क्यों US में 79% वायलेंट मौतें बंदूकों से …!

भारत में देसी कट्‌टा खरीदने से आसान है US में असॉल्ट राइफल खरीदना ….

अमेरिका बंदूकों से परेशान है…2023 के दो ही महीनों में अमेरिका में 88 मास शूटिंग की घटनाएं हो चुकी हैं। 99 लोगों की मौत हो चुकी है।

ये घटनाएं दुखद हैं…लेकिन भारत में बैठकर बंदूकों पर अमेरिका की चिंता को समझ पाना जरा मुश्किल है।

जाहिर है, UP-बिहार समेत कई राज्यों के कुख्यात इलाकों में जब कट्‌टा बनाना कुटीर उद्योग की तरह फल-फूल रहा हो तो अमेरिका में गन वायलेंस पर मची हाय-तौबा बहुत ज्यादा ही लगती है।

लेकिन इस चिंता की वजह आपको आंकड़ों की तुलना करने पर समझ में आएगी।

भारत में 2020 करीब 50 हजार लोगों की अलग-अलग तरह की हिंसा में मौत हुई, लेकिन इसमें गन वायलेंस में मरने वाले 20% ही थे।

उधर अमेरिका में 2020 में हिंसक झड़पों में करीब 30 हजार लोगों की मौत हुई, जिनमें से करीब 79% ने गन वायलेंस में जान गंवाई।

गन वायलेंस में मौतों का आंकड़ा अमेरिका में भारत से इतना ज्यादा होने की वजह ये है कि अमेरिका में गन खरीदना भारत से कहीं ज्यादा आसान है।

भारत में अगर आप कानूनी रूप से एक गन खरीदना चाहते हैं तो एक लंबी और सख्त लाइसेंसिंग की प्रक्रिया से गुजरना होता है।

गैर-कानूनी रूप से गन खरीदने वालों की संख्या भी भारत में कम नहीं है। लेकिन इस तरीके से देसी कट्‌टे तो मिल जाते हैं, मगर कोई सेमी ऑटोमैटिक गन खरीदना मुश्किल, रिस्की और काफी महंगा हो सकता है।

इसके उलट अमेरिका में बिना किसी लाइसेंस के कोई भी व्यक्ति बंदूकें खरीद सकता है और अपने घर में जमा कर सकता है। सिर्फ कुछ ही राज्यों में गन खरीदने पर उसका रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है।

समझिए, कैसे अमेरिका में 18 साल का किशोर भी चॉकलेट खरीदने जितनी आसानी से बंदूक खरीद सकता है और क्यों भारत जैसे कड़े गन कानून अमेरिका में लागू नहीं होते…

मास शूटिंग्स ही नहीं, गन वायलेंस की छोटी घटनाएं भी तेजी से बढ़ रही हैं

अमेरिका में फिलहाल मिसौरी राज्य के सेंट लुईस में हुई एक हत्या के वीडियो क्लिप पर बवाल मचा हुआ है।

27 फरवरी की इस घटना में डिशॉन थॉमस नाम के एक 23 साल के युवक ने फुटपाथ पर बैठे एक आदमी को गोली मार दी थी।

इस आदमी से थॉमस का कुछ देर पहले झगड़ा हुआ था।

इस घटना के 45 सेकेंड के वीडियो क्लिप ने एक बार फिर अमेरिका में गन वायलेंस का मुद्दा गरम कर दिया है।

वायरल वीडियो क्लिप के एक स्क्रीन ग्रैब में डिशॉन थॉमस गोली मारने से पहले पिस्टल लोड करता हुआ दिख रहा है। पुलिस ने घटना के कुछ देर बाद थॉमस को गिरफ्तार कर लिया था।
वायरल वीडियो क्लिप के एक स्क्रीन ग्रैब में डिशॉन थॉमस गोली मारने से पहले पिस्टल लोड करता हुआ दिख रहा है। पुलिस ने घटना के कुछ देर बाद थॉमस को गिरफ्तार कर लिया था।

अमेरिका का संविधान देता है हर नागरिक को बंदूक रखने और अपनी रक्षा करने का अधिकार

अमेरिकी संविधान का दूसरा संशोधन (सेकेंड अमेंडमेंट) लोगों को बंदूक (आर्म्स) रखने का अधिकार देता है। यह संशोधन 15 दिसंबर, 1791 को लागू हुआ था।

ये वो समय था जब अमेरिका की कुल आबादी सिर्फ 39.29 लाख ही थी। कई परिवार तो ऐसे इलाकों में रहते और खेती करते थे, जहां मीलों तक कोई दूसरा परिवार नहीं था।

उस दौर में हर व्यक्ति को अपने परिवार और प्रॉपर्टी की रक्षा करने के लिए बंदूकों की जरूरत होती थी। इसीलिए अमेरिकी संसद ने 1791 में इसे हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार बना दिया।

अमेरिका में गन्स का घरेलू बाजार बहुत बड़ा…35 साल में 353% बढ़ा गन्स का उत्पादन

आज अमेरिका में हालात बदल चुके हैं, मगर अब वहां बंदूकों का डोमेस्टिक मार्केट इतना बड़ा हो चुका है कि गन कंट्रोल खासा मुश्किल हो गया है।

1986 में अमेरिका में कुल 30.41 लाख गन्स मैन्युफैक्चर हुई थीं। 2021 में यह आंकड़ा 1.38 करोड़ तक पहुंच गया है। यानी 35 साल गन्स का उत्पादन 353% बढ़ गया है।

आज अमेरिका में 45% परिवार कम से कम एक गन जरूर रखते हैं। ऐसे में लोगों को गन खरीदने से रोकने का कानून बनाना मुश्किल हो गया है।

सिर्फ 1 घंटे में अमेरिका में खरीदी जा सकती है बंदूक

अमेरिका में कानूनी तौर पर 18 साल का होने पर कोई भी व्यक्ति शॉटगन या राइफल खरीद सकता है। हैंडगन या पिस्टल खरीदने के लिए 21 साल का होना जरूरी है। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में कोई भी व्यक्ति सिर्फ 1 घंटे में बंदूक खरीद सकता है।

बंदूक बेचने से पहले सिर्फ एक बैकग्राउंड चेक…जितनी गन्स बनती हैं उससे ज्यादा बिक रही हैं

बंदूक बेचने वाले ऑथराइज्ड डीलर्स के पास अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी FBI के एक डेटाबेस का एक्सेस होता है। इसे नेशनल इंस्टैंट क्रिमिनल बैकग्राउंड चेक सिस्टम (NICS) कहा जाता है।

इस सिस्टम के जरिये बंदूक खरीदने की आईडी के आधार पर उसका बैकग्राउंड चेक किया जा सकता है। इसमें उसके क्रिमिनल रिकॉर्ड की जानकारी, डोमेस्टिक वायलेंस की शिकायतों और इमिग्रेशन स्टेटस की जानकारी दी जाती है।

आम तौर पर ये बैकग्राउंड चेक भी 10 से 20 मिनट में पूरा हो जाता है।

अमेरिका में हर साल बनने वाली गन्स की तुलना अगर NICS के चेक्स की संख्या से करें तो मामला चौंकाने वाला है। हर साल जितनी गन्स बनती हैं उससे कई गुना ज्यादा बिकती हैं। 2021 में ही 1.38 करोड़ गन्स बनीं, जबकि 3.88 करोड़ गन्स के लिए NICS चेक हुआ।

एक तरीका ऐसा भी जिसमें बैकग्राउंड चेक तक नहीं होता

गन्स के उत्पादन और NICS चेक के आंकड़ों का इतना बड़ा अंतर बताता है कि ज्यादातर बंदूकें सेकेंड हैंड खरीदी-बेची जाती हैं।

मगर इन बंदूकों के खरीदने में भी NICS का चेक तभी होता है जब ये किसी ऑथराइज्ड गन डीलर से खरीदी जाएं।

लेकिन अगर आप किसी आम व्यक्ति से बंदूक खरीद रहे हैं या वो आपको गिफ्ट में बंदूक दे रहा है तो बैकग्राउंड चेक की जरूरत नहीं पड़ती।

उदाहरण के तौर पर मिस्टर बिली के पास 3 हैंडगन हैं, वे उनमें से 1 को बेचना चाहते हैं। मिस्टर जॉनसन उनके पास हैंडगन खरीदने जाते हैं तो इस स्थिति में मिस्टर जॉनसन का बैकग्रांउड चेक नहीं होगा।

अमेरिका में आबादी से ज्यादा बंदूकें

स्मॉल आर्म्स सर्वे की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका में आम नागरिकों के पास 39.30 करोड़ गन्स हैं, जबकि अमेरिका की आबादी ही 33 करोड़ है।

यानी अमेरिका की आबादी में 10 लोगों पर 12 बंदूकें हैं।

इसकी तुलना भारत से करें तो 140 करोड़ की आबादी में 7.11 करोड़ गन्स ही हैं।

भारत में 86% गन्स अवैध…अमेरिका में 99% से ज्यादा

भारत में गन रखने के लिए पहले लाइसेंस लेना अनिवार्य है, लेकिन गैर-लाइसेंसी हथियारों की संख्या कहीं ज्यादा है।

स्मॉल आर्म्स सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 7.11 करोड़ गन्स हैं और इनमें से सिर्फ 13.6% ही लाइसेंसी हैं।

हालांकि, अमेरिका में स्थिति और भी ज्यादा खराब है। वहां गन्स के रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस पर कोई केंद्रीय कानून नहीं है।

कुछ राज्यों में गन्स का रजिस्ट्रेशन जरूरी है, लेकिन ये संख्या बहुत ही कम है। 39 करोड़ से ज्यादा गन्स में से सिर्फ 0.27% ही रजिस्टर्ड हैं।

अमेरिका में गन कंट्रोल की कोशिश कई बार हुई…हर बार फेल

संविधान के सेकेंड अमेंडमेंट के आधार पर अमेरिका में कई राज्यों के गन कंट्रोल के फैसले कोर्ट ने पलटे हैं। 2008 में USA के सुप्रीम कोर्ट ने कोलंबिया में हैंडगन पर लगे बैन को पलट दिया था।

पिछले साल अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने न्यूयॉर्क के बंदूक रखने पर लगाम लगाने वाले कानून को निरस्त कर दिया। इस कानून के तहत लोगों को हथियार रखने की पर्याप्त वजह साबित करनी होती थी।

इसी साल 3 फरवरी को अमेरिका की एक कोर्ट ने 30 साल पुराने एक कानून को रद्द कर दिया जो घरेलू हिंसा में शामिल लोगों को हथियार रखने से रोकता था।

राजनीतिक लड़ाई में हटा असॉल्ट वेपन्स से बैन

AR-15 राइफल्स अमेरिका में सबसे ज्यादा बिकने वाले असॉल्ट वेपन हैं। मास शूटिंग्स में भी इन असॉल्ट वेपन्स का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हुआ है।
AR-15 राइफल्स अमेरिका में सबसे ज्यादा बिकने वाले असॉल्ट वेपन हैं। मास शूटिंग्स में भी इन असॉल्ट वेपन्स का इस्तेमाल सबसे ज्यादा हुआ है।

कोर्ट के फैसलों के अलावा राजनीतिक कारणों से भी प्रभावी गन कंट्रोल कानून नहीं बन पा रहे हैं। आमतौर पर जो बाइडेन की डेमोक्रेट पार्टी के लोग गन कंट्रोल कानून का समर्थन करते हैं, वहीं डोनाल्ड ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के लोग गन कंट्रोल कानूनों का विरोध करते हैं।

अमेरिका में 1994 में एक एक्ट के जरिए असॉल्ट वेपन्स और ज्यादा गोलियों वाली मैगजीन्स रखने पर पांबदी लगाई गई थी।

हालांकि, ये एक्ट 10 साल के लिए था। इसके बाद एक बार फिर इसे संसद में पारित कराना जरूरी था। मगर 10 साल बाद संसद में रिपब्लिकन्स बहुमत में थे। ऐसे में ये एक्ट रिन्यू ही नहीं हुआ।

हालांकि, पिछले साल जून में एक गन सेफ्टी बिल लाया गया जिसे दोनों पार्टियों ने अपना समर्थन दिया। इस बिल के तहत बंदूक खरीदने की इच्छा रखने वाले 21 साल के कम उम्र के लोगों के लिए बैकग्राउंड चेक को कठिन बना दिया गया।

गन कंट्रोल में भारत अमेरिका से बहुत आगे…एक गन लाइसेंस के लिए कई पापड़ बेलने पड़ते हैं

इंडियन आर्म्स एक्ट, 1959 के तहत भारत में बंदूकों को दो कैटेगरी में बांटा गया है-

नॉन प्रॉहिबेटेड बोर (NPB)- इसके अंतर्गत .35, .32, .22 और 0.380 कैलिबर की बंदूकें आती हैं। ये आमतौर पर छोटे साइज की बंदूकें होती हैं। आम नागरिक इन बंदूकों के लाइसेंस के लिए अप्लाय कर सकते हैं। ये लाइसेंस राज्य सरकार देती है।

प्रोहिबेटेड बोर (PB)- इसके अंतर्गत फुली ऑटोमैटिक और सेमी ऑटोमैटिक बंदूकें आती हैं। 9 MM पिस्टल, 0.455 कैलिबर हैंडगन और 0.303 कैलिबर राइफल भी इसके अंतर्गत आती हैं।

सिर्फ डिफेंस पर्सनल और आंतकवाद प्रभावित क्षेत्रों के लोग ही इनके लाइसेंस के लिए अप्लाय कर सकते हैं। ये लाइसेंस सिर्फ केंद्र सरकार जारी करती है।

 

लगातार बढ़ रही हैं अमेरिका में मास शूटिंग्स

पिछले साल बैकग्राउंड चेक को सख्त बनाए जाने और राज्यों को ज्यादा अधिकार देने के बावजूद अमेरिका में न तो गन्स की बिक्री धीमी हुई है और ना ही मास शूटिंग्स कम हुई हैं।

2023 के दो महीने में हुईं 88 घटनाओं से पहले 2022 में मास शूटिंग की ऐसी 21 घटनाएं हुईं थीं जिनमें 5 या उससे ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

‘द वायलेंस प्रोजेक्ट’ के मुताबिक, अमेरिका में 1966 से लेकर अब तक मास शूटिंग की 187 घटनाएं हो चुकी हैं। इन घटनाओं में 1,346 लोग अपनी जान गवां चुके हैं।

नौकरी जाने की वजह से हुई 23% मास शूटिंग

‘दी वायलेंस प्रोजेक्ट’ के मुताबिक, हमलावरों ने अलग-अलग वजहों से मास फायरिंग की घटनाओं को अंजाम दिया।

किसी ने धार्मिक नफरत तो किसी ने नौकरी जाने की वजह से लोगों की जान ले ली। कई घटनाओं के पीछे एक साथ कई कारण भी थे।

कुल हिंसा में गन वायलेंस डेथ्स के मामले में सीरिया से भी बुरे हालात अमेरिका में

अमेरिका में हर साल जितने लोग हिंसक मौत मरते हैं उनमें 80% तक गन वायलेंस का शिकार होते हैं।

ये हालात सीरिया से भी बदतर हैं। 2020 में सीरिया में हिंसा में 12343 लोगों की मौत हुई, लेकिन इसमें गन वायलेंस के शिकार 3204 ही थे। यानी 25.95 हिंसक मौतें बंदूकों की वजह से हुईं।

भारत में हिंसक मौतों की कुल संख्या अमेरिका से बहुत ज्यादा, करीब 50 हजार है। लेकिन इसमें गन वायलेंस की वजह से हुई मौतें करीब 10 हजार ही हैं।

46.5% मास शूटिंग्स में इस्तेमाल बंदूक कानूनी रूप से खरीदी गई थी

रिसर्च स्कॉलर जिलिइन पीटरसन और जेम्स डेंस्ले ने 172 मास शूटिंग्स में शामिल हमलावरों का डेटाबेस तैयार किया। इसके मुताबिक-

  • 30.8% मास शूटिंग्स वर्क प्लेस पर हुईं। हमलावर मौजूदा या पुराने कर्मचारी थे। ज्यादातर को नौकरी से निकाला गया था।
  • 52% हमलावर श्वेत थे। 20.9% घटनाओं में हमलावर अश्वेत थे और 6.4% घटनाओं में हमलावर एशियन थे। बाकी घटनाओं में हमलावर के ओरिजिन का पता नहीं चला।
  • 46.5% मामलों में इस्तेमाल गन्स कानूनी तरीके से खरीदी हुई थीं। 50% मामलों में इस्तेमाल कम से कम एक गन कानूनी रूप से खरीदी गई थी।
  • 28.5% मामलों में सभी बंदूकें गैर-कानूनी तरीके से खरीदी गई थीं। 18% मामलों में कम से कम एक गन गैर-कानूनी तरीके से खरीदी गई थी।
  • 12% मामलों में बंदूक किसी से उधार ली गई थी या चुराई गई थी।
  • 61.6% मामलों में हमलावर मारे गए लोगों में से कुछ को जानता था।
  • 33.7% मामलों में मारे गए लोगों में से हमलावर किसी को नहीं जानता था।
  • 4.7% मामलों में यह स्पष्ट नहीं हो सका कि हमलावर पीड़ितों को जानता था या नहीं।
  • 68.6% मामलों में हमलावर मानसिक रूप से बीमार थे।
  • 71.5% मामलों में हमलावर सुसाइडल टेंडेंसी दिखा रहे थे।
  • 50% हमलावर अल्कोहल, ड्रग्स या कोई दूसरा नशा करते थे।

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