क्या विपक्ष के बिना चल सकता है लोकतंत्र!
प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की स्थापना दिवस पर विशेष: पिछले साढ़े 8 साल से लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं ..
नई दिल्ली. लोकतंत्र में सत्तापक्ष और विपक्ष एक ही सिक्के के दो महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दोनों पक्षों के बीच संतुलन जरूरी है। लेकिन एक रोचक तथ्य ये कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में आजादी के 75 साल में 48 साल तक विपक्ष रहा ही नहीं। या यों कह सकते हैं कि विपक्ष तो रहा लेकिन लोकसभा में मान्यता प्राप्त दर्जे वाला विपक्ष नहीं रहा। ऐसे में सवाल होना लाजिमी है कि क्या मजबूत विपक्ष के बिना लोकतंत्र चल सकता है? लोकतंत्र में सत्ता पक्ष के मजबूत होने के साथ विपक्ष का सशक्त होना भी जरूरी है। विपक्ष सरकार पर नजर रखता है तो जनता की आवाज को भी संसद से लेकर सड़क तक उठाता है।
देश में पहली सरकार 1947 में बनी। पहले लोकसभा चुनाव 1952 में हुए लेकिन, पहली बार मान्यता प्राप्त विपक्ष (लोकसभा) 1969 में सामने आया। तब कांग्रेस में विभाजन के बाद संगठन कांग्रेस को विपक्षी दल की मान्यता मिली। इसके नेता रामसुभाग सिंह लोकसभा में पहले विपक्ष के नेता बने। यानी इससे पहले 22 साल लोकसभा में किसी दल को विपक्षी दल की मान्यता नहीं मिली। इसके बाद अनेक बार कभी 6 साल तो कभी 10 साल देश में मान्यता प्राप्त विपक्ष नहीं रहा।
2014 में लोकसभा चुनाव के बाद साढ़े आठ साल से देश में न मान्यता प्राप्त विपक्ष है न विपक्ष का नेता।
नेहरू, राजीव और मोदी के सामने ‘विपक्ष’ नहीं…दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की हकीकत22 साल 4 माह7
5 में से 48 साल देश में ‘विपक्ष’ नहीं
75 में से 48 साल देश में ‘विपक्ष’ नहीं
इंदिरा गांधी… 16 साल तक देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के कार्यकाल में सिर्फ 1969 में एक अवसर ऐसा आया जब लोकसभा को पहली बार राम सुभाग सिंह के रूप में विपक्ष का पहला नेता मिला।
23 अगस्त 1979 से 18 दिसंबर 1989
10 साल 4 माह
क्या विपक्ष…
सन 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद साढ़े आठ साल से देश में न मान्यता प्राप्त विपक्ष है न विपक्ष का नेता। विपक्ष का नेता लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण पद है। अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी, शरद पवार, जगजीवन राम और सुषमा स्वराज सरीखे नेताओं ने इस पद को संभाला है।
15 अगस्त 1947 से 16 दिसंबर 1969
1970 से 1977
लोकसभा में विपक्ष की नेता के तौर पर आखिरी बार भाजपा नेता सुषमा स्वराज रही थी। स्वराज को 21 दिसंबर 2009 से 26 मई 2014 तक इस पद पर रहने का अवसर मिला।
भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी को लोकसभा में सबसे लंबे समय तक विपक्ष के नेता पद पर रहने का मौका मिला है। आडवाणी तीन बार में 7 साल 25 दिन इस पद पर आसीन रहे।
सदन में छा जाते थे अटल ‘जी’
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में एक अलहदा और बेजोड़ पहचान बनाई। वह 1993 से 1997 के बीच करीब सवा चार साल तक विपक्ष के नेता रहे। अटलजी अपनी तीक्ष्ण हाजिर जवाबी, वाकपटुता और प्रभावशाली भूमिका के कारण न सिर्फ विपक्ष के बीच बल्कि सत्तापक्ष से भी सम्मान आर्जित करते रहे। अटलजी जब सदन में बोलते थे तो सदन शांत हो जाया करता था। वह जब भी बोलते थे तो जेहन पर छा जाते थे। यही वजह है कि उनके नाम के साथ पक्ष हो या विपक्ष ’जी’ अपने आप लग जाया करता था।
कैसे बनता है विपक्ष का नेता
लोकसभा में प्रमुख विपक्षी दल के नेता को विपक्ष के नेता का दर्जा दिया जाता है। लेकिन ये तभी संभव होता है जब प्रमुख विपक्षी दल को लोकसभा में कुल संख्या का दस फीसदी हिस्सा मिले। यानी 543 की लोकसभा में कम से कम 53 सीट मिलें।