नोटबंदी को गैरकानूनी बताने वाली इकलौती जज की कहानी …!

नोटबंदी को गैरकानूनी बताने वाली इकलौती जज की कहानी:पिता सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस थे, 5 साल पहले भी पलटा केंद्र सरकार का फैसला

2 जनवरी 2023 यानी सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने नोटबंदी पर अपना फैसला सुना दिया। संविधान पीठ ने यह फैसला चार-एक के बहुमत से सुनाया है। जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम ने कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं है। सिर्फ जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बहुमत से अलग राय देते हुए नोटबंदी के फैसले को ‘गैरकानूनी’ करार दिया है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना के ज्यूडिशियल करियर, अहम फैसले और परिवार के बारे में जानेंगे…

सबसे पहले पढ़िए कि जस्टिस नागरत्ना ने नोटबंदी पर फैसले में क्या कहा…

ज्यूडिशियल करियरः दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई, कर्नाटक हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं

नागरत्ना ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लॉ डिपार्टमेंट से LLB की है। पढ़ाई पूरी करने के बाद वो बेंगलुरु गईं और 1987 में करियर की शुरुआत एक वकील के तौर पर की। वो बैरिस्टर वासुदेव रेड्‌डी और तब के पॉपुलर वकील जीवी शांतराजू के साथ काम करती थीं।

जस्टिस नागरत्ना 2008 में कर्नाटक हाईकोर्ट में बतौर एडिशनल जज आई थीं।

2009 जस्टिस नागरत्ना के करियर के सबसे कठिन सालों में से एक था। दरअसल, कर्नाटक हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन पद के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और जमीन अधिग्रहण जैसे गंभीर आरोपों में घिर गए थे।

जस्टिस दिनाकरन का विरोध करने के लिए वकीलों ने राज्यभर की अदालतों में सभी प्रोसीडिंग्स का विरोध किया। इसके बावजूद जस्टिस दिनाकरन हियरिंग कर रहे थे। इससे नाराज होकर वकीलों ने जस्टिस दिनाकरन, जस्टिस नागरत्ना के साथ एक और जस्टिस को कमरे में बंद कर दिया।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान जस्टिस नागरत्ना पर हमला भी किया गया था। वहीं जस्टिस दिनाकरन को एक नुकीली चीज चुभोई गई थी, जिससे वो घायल हो गए थे। इस घटना पर जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘हम नाराज नहीं हैं, लेकिन हमें दुख है कि बार ने हमारे साथ ऐसा किया। हमें शर्म से अपना सिर झुकाना पड़ रहा है।’

साल भर बाद 2010 में जस्टिस नागरत्ना को कर्नाटक हाईकोर्ट में स्थायी जज बना दिया गया।

18 अगस्त 2021 को सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने खाली पदों के लिए 9 जजों के नाम रेकमेंड किए। इनमें एक नाम जस्टिस बीवी नागरत्ना का भी था। 30 अगस्त 2021 को भारत के इतिहास में पहली बार नौ जजों ने एक साथ शपथ ली।

सुप्रीम कोर्ट पूर्व चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना के जस्टिस नागरत्ना को शपथ दिलाते हुए।
सुप्रीम कोर्ट पूर्व चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना के जस्टिस नागरत्ना को शपथ दिलाते हुए।

अब जस्टिस नागरत्ना के 4 बड़े फैसलों और टिप्पणियों को पढ़िए…

1. ‘मंदिर बिजनेस की जगह नहीं, कर्मचारियों को ग्रेच्युटी नहीं मिलेगी’

2018 में जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ का एक फैसला खूब चर्चा में रहा था। जब पीठ ने श्री मूकाम्बिका मंदिर बनाम श्री रविराजा शेट्‌टी के केस की सुनवाई करते हुए अधिनियम 1972 का हवाला देकर कहा कि मंदिर बिजनेस की जगह नहीं हैं, इसलिए इसके कर्मचारी ग्रेच्युटी भुगतान के अधिकारी नहीं माने जा सकते हैं। उनके इस फैसले पर जमकर बहस हुई थी।

2. प्रवासी मजदूरों के मामले में राज्य सरकार को लगाई फटकार

30 मई 2020 को कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अभय ओका और जस्टिस नागरत्ना ने एक फैसला सुनाया। अपने फैसले में जजों ने लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों की खराब हालत को लेकर राज्य सरकार को फटकार लगाई।

जजों ने 6 लाख से ज्यादा मजदूरों के लिए रहने, खाने और इन मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने की उचित व्यवस्था करने का आदेश दिया था। इस फैसले की खूब सराहना हुई थी।

3. ‘दुनिया में कोई भी बच्चा बिना मां-बाप के पैदा नहीं होता’

साल 2021 में जस्टिस नागरत्ना की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन के एक सर्कुलर के खिलाफ अहम फैसला सुनाया था। दरअसल, सर्कुलर में कहा गया था कि एक कर्मचारी की दूसरी पत्नी या उसके बच्चे अनुकंपा नियुक्ति के पात्र नहीं हैं।

उन्होंने कहा, ‘इस दुनिया में कोई बच्चा बिना मां-बाप के पैदा नहीं होता। बच्चे के पैदा होने में खुद उसका कोई योगदान नहीं होता। इसलिए कानून को इस तथ्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि नाजायज मां-बाप हो सकते हैं, लेकिन नाजायज बच्चे नहीं।’

4. केंद्र के फैसले पर 5 साल पहले भी हो चुका है टकराव

ये पहली दफा नहीं है जब जस्टिस नागरत्ना ने केंद्र के किसी फैसले को गलत ठहराया है। इससे पहले भी उनकी अध्यक्षता वाली पीठ ने 2017 में ‘द टोबैको इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया’ बनाम ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ के केस पर फैसला सुनाते हुए केंद्र के उस फैसले को रद्द कर दिया था, जिसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने तंबाकू उत्पाद की 85% पैकेजिंग को सचित्र स्वास्थ्य चेतावनी के साथ कवर करना अनिवार्य किया था।

इस नियम को गैर-संवैधानिक बताते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र के इस फैसले को रद्द कर दिया था। कोर्ट ने कहा था- केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पास नियमों में इस तरह के संशोधन करने के अधिकार नहीं हैं।

पर्सनल लाइफः सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस थे जस्टिस नागरत्ना के पिता

जस्टिस नागरत्ना के पिता ईएस वेंकटरमैया सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं। 1989 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया आरएस पाठक के रिटायर होने के बाद ईएस वेंकटरमैया 1989 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बने। हालांकि महज 6 साल इस पद पर रहने के बाद वह रिटायर हो गए।

पिता ईएस वेंकटरमैया ने ही नागरत्ना को वकालत के करियर में आने का सुझाव दिया था। इसके बाद नागरत्ना ने LLB की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी से की थी। कानून के कई जानकारों का कहना है कि 4 साल बाद जस्टिस नागरत्ना भारत की पहली महिला प्रधान न्यायाधीश बन सकती हैं।

जस्टिस नागरत्ना कर्नाटक के मांड्या जिले में स्थित पांडवपुरा पंचायत की रहने वाली हैं। इस पंचायत की कुल आबादी करीब 20 हजार है। बी वी नागरत्ना ने दसवीं तक की पढ़ाई बेंगलुरु के सोफिया हाई स्कूल से की है। इसके बाद वो दिल्ली चली आईं। यहां उन्होंने जीसस एंड मैरी कॉलेज में एडमिशन लिया और हिस्ट्री सब्जेक्ट के साथ अपना ग्रेजुएशन पूरा किया।

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