जीपीएफ घोटाले से प्रक्रिया और बंदोबस्त पर सवाल …!
वि वादों के लिए बदनाम उज्जैन की केंद्रीय भैरवगढ़ जेल में जीपीएफ घोटाले का बम फटा तो उज्जैन से भोपाल तक हड़कंप मच गया। कर्मचारियों की जिंदगीभर की बचत और बुढ़ापे के सहारे जीपीएफ में सेंधमारी हो गई। जेल कर्मचारी लाखों के कर्जदार हो गए, जिससे न सिर्फ जेलकर्मी बल्कि उनके परिवार भी चिंता की गहरी खाई में डूब गए। एक-दो नहीं पूरे 100 कर्मचारियों के खातों से 15 करोड़ की राशि खुर्द-बुर्द की गई। इसमें जेल अधीक्षक की लिप्तता ने आमजन के विश्वास को बहुत आहत किया है, जिसकी भरपाई बहुत मुश्किल होगी।
प्रदेश में तरह-तरह घोटाले सामने आते रहते हैं, कोई रसूख के बल पर पेंशन डकार जाता है तो कोई पोषण आहार को कुपोषित कर देता है। लेकिन इस घोटाले में तो सरकार के पास जमा कराई बचत को साथी कर्मचारियों ने ही हड़प लिया। भैरवगढ़ जेल के साथ 11 उप जेलों के कर्मचारियों के खातों पर जिला कोषालय और जेल के लेखा विभाग के कर्मचारियों ने ही सांठगांठ कर डाका डाल दिया। किसी के लालच की पराकाष्ठा ने किसी अन्य के बच्चों की शादी के सपने बिखेर दिए तो किसी के अपने घर की कहानी को ही खत्म कर दिया। जेल अधीक्षक के आइडी, कोड, पासवर्ड और ई-सिग्नेचर का दुरुपयोग कर काले कारनामे का नया उदाहरण पेश किया है। उज्जैन, देवास, शाजापुर और आगर जिले के जेल कर्मचारियों के जीपीएफ खातों से राशि निकालने के लिए 100 सिम खरीदी, फार्म में कर्मचारियों के फोन नंबर को जेल के लैंड लाइन से बदलकर हेराफेरी कर डाली। तीन साल से धोखे का धंधा होता रहा और जिम्मेदार अपनी दुनिया में रमे रहे। लापरवाही, अनदेखी की हद है, किसी को कानों कान खबर नहीं हुई। सवाल यह कि क्या सरकारी विभाग अपने लोगों की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं? अफसर मातहतों की जिंदगीभर की जमापूंजी के खैरियत नहीं देख पा रहे हैं। सरकारी विभाग सिर्फ घोटलों के बाद जांच तक सीमित हो गए हैं। अब सख्ती जरूरी है। पूरे तंत्र की संपूर्ण प्रक्रिया को देखना-परखना-और संवारना होगा। भ्रष्ट तंत्र को जड़ से उखाड़कर फेंकना होगा। इस घोटाले को चेतावनी मानकर जीपीएफ जैसे खातों की सुरक्षा बढ़ाना होगी। ऋण प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना होगा। इसके बाद ही आहत विश्वास पर कुछ मरहम लग पाएगा और नए सिरे विश्वास की पूंजी जमा हो पाएगी। इसके लिए यह भी जरूरी है कि घोटाले की जांच के लिए बनी एसआईटी जल्दी पुख्ता कार्रवाई करे