विपक्षी सांसदों के सामने इसके सिवा कोई चारा नहीं रह गया है कि वे कंटेंट-क्रिएटर बनें
संसद का दूसरा सप्ताह : कांग्रेस, द्रमुक, सपा और अन्य दलों के विपक्षी सांसदों ने संसद भवन के सामने बड़ा-सा बैनर लगाकर संयुक्त संसदीय समिति या जेपीसी के गठन की मांग की। कुछ सांसदों ने उन टोपियों पर हस्ताक्षर किए, जिन पर लिखा था- अदाणी को गिरफ्तार करो। फिर उन टोपियों को वित्त मंत्री, ईडी और सीबीआई के कार्यालयों में ले जाया गया।
संसद का तीसरा सप्ताह : एक दर्जन से भी अधिक दलों के सांसदों ने विरोध प्रदर्शित करने के लिए संसद में काले कपड़े पहने। आप पूछ सकते हैं कि संसद के विपक्षी सांसद ऐसा क्यों कर रहे हैं? आलोचकगण इसे नौटंकी भी करार दे सकते हैं। लेकिन किसी भी नतीजे पर पहुंचने से पहले हम यह देख लें कि संसद में आज क्या हो रहा है, या बेहतर होगा अगर कहें, क्या नहीं हो रहा है!
लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाइयों का प्रसारण करने वाली संसद टीवी से जारी होने वाली तस्वीरों को सार्वजनिक किए जाने से पूर्व एडिट कर दिया जाता है। विपक्षी सांसदों के प्रतिरोध की तस्वीरें न के बराबर दिखाई जाती हैं। पूरा फोकस स्पीकर, सभापति और सत्तापक्ष पर रहता है।
सदन में अपनी सीट पर या वेल में जाकर विरोध करने वाले विपक्षी सांसदों की तस्वीरों को सेंसर कर दिया जाता है। बात केवल संसद टीवी की ही नहीं है, अन्य मीडिया संस्थानों की भी अपनी प्राथमिकताएं हैं। पिछले हफ्ते का एक उदाहरण देखें।
शुक्रवार को प्रधानमंत्री वाराणसी में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। दोपहर के दो बजे थे। सभी चैनल उसे दिखा रहे थे। ठीक उसी समय राहुल गांधी की संसद सदस्यता निरस्त होने की खबर आई। लेकिन विपक्षी दलों ने टीवी चैनलों का इंतजार नहीं किया। इसकी ब्रेकिंग न्यूज हमें ही अपने सोशल मीडिया हैंडलों से देशवासियों को देना पड़ी।
लेकिन सरकार की तरफ झुकाव रखने वाली रिपोर्टिंग की शिकायत करने का कोई फायदा नहीं है। इसके बजाय ‘राजनेता-पत्रकार’ बनने का समय आ गया है! ये ‘राजनेता-पत्रकार’ वो होंगे, जो सशक्त कम्युनिकेशन के जरिए सक्रियतापूर्वक अपने नैरेटिव की स्थापना करेंगे, फिर चाहे वैसा वे अपने मोबाइल के माध्यम से ही क्यों न करें। मैंने एक एड एजेंसी ओगिल्वी एंड मैथर के क्रिएटिव डिपार्टमेंट में अपनी युवावस्था के आठ साल बिताए थे और वो अनुभव काम आ रहा है।
बिखरे हुए विचारों को दुरुस्त करने वाला राजनीतिक कंटेंट सामने रखना आसान नहीं है। हम ऐसे दौर में आ चुके हैं, जिसमें देशहित के लिए संघर्ष कर रहे राजनीतिक दल किसी मीडिया हाउस से प्राइम टाइम टीवी में उपस्थित होने का प्रस्ताव मिलने की प्रतीक्षा नहीं करेंगे। इसके बजाय केंद्र को चुनौती देने वाले लोग ऐसे मीडिया स्पेस की रचना करेंगे, जिसके माध्यम से वो लोगों से सीधे संवाद कर सकें।
मौजूदा बजट सत्र को ही देखें। सत्ता पक्ष के सांसदों द्वारा नारेबाजी की जा रही है। 45 लाख करोड़ का आम बजट मात्र नौ मिनटों में पास कर दिया गया। इसके अगले दिन वित्त विधायक 2023 भी बिना किसी बहस के पारित कर दिया गया। आज पारित किए जाने वाले दस विधेयकों में से कम से कम चार अध्यादेश होते हैं।
बीस साल पहले यह संख्या दस विधेयकों के अनुपात में दो अध्यादेशों की थी। 2022 के बजट सत्र में बहस के लिए केवल 62 प्रतिशत उपलब्ध समय का उपयोग किया जा सका था। राज्यसभा ने तो 48 प्रतिशत ही समय का उपयोग किया। संसद के पिछले आठ सत्र निर्धारित समय से पूर्व भंग किए गए हैं। लेकिन इन गम्भीर मसलों को मीडिया में जगह नहीं दी जा रही है। सरकार चीजों पर पूर्ण नियंत्रण रखना चाहती है।
वरिष्ठ सम्पादकों को पहले की तरह अब सेंट्रल हॉल में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाती है। संसद भवन में बीते कई वर्षों से किसी राजनीतिक दल ने एक औपचारिक प्रेसवार्ता नहीं ली है। पत्रकारों के प्रवेश को भी सीमित कर दिया गया है और हर मीडिया समूह को एक ही पास दिया जाता है, अलबत्ता कुछ मीडिया समूहों को इसमें विशेष छूट दी जाती है! ऐसे में अब विपक्षी सांसदों के सामने इसके सिवा कोई और चारा नहीं रह गया है कि वे कंटेंट-क्रिएटर की भूमिका में आकर ‘राजनेता-पत्रकार’ का काम करें!
मौजूदा दौर के ‘राजनेता-पत्रकार’ वो होंगे, जो सशक्त कम्युनिकेशन के माध्यम से सक्रियतापूर्वक अपने नैरेटिव की स्थापना करेंगे, फिर चाहे वैसा वे अपने मोबाइल फोन के माध्यम से ही क्यों न करें।