रिश्वत के मामले में लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए प्रत्यक्ष सबूत जरूरी नहीं
भ्रष्टाचार निवारण कानून: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुनाया अहम फैसला …
संविधान पीठ की 3 अहम टिप्पणियां
संविधान पीठ ने कहा कि अदालतों को भ्रष्ट लोगों के खिलाफ नरमी नहीं बरतनी चाहिए।
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अहम फैसले में कहा कि लोक सेवकों के रिश्वत लेने के मामलों में प्रत्यक्ष सबूत नहीं होने पर परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर सजा हो सकती है। मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता के प्रत्यक्ष सबूत उपलब्ध नहीं होने पर भी भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत लोक सेवक को दोषी ठहराया जा सकता है।
5 जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ में जस्टिस एस. अब्दुल नजीर, जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन, जस्टिस बी.वी. नागरत्न व जस्टिस ए.एस. बोपन्ना शामिल हैं।
लोक सेवक कौन
लोक सेवक शब्द की परिभाषा को संसद और सुप्रीम कोर्ट स्पष्ट कर चुके हैं। इसके मुताबिक कोई भी व्यक्ति, जिस पर लोक कर्त्तव्य है और उसके निर्वहन के लिए सरकार से पारिश्रमिक मिल रहा है, लोक सेवक माना जाएगा।
दूसरे रास्ते न हों तो यह रास्ता…
जस्टिस नागरत्न ने कहा, आरोपी का अपराध साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को पहले रिश्वत की मांग व बाद में इसे स्वीकार करने को तथ्य के रूप में साबित करना होता है। इस तथ्य को प्रत्यक्ष या मौखिक/दस्तावेजी साक्ष्य से साबित किया जा सकता है। विवादित तथ्य (रिश्वत की मांग और स्वीकारने का प्रमाण) प्रत्यक्ष, मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य के अभाव में परिस्थितिजन्य साक्ष्य से साबित किया जा सकता है।
सुनवाई 22 नवंबर को पूरी होने के बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा था। सुप्रीम कोर्ट की एक खंडपीठ ने 2019 में मामला संविधान पीठ को सौंपते हुए सवाल किया था कि क्या रिश्वत मांगने या देने के संबंध में प्रत्यक्ष साक्ष्य के अभाव में परिस्थितिजन्य अनुमानों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोष सिद्धि हो सकती है? संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के प्रत्यक्ष या प्राथमिक साक्ष्य के अभाव में अभियोजन पक्ष की तरफ से प्रस्तुत अन्य साक्ष्यों के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2), धारा 7 और धारा 13 (1)(डी) के तहत लोक सेवक के अपराध का निष्कर्ष निकालने की अनुमति है।

