मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर फोकस भी जरूरी

चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी अभी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। समय बीतने के साथ चीन में अन्य लागत के साथ श्रम लागत भी बढ़ी है। दुनिया मैन्युफैक्चरिंग का दूसरा हब तलाश रही है।

अर्थव्यवस्था: जनवरी में वस्तु निर्यात में 6.5% की कमी आई, जबकि सेवा निर्यात में 49.05% की वृद्धि हुई

दे श के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वर्ष 2022-23 की तीसरी तिमाही में घटकर 4.4% पर आ गई है। वित्त वर्ष 2021-22 की इसी तिमाही में वृद्धि दर 11.2% थी। मंगलवार को राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन के वृद्धि दर के आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट इसका कारण है। मैन्युफैक्चरिंग में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 1.1 % की गिरावट आई, जबकि पिछले वर्ष की समान तिमाही में इसमें 1.3% की वृद्धि दर्ज की गई थी।

मैन्युफैक्चरिंग के आंकड़े तब और महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं, जबकि भारत में सेवाओं का निर्यात तेजी से वाणिज्यिक निर्यात तक पहुंच रहा है। इस वर्ष जनवरी में सेवाओं और वस्तुओं का निर्यात लगभग बराबर और 21 अरब डॉलर से ऊपर था। जनवरी में वस्तुओं के निर्यात में 6.5% की कमी आई, जबकि सेवाओं के निर्यात में 49.05% की वृद्धि हुई। इससे निर्यात के क्षेत्र में नीति निर्माताओं के समक्ष कई प्रश्न खड़े हो रहे हैं। एक ओर आरबीआइ के पूर्व गवर्नर सहित कई विशेषज्ञों का मत है कि भारत को सेवाओं के निर्यात पर जोर देना चाहिए, मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र का दिग्गज बनने के लिए चीन का अनुसरण नहीं करना चाहिए, तो कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को मैन्युफैक्चरिंग में चीन की तरह बल देना चाहिए और वस्तुओं के निर्यात पर पूरा जोर लगाना चाहिए।

नीति निर्माताओं को यह ध्यान रखना होगा कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में स्थिति सामान्य होने पर क्या होगा? वस्तुओं का निर्यात जिंस की कीमतों से संचालित होगा जिसमें उतार-चढ़ाव की स्थिति रहेगी। विपरीत बाहरी परिस्थितियों के कारण जनवरी में लगातार दूसरे महीने पिछले साल की समान अवधि की तुलना में वाणिज्यिक निर्यात कम हुआ, जबकि सेवाओं के निर्यात में तीव्र वृद्धि जारी है। सेवा क्षेत्र में अभी अवश्य ही निर्यात वृद्धि दर बेहतर है, पर इसका यह स्तर बनाए रखना चुनौती होगी, क्योंकि अमरीका व यूरोप में धीरे-धीरे मांग कम हो रही है। हालांकि वाणिज्य मंत्रालय ने 2030 तक भारतीय सेवा क्षेत्र निर्यात का लक्ष्य 1 ट्रिलियन डॉलर रखा है, पर आइटी सेक्टर में हायरिंग में सुस्ती एक चेतावनी है।

जीडीपी के ताजा आंकड़े में कमी का कारण मैन्युफैक्चरिंग का सिकुड़ना है। इस सेक्टर के अलावा अन्य सभी क्षेत्रों में विकास दर की स्थिति अच्छी है। कृषि क्षेत्र में भी वृद्धि दर 3.7% रही है। यह पर्याप्त संकेत है कि मैन्युफैक्चरिंग पर भी ध्यान देने की जरूरत है। सेवाओं की तुलना में मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में रोजगार बढ़ाना एक तेज प्रक्रिया है। कुछ विशेषज्ञ तर्क देते हैं कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों पर ही निर्भर है, जबकि सेवा क्षेत्र सदाबहार है, लेकिन यह तर्क भी कमजोर है। मैन्युफैक्चरिंग हो या सेवा क्षेत्र, दोनों ही बाह्य परिस्थितियों पर निर्भर हैं, पर हमारे नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे निर्यात में विविधता बनाए रखें।

दरअसल, हमारे मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में विकसित देशों की तुलना में बुनियादी ढांचा कमजोर है। डीजल और पेट्रोल के महंगा होने से परिवहन की लागत बढ़ी है और निर्बाध विद्युत आपूर्ति अब भी चुनौती बनी हुई है। वर्तमान में भारत अनुसंधान और विकास पर जीडीपी का मात्र 0.7% खर्च करता है। यह मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को विकसित होने, नवाचार करने और आगे बढ़ने से रोकने जैसा है। अनुसंधान पर खर्च बढ़ाने के अतिरिक्त भारत को निर्यातोन्मुखी मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस करना होगा व नए बाजारों में प्रवेश और प्रतिस्पर्धात्मकता में विश्वास करने वाले उद्यमियों को विशेष प्रोत्साहन देना होगा।

वास्तव में भारत को सेवा और वस्तु, दोनों के निर्यात पर ध्यान देने की आवश्यकता है। भारत की जीडीपी में सर्विस सेक्टर का योगदान 50 फीसदी से ज्यादा है। ऐसे में जनवरी में सेवाओं के निर्यात में 49% की वृद्धि उत्साहवर्धक है। लेकिन निर्भरता किसी एक क्षेत्र पर ज्यादा होने से अर्थव्यवस्था का संतुलन बिगड़ सकता है।

तीसरी तिमाही में जीडीपी की 4.4% की कमजोर वृद्धि दर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के कारण ही रही, जबकि सेवा क्षेत्र का प्रदर्शन अच्छा रहा। यदि सेवा क्षेत्र की तरह मैन्युफैक्चरिंग में भी अच्छा प्रदर्शन रहता, तो जीडीपी के आंकड़े काफी उत्साहजनक होते।

चीन का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी अभी कई चुनौतियों से जूझ रहा है। शुरुआत में चीन बहुत तेजी से बढ़ा। समय बीतने के साथ चीन में अन्य लागत के साथ श्रम लागत भी बढ़ी है। इस कारण दुनिया मैन्युफैक्चरिंग का दूसरा हब खोज रही है। जाहिर है कि भारत विकल्प बन सकता है। यदि भारत मैन्युफैक्चरिंग पर फोकस करता है तो वस्तु निर्यात में पुन: वृद्धि हो सकती है। मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में ज्यादा स्थिर नौकरियां होती हैं और इस राह पर आगे बढ़ने की जरूरत है।

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