ग्वालियर – मेडिकल यूनिवर्सिर्टी में 180 करोड़ का घोटाला .!
प्रदेश की इकलौती मेडिकल यूनिवर्सिर्टी में 180 करोड़ का घोटाला, जांच का फैसला
ग्वालियर के कार्यपरिषद सदस्य ने आपत्ति कर आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो से जांच की अनुशंसा की
ग्वालियर/जबलपुर. मध्यप्रदेश की इकलौती मेडिकल यूनिवर्सिटी में आर्थिक अनियमितता का बड़ा मामला सामने आया है। इसमें 180 करोड़ की राशि चालू खाते में रखी गई, जिससे ब्याज के तौर पर यूनिवर्सिटी को मिलने वाला मुनाफा नहीं मिल पाया। इस बड़े नुकसान को लेकर आपत्ति उठाई गई। राजभवन तक शिकायत हुई। आखिर में कार्यपरिषद सदस्यों ने इस घोटाले की जांच आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो यानी ईओडब्लू से कराने की सिफारिश कर डाली है।
आर्थिक घोटाले का मामला राजभवन के संज्ञान में लाया गया। मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इसे कार्यपरिषद सदस्यों को भी भेजा। इनमें ग्वालियर के रहने वाले डॉ. सुनील सिंह राठौर ने इसे गंभीरता से लिया। बजट बैठक के दौरान उन्होंने मामले पर चर्चा की। अन्य कार्यर्परिषद सदस्य ने भी उनका समर्थन करते हुए इसे आर्थिक अनियमितता मानते हुए दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की अनुशंसा की।
आर्थिक घोटाले का मामला राजभवन के संज्ञान में लाया गया। मेडिकल यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इसे कार्यपरिषद सदस्यों को भी भेजा। इनमें ग्वालियर के रहने वाले डॉ. सुनील सिंह राठौर ने इसे गंभीरता से लिया। बजट बैठक के दौरान उन्होंने मामले पर चर्चा की। अन्य कार्यर्परिषद सदस्य ने भी उनका समर्थन करते हुए इसे आर्थिक अनियमितता मानते हुए दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की अनुशंसा की।
करोड़ों रुपए पर नहीं दिया ध्यान, होता रहा नुकसान
इस संबंध में एमपी स्टूडेंट यूनियन ने विस्तार से इसकी शिकायत राज्यपाल से की है। जिसमें विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. पुष्पराज सिंह एवं वित्त नियंत्रक रवि शंकर डिकाटे को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए जांच कर कार्रवाई की मांग उठाई थी। शिकायत में बताया गया कि करोड़ों रुपए की रकम को सही ढंग से सावधि जमा कराने का निर्णय नहीं लिए जाने से यूनिवर्सिटी को नुकसान हुआ है।
इस संबंध में एमपी स्टूडेंट यूनियन ने विस्तार से इसकी शिकायत राज्यपाल से की है। जिसमें विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार डॉ. पुष्पराज सिंह एवं वित्त नियंत्रक रवि शंकर डिकाटे को इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए जांच कर कार्रवाई की मांग उठाई थी। शिकायत में बताया गया कि करोड़ों रुपए की रकम को सही ढंग से सावधि जमा कराने का निर्णय नहीं लिए जाने से यूनिवर्सिटी को नुकसान हुआ है।
आप भी जानिए कैसे हुई इतनी बड़ी गड़बड़ी
-मेडिकल यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने वर्ष 2017 से ऑडिट नहीं कराया।
-सावधि जमा (एफडी) मैच्योर होने पर भी इन्हें रिन्यू नहीं कराया।
-इस तरह करोड़ों की बड़ी राशि चालू खाते में ही पड़ी रही। इसमें परीक्षा शुल्क के 110 करोड़, संबद्धता शुल्क के 60 करोड़ हैं।
-मेडिकल यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने वर्ष 2017 से ऑडिट नहीं कराया।
-सावधि जमा (एफडी) मैच्योर होने पर भी इन्हें रिन्यू नहीं कराया।
-इस तरह करोड़ों की बड़ी राशि चालू खाते में ही पड़ी रही। इसमें परीक्षा शुल्क के 110 करोड़, संबद्धता शुल्क के 60 करोड़ हैं।
अब आगे क्या
-मेडिकल यूनिवर्सिर्टी में लेखा संधारण ठीक ढंग से करने, संस्थान को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए चार्टड अकाउंटेंट फर्म की नियुक्ति को मंजूरी दी गई।
-10 करोड़ से ज्यादा राशि चालू खाते में नहीं रखने की हिदायत दी गई, इस राशि को बैंक में एफडीआर के माध्यम से अधिकतम ब्याज दर पर सुरक्षित रखा जाए।
-मेडिकल यूनिवर्सिर्टी में लेखा संधारण ठीक ढंग से करने, संस्थान को आर्थिक नुकसान से बचाने के लिए चार्टड अकाउंटेंट फर्म की नियुक्ति को मंजूरी दी गई।
-10 करोड़ से ज्यादा राशि चालू खाते में नहीं रखने की हिदायत दी गई, इस राशि को बैंक में एफडीआर के माध्यम से अधिकतम ब्याज दर पर सुरक्षित रखा जाए।