिट किए गए होते हैं.

1. ओरेवा जैसी कंपनियां क्यों भारी पड़ रही स्थानीय प्रशासन पर ? क्या है इलाज?

बताया जा रहा है कि मोरबी में 142 साल पहले बने इस सस्पेंशन ब्रिज को एक निजी फर्म द्वारा सात महीने के मरम्मत कार्य के बाद दिवाली के अगले दिन जनता के लिए फिर से खोल दिया गया था. इस मरम्मत कार्य में 2 करोड़ रुपये खर्च किये जाने की बात सामने आ रही है. नया पुल हो या किसी पुल का रेनोवेशन किया गया हो, उसको शुरू करने से पहले जरूरी है कि उसकी मजबूती की विशेषज्ञ जांच करें. ये परखते हैं कि इस पर कितना भार दिया जा सकता है. मोरबी के नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह झाला ने कहा कि ओरेवा( रेनोवेट करने वाली कंपनी) ने प्रशासन को सूचना दिए बिना ही लोगों को पुल पर जाने की इजाजत दे दी.

कंपनी ने न तो पुल खोलने से पहले नगरपालिका के इंजीनियरों से उनका वेरिफिकेशन कराया और न ही फिटनेस स्पेसिफिकेशन सर्टिफिकेट लिया.

 अब बड़ा सवाल ये कि 26 अक्टूबर को ओरेवा कंपनी के MD जयसुख पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुल को चालू करने की घोषणा की थी, तब नगर पालिका ने इसे क्यों नहीं रोका? अब सवाल यह उठता है कि क्या ऐसी कंपनियां प्रशासन पर भारी क्यों पड़ रही हैं?

क्या यह संभव है कि किसी भी शहर में नगरपालिका प्रशासक के अनुमति के बिना कोई कंपनी इस तरह कोई संचालन कर सके? इसका उत्तर हां में है. कॉर्पोरेट आजकल सरकारी अफसरों को ठेंगे पर रख रहा है. कुछ साल पहले की बात है नोएडा के एक प्राइवेट बोर्डिंग स्कूल में फूड पॉइजनिंग हो गई. मीडिया को खबर मिली. प्रशासन भी पहुंचा मौके पर स्कूल के गेट खुलवाने में एडीएम सिटी और एसपी सिटी नाकाम रहे. एडीएम सिटी ने मीडिया को बयान भी दिया और स्कूल के खिलाफ एक्शन की बात भी की थी. पर जाहिर है कि कुछ भी नहीं हुआ?

Morbi River Bridge

दुर्घटनाग्रस्त मोरबी पुल (फाइल फोटो).

2. ठेकेदारों के लिए बने कड़े रूल्स, मछलीवालों को न मिले मिसाइल बनाने का ठेका

ओरेवा कंपनी से अगले 15 साल यानी 2037 तक के लिए पुल की मरम्मत, रख-रखाव और ऑपरेशन का समझौता किया गया था. पुल पर कंपनी के नाम का बोर्ड तो मौजूद था, लेकिन क्षमता को लेकर दोनों छोरों पर कोई सूचना या चेतावनी नहीं लिखी गई थी. जाहिर है कि जब मछली बेचने वालों से मिसाइल चलवाया जाएगा तो यही हाल होगा. कांट्रेक्ट देने के लिए बने रूल्स रेग्युलेशन का बहुत कड़ाई से पालन होना चाहिए. कुछ दिन पहले आरोप लगे थे कि राफेल बनाने का हजारों करोड़ का ठेका अनिल अंबानी के उस कंपनी को मिला था जिसे लड़ाकू विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं था. बताया जाता है ओरेवा कंपनी सीएफल बनाती रही है. कुछ घडिया बनाने का अनुभव इस कंपनी के पास है. किस तरह इस कंपनी को पुल के मेंटेंनेंस का काम मिला इसकी जांच तो होनी ही चाहिए ऐसे नियम बनने चाहिए कि फिर इस तरह के लोगों को ऐसे ठेके न मिलें.

3. क्या जिला प्रशासन कमजोर हो रहा है?

शहर में कहीं भी कोई सार्वजनिक आयोजन, त्योहार और मेले आदि के आयोजन की जिम्मेदारी किसकी होती है? एक साधारण आदमी भी जानता है कि इसकी जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की होती है. इस मामले में अंग्रेजों के जमाने से जिलाधिकारी को पूरी ताकत दी गई है कि वो अपने विवेक से स्थानीय जनता की सुरक्षा के लिए कोई भी फैसले ले सकता है.

हायर्की में उसके नीचे सब डिविजनल मैजिस्ट्रेट को ये जिम्मेदारी होती है जो जिलाधिकारी को रिपोर्ट करता है.

स्थानीय मेलों में आवश्यकता से अधिक भीड़ इकट्ठी न हो इसके लिए पूरे देश में जिला प्रशासन अपने विवेक से फैसला लेता है. मोरबी के इस पुराने पुल पर एक पुलिस का गार्ड नहीं दिख रहा है जबकि पुल के खुले अभी जुमा-जुमा 5 दिन ही हुए थे.

ये भी नहीं था कि पुल चुपके से खोल दिया गया हो. पुल खोले जाने ले पहले 26 अक्टूबर को ओरेवा कंपनी के MD जयसुख पटेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुल को चालू करने की घोषणा की थी. मीडिया में यह सवाल उठ रहा है कि नगर पालिका ने इसे क्यों नहीं रोका? यही सवाल जिला प्रशासन से है कि क्या यह उद्घाटन बिना उसकी अनुमति के हुआ था? जिला प्रशासन आज भी देश के प्रशासन की रीढ़ है. अगर इस तरह जिला प्रशासन अपनी आंखें मूंदेगा तो जनता का क्या हाल होगा?

4. कंप्लीशन सर्टिफिकेट या फिटनेस सर्टिफिकेट को पारदर्शी कैसे बनाया जाए

हादसे के मद्देनजर मोरबी नगर समिति के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एस.वी. जाला ने चौंकाने वाले खुलासे में कहा कि बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के पुल को जनता के लिए खोल दिया गया था. जाला ने एक स्थानीय मीडिया को संबोधित करते हुए कहा, लंबे समय तक यह पुल जनता के लिए बंद रहा.. सात महीने पहले, एक निजी कंपनी को नवीनीकरण और रखरखाव के लिए अनुबंध दिया गया था, और निजी कंपनी द्वारा 26 अक्टूबर (गुजराती नव वर्ष दिवस) पर जनता के लिए पुल को फिर से खोल दिया गया था. नगर पालिका ने फिटनेस प्रमाणपत्र जारी नहीं किया है.

उन्होंने यहां तक दावा किया कि हो सकता है कि कंपनी को इंजीनियरिंग कंपनी से फिटनेस सर्टिफिकेट मिला हो, लेकिन उसे आज तक नगर पालिका को जमा नहीं किया गया. उन्होंने आरोप लगाया कि कंपनी ने स्वयं और नगर निकाय को सूचित किए बिना जनता के लिए पुल को फिर से खोल दिया.

पूर्व उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने भी मीडिया को बताया कि आम तौर पर जब पुलों का निर्माण या जीर्णोद्धार किया जाता है, तो इसे जनता के लिए खोलने से पहले, तकनीकी मूल्यांकन आवश्यक होता है, और भार वहन क्षमता का परीक्षण किया जाता है इसके बाद ही संबंधित प्राधिकरण द्वारा एक उपयोग प्रमाणपत्र जारी होता है. ऐसे में कुछ सवालों पैदा होता है कि झूला पुल अगर सुरक्षित नही था, तो किसके आदेश पर आनन-फानन में खोला गया? क्या कारण है कि पुल की क्षमता से ज्यादा टिकट क्यों बेचे गए, और जब ऐसा हो रहा था तो प्रशासन कहां था? दरअसल देश में फिटनेस सर्टिफिकेट या कंप्लीशन सर्टिफिकेट को लेकर एक राष्ट्रीय पॉलिसी बनाने की जरूरत है. इस मामले में बिल्डर सबरे अधिक मनमानी कर रहे हैं. जाहिर है कि देश में बनने वाले बहुत पुल और सड़कें , इमारतें.

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मोरबी पुल हादसे में अब तक कई लोगों की मौत

5. स्थानीय मीडिया को गंभीरता से लेना होगा, हुड़दंग को लेकर चेताया था

स्थानीय अखबारों और लोकल चैनलों पर 5 दिन पहले पुल के उद्घाटन के बाद अव्यवस्था की पोल खोली गई थी. ब्रिज को कुछ लोगों बुरी तरह हिला रहे हैं इसका एक विडियो हादसे से एक दिन पहले वायरल हो चुका था. इसके बावजूद भी पुल पर कोई सुरक्षा गार्ड नहीं दिख रहा था. भीड़ को नियंत्रित करने का कोई उपाय नहीं किया गया था. हादसे वाले दिन भी कुछ लोग पुल को हिला रहे थे और रोकने वाला कोई नहीं दिख रहा था. एक प्रत्यक्षदर्शी ने तो ये देखकर शिकायत करने की कोशिश भी की पर कोई सुनने वाला ही नहीं था. इसलिए यह शख्स पुल पर घूमने के बजाय घर वापस चला आया , टीवी खोला तो देखा कि जिसका डर था वही बात हो गई. स्थानीय मीडिया सूचना का मूल स्रोत है उसे कभी हल्के में नहीं लेना होगा.

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