मंत्रालयों द्वारा शिक्षा पर व्यय किया जाने वाला कुल खर्च शिक्षा मंत्रालय से भी अधिक है
इस साल आम बजट में शिक्षा क्षेत्र को अब तक का सबसे बड़ा आवंटन किया गया है। बजट में 1,12,898 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है, जो कि पिछले साल के मूल बजट से 8% और पुनरीक्षित बजट से 13% अधिक है। इन लगभग 1.13 लाख करोड़ रुपयों में से 68,804.85 करोड़ स्कूली शिक्षा और 44,094.62 करोड़ उच्चशिक्षा के लिए हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इसकी सराहना करते हुए कहा है कि इस बजट ने एक तकनीकी-पोषित सूचना-आधारित अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में मजबूत नींव बांध दी है।
लेकिन अगर राज्यों के द्वारा शिक्षा पर खर्च की जाने वाली राशि को देखें तो पाएंगे कि शिक्षा पर सरकारी व्यय कहीं अधिक है। भारत के सभी 28 राज्यों और 9 केंद्रशासित प्रदेशों का अपना शिक्षा बजट है। इसके अलावा कम ही लोगों को यह मालूम है कि केंद्र सरकार के लगभग हर मंत्रालय का अपना शिक्षा बजट होता है, जो कि शिक्षा मंत्रालय के बजट के अतिरिक्त है।
वास्तव में यह पता लगाना अगर नामुमकिन नहीं तो बहुत मुश्किल जरूर है कि सरकार किसी मौजूदा साल में शिक्षा पर कितना खर्च कर रही है। इसका कारण यह है कि खर्चे न केवल केंद्र व राज्यों में विभाजित हैं, बल्कि वे विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में भी आपस में विभक्त हैं। ऐसे में समेकित आंकड़े कुछ सालों के बाद ही उपलब्ध हो पाते हैं।
एक सजग नागरिक और तत्पर करदाता को आश्चर्य हो सकता है कि हमारे लिए यह जानना इतना कठिन क्यों है कि शिक्षा पर हमारे पैसों को किस तरह से व्यय किया जा रहा है? कहीं यह अनिश्चितता सुचिंतित तो नहीं, जिसे नजदीकी निगरानी से बचने के लिए रचा गया हो?
आखिर शिक्षा हमारे समाज और आर्थिकी का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और अगर उसकी लागतें बहुत अधिक और उनके परिणाम अनुपात से बाहर हैं तो यह पड़ताल का विषय होना चाहिए। यह तो स्पष्ट है कि इतने सारे मंत्रालयों, राज्यों, विभागों के बीच बंटे हुए तथ्यों और आंकड़ों का एकत्रीकरण, उन तक पहुंच और उनका विश्लेषण एक बड़ी टीम और उपयुक्त संसाधनों के बिना सम्भव नहीं है। यह किन्हीं गिने-चुने व्यक्तियों के बस की बात नहीं हो सकती, फिर भले वो कितने ही समर्पित, विद्वान या बुद्धिमान क्यों न हों।
शुक्र है कि शिक्षा मंत्रालय के नियोजन, निगरानी और सांख्यिकी ब्यूरो ने 2017-18 से 2019-20 तक शिक्षा पर बजटीय व्यय का विश्लेषण प्रकाशित कराया है। यह रिपोर्ट 2022 में आई है और मंत्रालय के सात अधिकारियों व पांच सहायकों की टीम को इस भगीरथी प्रयास के लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए।
इनमें से कोई भी निर्देशक की रैंक से ऊपर नहीं है, जो कि मंत्रालयों में आईएएस अधिकारी से भी नीचे होता है। उन्होंने 80 हजार से अधिक पृष्ठों को खंगालकर यह रिपोर्ट तैयार की है। यह बड़ी सरलता से उपलब्ध है, लेकिन कम ही लोगों ने इस पर नजर डालने की जेहमत उठाई है।
हममें से कितनों को पता है कि संस्कृति, प्रतिरक्षा, रेलवे, सामाजिक न्याय और अधिकारिता, टेक्स्टाइल्स, आदिवासी मामले, महिला और बाल विकास, खाद्य प्रसंस्करण जैसे मंत्रालय प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए खासा आवंटन करते हैं? साथ ही राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति के संसदीय सचिवालय भी शिक्षा पर व्यय करते हैं।
उच्च शिक्षा के लिए कृषि और किसान कल्याण, नागरिक उड्डयन, वाणिज्य और उद्योग, उपभोक्ता अधिकार, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण, पर्यावरण, वन, विदेश, गृह, नगरीय विकास, कानून, सड़क परिवहन, ग्रामीण विकास, पर्यटन, खेल, वित्त जैसे मंत्रालय खासा पैसा देते हैं। तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने वाले मंत्रालय भी अनेक हैं।
वास्तव में विभिन्न मंत्रालयों के द्वारा शिक्षा पर व्यय किया जाने वाला कुल खर्च शिक्षा मंत्रालय से भी अधिक है। मौजूदा बजट में शिक्षा मंत्रालय को 1,12,898 करोड़ दिए गए हैं, लेकिन अगर दूसरे मंत्रालयों द्वारा किए गए खर्च को देखें तो यह 1.65 लाख करोड़ के करीब ठहरेगा। इसमें राज्यों के द्वारा व्यय की गई राशि तो शामिल ही नहीं है।
भारत के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का अपना शिक्षा बजट है। इसके अलावा केंद्र सरकार के लगभग हर मंत्रालय का भी अपना शिक्षा बजट होता है, जो कि शिक्षा मंत्रालय के बजट के अतिरिक्त है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)