छावला गैंगरेप: सजा-ए-मौत के बाद रिहाई, गुस्से और गम में परिजन, पीड़िता की मां बोली- खत्म हुई जीने की इच्छा
छावला गैंगरेप केस की पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, “11 साल बाद यह फैसला आया है. हम हार गए… हम जंग हार गए.”
यह आरोप भी लगाया कि ‘सिस्टम’ उनकी गरीबी का फायदा उठा रहा है. साल 2014 में, एक निचली कोर्ट ने मामले को ‘दुर्लभतम’ बताते हुए तीनों आरोपियों को मौत की सजा सुनाई थी. बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस फैसले को बरकरार रखा था. बता दें कि तीन लोगों पर फरवरी 2012 में 19 वर्षीय युवती के अपहरण, बलात्कार और बेरहमी से हत्या करने का आरोप है. अपहरण के तीन दिन बाद उसका क्षत-विक्षत शव मिला था.
“मैं उम्मीद के साथ जी रही थी”
पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, “11 साल बाद भी यह फैसला आया है. हम हार गए… हम जंग हार गए… मैं उम्मीद के साथ जी रही थी… मेरे जीने की इच्छा खत्म हो गई है’ मुझे लगता था कि मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा.” पीड़िता के पिता ने कहा, “अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ. 11 साल से हम दर-दर भटक रहे हैं. निचली कोर्ट ने भी अपना फैसला सुनाया. हमें राहत मिली. हाईकोर्ट से भी हमें आश्वासन मिला लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमें निराश किया. अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ.”
मौत की सजा बरकरार रहने की थी उम्मीद
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की. कोर्ट परिसर के बाहर पीड़िता के माता-पिता के साथ मौजूद महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा, “मैं पूरी तरह से स्तब्ध हूं. सुबह, हमें पूरी उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत मौत की सजा को बरकरार रखेगी और हमें यह भी लगता था कि वे मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं.”
वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता विनोद बछेती पिछले 10 साल से न्याय की लड़ाई में परिवार का समर्थन कर रहे थे. उन्होंने कहा, ‘हम पिछले 10 साल से परिवार का समर्थन कर रहे हैं. घटना 9 फरवरी, 2012 को हुई और 10 महीने बाद निर्भया सामूहिक बलात्कार हुआ. (छावला) पीड़िता अपने परिवार का खर्च भी उठा रही थी.’
मूल रूप से उत्तराखंड की ‘अनामिका’ (पीड़िता) दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के छावला के कुतुब विहार में रह रही थी. 9 फरवरी 2012 की रात नौकरी से लौटते समय उसे कुछ लोगों ने जबरन अपनी लाल इंडिका गाड़ी में बैठा लिया. 3 दिन बाद उसकी लाश बहुत ही बुरी हालत में हरियाणा के रिवाड़ी के एक खेत मे मिली.
दी गई थी असहनीय यातना
बलात्कार के अलावा उसे असहनीय यातना दी गई थी. उसे कार में इस्तेमाल होने वाले औजारों से पीटा गया, उसके ऊपर मिट्टी के बर्तन फोड़े गए, सिगरेट से दागा गया. यहां तक कि उसके स्तन को भी गर्म लोहे से दागा गया, निजी अंग में औजार और शराब की बोतल डाली गई. उसके चेहरे को तेजाब से जलाया गया था.
मगर, गैंगरेप के बाद भयंकर यातनाएं देकर मारी गई ‘अनामिका’ को इंसाफ नहीं मिल सका. अब सुप्रीम कोर्ट ने तीनों आरोपियों को बरी कर दिया है. इसकी वजह पुलिस की खराब जांच और निचली अदालत में मुकदमे के दौरान बरती गई लापरवाही है.