राहुल गांधी कल यूपी में मारेंगे एंट्री, क्या लोकसभा की 80 सीटों पर कांग्रेस को होगा इसका फायदा?
यूपी में लोकसभा की 80 में से 26 सीटें ईस्ट यूपी से हैं. इन सीटों को अपने पाले में लाना वर्तमान कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती है.
फिलहाल, राहुल गांधी की कांग्रेस महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, नफरत छोड़ो सबको जोड़ो, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मसलों को लेकर बीजेपी के खिलाफ आक्रामक मोड में है. यानि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इस यात्रा का लाभ उठाना चाहेगी.
बीजेपी, सपा और बसपा में इसलिए मची है खलबली
कांग्रेस के नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उनकी तीन जिलों की यात्रा का असर यूपी की 80 लोकसभा सीटों पर माना जा रहा है. आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पहले से बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम होगी. ऐसा इसलिए कि वेस्ट यूपी की जिन तीन जिलों यानि गाजियाबाद, बागपत और शामली से यह यात्रा गुजरेगी, उसमें मुस्लिम आबादी सबसे ज्यादा, दूसरे नंबर पर दलितों की आबादी और तीसरे नंबर पर जाट समुदाय के लोग आते हैं. इस समय यूपी में मुस्लिम सपा के साथ है तो दलित बसपा के साथ. किसान आंदोलन के बावजूद जाटों का एक बड़ा तबका बीजेपी के साथ है. यानि कांग्रेस ने तीन जिलों का चुनाव न केवल सोची समझी रणनीति के तहत किया है, बल्कि यूपी के तीनों प्रमुख दलों के वोट में घुसपैठ करने की सोची समझी चाल भी माना जा रहा है.
ऐसा करने में राहुल गांधी कितना सफल होंगे ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन वर्तमान में इसका असर यह है कि सपा, रालोद और बसपा में उनकी भारत यात्रा को लेकर बैचैनी की स्थिति है. अखिलेश, मायावती और जयंत चौधरी ने उनकी भारत यात्रा में आमंत्रण मिलने के बाद भी शामिल न होने के संकेत दिए हैं. तय है कि यूपी में तीनों पार्टियां भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होकर कांग्रेस को सियासी माइलेज नहीं देना चाहती. सियासी नजरिए से देखें तो यह सही भी है. भला, अपने समर्थकों को कोई यू हीं कांग्रेस की झोली में विपक्षी एकता के नाम पर क्यों डाल दे. यहां पर खास बात यह है कि सपा और बसपा की सियासी जमीन भी यूपी में ही मजबूत हैं. ऐसे में सपा, बसपा और रालोद अपना नुकसान क्यों करे?
फिर, एक बात गौर करने की यह है कि कांग्रेस अभी यूपी में भले ही बहुत कमजोर है. यूपी की 80 में से केवल एक सीट कांग्रेस के पास है. यह सीट रायबरेली है और वहां से 2019 में सोनिया गांधी लोकसभा चुनाव जीती थीं, जबकि राहुल गांधी अमेठी से अपनी परंपरागत सीट हार गए थे. इसके बावजूद कांग्रेस को यूपी में चुका हुआ नहीं मानना चाहिए. इसके पीछे तर्क यह है कि यूपी के दम पर कांग्रेस देश पर दशकों को एकतरफा शासन करती रही. नेहरू जिस फूलपुर से चुनाव लड़ते थे वो सीट 2014 तक कांग्रेस के पास ही थी. इसी तरह रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी चुनाव जीतती रहींं, लेकिन 1977 में राजनारायण ने उन्हें हराकर सभी को चौंका दिया था. आज भी यह सीट कांग्रेस के पास ही है. गौर करने की बात है कि राहुल का पिछला लोकसभा चुनाव अमेठी से हारने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रदेश से पार्टी की एकमात्र सांसद हैं.
केवल 3 जिलों में ही यात्रा क्यों?
इसके बाद भी प्रदेश के 75 जिलों में से सिर्फ 3 जिलों में यात्रा निकालना सवाल खड़े करता है. सवाल इसलिए कि यूपी के जिन क्षेत्रों में कांग्रेस की पकड़ है वो ईस्ट यूपी में हैं. इनमें अमेठी, रायबरेली, फूलपुर, मिर्जापुर, प्रतापगढ, बाराबांकी, इलाहाबाद, डुमरियागंज, कुशीनगर, गोरखपुर, देवरिया, बांसगांव, फैजाबाद, बहराइच, श्रावस्ती, गोंडा, महाराजगंज, अंबेडकरनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, आजमगढ़, घोषी, सलेमपुर, बलिया, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वारणसी, भदोही सीटें शामिल हैं. इन क्षेत्रों में अभी बीजेपी, बसपा या फिर सपा के नेता सांसद हैं, लेकिन मजबूत पकड़ का दावा कोई भी पार्टी करने की स्थिति में नहीं है.
यूपी में कांग्रेस के लिए आज भी स्पेस है
ईस्ट यूपी में कुल 26 लोकसभा और 130 विधानसभा सीटें हैं. पूर्वांचल की वाराणसी सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार सांसद चुने गए हैं. इसके अलावा सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का शहर गोरखपुर और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय की संसदीय सीट चंदौली पूर्वांचल में आती है. बीजेपी के ये तीनों दिग्गज अपनी-अपनी सीटें बचाने में कामयाब रहे, लेकिन पूर्वांचल के गढ़ को पिछले लोकसभा चुनाव की 2019 में बीजेपी पकड़ बनाए नहीं रख पाई. यानि कांग्रेस के लिए अभी भी यूपी में संभावना है. संभवत: इसी वजह से इस बात की चर्चा भी है कि क्या भारत जोड़ो यात्रा को यूपी तक खींचकर राहुल गांधी कांग्रेस को यूपी के सियासी मैदान में फिर से मजबूत स्थिति में खड़ा कर पाएंगे?