प्रश्न पत्रों का लीक होना पूरे प्रशासनिक तंत्र की विफलता ..!
प्र देश में माध्यमिक शिक्षा मंडल की हाई स्कूल और हायर सेकंडरी स्कूल की परीक्षाओं में प्रश्नपत्र वायरल होने के एक के बाद एक मामले सामने आना व्यवस्था पर कड़ा सवालिया निशान है। सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि सरकार के स्तर पर पहले तो इसे गंभीरता से ही नहीं लिया गया। यह अपराध है फिर भी सरकार के स्तर पर इसे गलती मानकर नसीहत और चेतावनी से काम चलाने की कोशिश हुई। बाद में जब कार्रवाई हुई तो वह भी लापरवाही मानते हुए। ग्वालियर-चंबल के जिलों के साथ खंडवा, दमोह, रीवा, राजगढ़ व अन्य शहरों में इन मामलों में कार्रवाई भी हुई। राजगढ़ में कई की मिलीभगत का खुलासा हुआ। एफआईआर हुई, कई निलंबित भी हुए, फिर भी अब तक जो भी कार्रवाई की गई वह पर्याप्त नहीं है। किसी केंद्राध्यक्ष और सहायक केंद्राध्यक्षक को लापरवाह मानकर निलंबित किया गया, किसी शिक्षक या कर्मचारी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराई गई है तो नि: संदेह यह लापरवाही की परिधि से बाहर का मामला है। यह सुनियोजित तरीके से पेपर लीक कराने का अपराध है। और अगर प्रश्नपत्र लीक हुआ है तो माध्यमिक शिक्षा मंडल ने नियमानुसार अभी तक कोई भी प्रश्नपत्र निरस्त क्यों नहीं किया गया? हालात यह हैं कि मुरैना के जौरा में ऐसी ही गड़बड़ी में केंद्राध्यक्ष समेत चार के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई में ही 24 घंटे से अधिक का समय लग गया। ग्वालियर-चंबल नकल के लिए कुख्यात रहे हैं। इस बार तो मंडल की परीक्षाओं में सॉल्वर बैठाने के मामले तक सामने आए जो कि व्यापमं या अन्य भर्तियों में होते रहे हैं। पेपर लीक का दाग लगने के बाद अब माध्यमिक शिक्षा मंडल को भी अपनी परीक्षा प्रणाली को चाकचौबंद बनाने पर विचार करना होगा। तकनीक के इस दौर में जरा सी चूक परीक्षा प्रणाली में सेंध लगा सकती है। एनएचएम संविदा नर्स भर्ती परीक्षा में पेपर लीक कराने वाली गैंग ने सर्वर में ही सेंध लगा दी। थोड़ा सा लालच, बड़ा फायदा देख परीक्षा की गोपनीयता को भंग कर देने के मामलों पर अंकुश तभी संभव है जब इस गड़बड़ी को स्वीकारा जाए। न कि टालमटोल या फिर लापरवाही का जामा पहनाकर अपना दामन बचाने की कोशिश हो। इसके बाद सख्त कदम भी जरूरी है। अब यह मान लेना चाहिए कि हर परीक्षा किसी छात्र या अभ्यर्थी की नहीं है बल्कि सरकार की भी है, उसकी निगरानी करने वाले प्रशासन और उससे जुड़ी एजेंसियों की भी है। पेपर लीक होना अकेले होनहार छात्र या अभ्यर्थी की उम्मीदों का विफल हो जाना नहीं है, यह पूरे तंत्र की विफलता है।