भारतीय संस्कृति की ताकत दिखाएं युवा
राष्ट्रीय युवा दिवस आज : स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करके आगे बढ़ें युवा
आज राष्ट्रीय युवा दिवस है, यानी एक ऐसे संन्यासी का जन्म दिवस जो क्रांतिदृष्टा के साथ युग पुरुष भी थे। आज पूरा देश युग पुरुष स्वामी विवेकानंद की 160वीं जयंती मना रहा है। औपनिवेशिक गुलामी में जकड़े भारत में युवा पीढ़ी जब भविष्य को लेकर हताश थी, तब स्वामी विवेकानंद ने युवा शक्ति की चेतना को झकझोरते हुए उनके सामने आजादी का लक्ष्य निर्धारित किया। और युवा शक्ति का आह्वान करते हुए उद्घोष किया, ‘उठो, जागो और लक्ष्य प्राप्ति तक मत रुको।’ बारूद, बम और सीमाओं के अतिक्रमण के इस संक्रामक दौर में आज दुनिया को शांति, सौहार्द, बंधुत्व और समरसता से परिपूर्ण सार्थक-सामाजिक बदलाव की बेहद जरूरत है। गौरतलब है कि सार्थक सामाजिक परिवर्तन में युवा वर्ग की हमेशा एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। दरअसल, निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर सांस्कृतिक मूल्यों एवं गौरवमयी विरासत से प्रेरित होकर बड़ी से बड़ी चुनौतियों को उत्साह व उमंग से स्वीकार करने की जो क्षमता व सामर्थ्य देश के युवाओं में है, वह अन्य आयु वर्गों में कम देखी जाती है। वैश्विक अस्थिरता के दौर में भारत ने दुनिया के तीसरे बड़े स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है। जब सारी दुनिया कोविड महामारी के प्रकोप से जूझ रही थी, तब भारत के युवाओं ने 50 यूनीकोर्न बनाकर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की। दुनिया भारत को एक नई आशा और विश्वास की दृष्टि से देखती है
विवेकानंद भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बहुत गहराई से जुड़े हुए थे। स्वामी विवेकानंद को अपनी भारतीयता एवं भारतीय संस्कृति पर बेहद गर्व था। इस संदर्भ में एक प्रसंग का उल्लेख करना जरूरी हो जाता है। अपनी अमरीकी यात्रा के दौरान एक बार स्वामी विवेकानंद अपनी पारंपरिक भगवा पोशाक में न्यूयॉर्क की सड़क पर टहल रहे थे। उनके सामने से एक अमरीकी दंपती आ रहा था। महिला ने विवेकानंद की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘ये आदमी मुझे जेंटलमैन प्रतीत नहीं होता।’ महिला की यह बात स्वामी विवेकानंद ने भी सुन ली। विवेकानंद ने प्रत्युत्तर देते हुए कहा, ‘मैडम, आपके देश में आपका दर्जी किसी व्यक्ति को जेंटलमैन बनाता है, जबकि हमारे देश में व्यक्ति के चारित्रिक गुण उसको जेंटलमैन बनाते हैं।’ वस्तुत: आज देश के तमाम युवाओं को स्वामी विवेकानंद के विचारों को आत्मसात करने एवं उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है। इस तरह स्वामी विवेकानंद ने बगैर विचलित हुए नकारात्मक प्रश्न को सकारात्मक आत्म सुझाव में तब्दील कर दिया। उनसे जुड़े एक दूसरे घटनाक्रम का उल्लेख करना भी अर्थपूर्ण होगा। विदेश प्रवास के दौरान ही उनके एक विदेशी मित्र ने उनको अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया। उसने अपने ड्राइंग रूम में जानबूझकर गीता ग्रंथ को अन्य धर्मों की पुस्तकों के सबसे नीचे रख दिया। विवेकानंद उसके ड्राइंग रूम में बैठ गए। इस बीच उनकी दृष्टि पुस्तकों पर पड़ी। मित्र ने विवेकानंद से कहा, ‘पुस्तकों को देखकर शायद आप असहज दिखाई दे रहे हैं।’ स्वामी विवेकानंद ने अपने मित्र को प्रत्युत्तर में कहा, ‘मैं देख रहा हूं- द फाउंडेशन इज रियली वेरी स्ट्रॉन्ग।’ इस प्रकार विवेकानंद ने अपने विवेकपूर्ण उत्तर से अपने मित्र को शर्मिंदा कर दिया। नकारात्मक पहलुओं को रचनात्मक आकार देना ही भारतीय आध्यात्मिक चिंतन की महानता है। और यही भारतीय सांस्कृतिक विरासत की गरिमा भी है। असल में भारतीय संस्कृति के संदर्भ में इसके दो खास पहलू- आध्यात्मिकता और सहिष्णुता, इसको विश्व की अन्य संस्कृतियों के बीच विशिष्ट पहचान दिलाते हैं। आध्यात्मिकता भारतीय संस्कृति का आंतरिक पहलू है और सहिष्णुता बाहरी पहलू है। 11 सितंबर 1893 की शिकागो वर्ल्ड रिलिजन कॉन्फ्रेंस में स्वामी विवेकानंद ने करतल ध्वनि के बीच अपने विश्व-प्रसिद्ध संबोधन में कहा था, ‘मैं एक ऐसी संस्कृति का संवाहक बनकर आया हूं, जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृति, दोनों की ही शिक्षा दी है। हिंदू संस्कृति सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करती, बल्कि सभी धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार भी करती है। मुझे ऐसे देश का प्रतिनिधित्व करने पर गर्व महसूस हो रहा है, जिसने इस धरा के सभी धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है।’ भाषण के समापन पर विवेकानंद ने ये उद्गार व्यक्त किए,‘असहिष्णुता, हठधर्मिता और उसकी संकीर्ण धर्मांधता जैसी प्रवृत्तियां इस सुंदर वसुंधरा पर बहुत समय तक राज कर चुकी हैं। येे प्रवृत्तियां हमेशा से पृथ्वी को हिंसा से भरती रही हैं। अपने-अपने पंथ को श्रेष्ठ साबित करने की लालसा की वजह से संपूर्ण मानवता प्रेम, अहिंसा, पारस्परिक सौहार्द और उन्नति से वंचित रही हैं।’
भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दिलाने वाले और दुनिया की युवा शक्ति को जागृत करने वाले युग पुरुष स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कहा था, ‘एक लक्ष्य निर्धारित करो, उस लक्ष्य को अपना जीवन बना लो, समर्पित होकर हमेशा उसके बारे में चिंतन करो, उठते-बैठते उसके सपने देखो, उसको जिओ, दिल-दिमाग और नसों में उसके प्रवाह को महसूस करो। यही सफलता, प्रगति और विकास का मार्ग है।’ स्वामी विवेकानंद के ये विचार आज भी युवाओं के लिए प्रेरक हैं।