नवागत पुलिस आयुक्त मकरंद देउस्कर ने आते ही अमले की नब्ज पर हाथ रख दिया। आयुक्त ने सर्वप्रथम उस धांधली को पकड़ा जो वर्षों से चली आ रही थी। मातहत अब उनके रजिस्टर की जानकारी निकालने में लगे हुए हैं। भोपाल से इंदौर आए देउस्कर यह तो समझ गए कि थानों और वरिष्ठ कार्यालयों पर मनमर्जी चल रही है। कार्यभार संभालने के दूसरे दिन देउस्कर के दफ्तर में आवेदकों की भीड़ लग गई। दिनभर सुनवाई करने के बाद भी कतार समाप्त न होने पर आयुक्त चौंके और सच्चाई जानने में जुट गए। दूसरे दिन रजिस्टर बनाया जिसमें आवेदन और आवेदकों की एंट्री तो की साथ में यह भी लिखा कि पूर्व में किस-किस अफसर को आवेदन दिया गया था। आयुक्त अब उन लोगों से जवाब तलब करने की तैयारी में हैं जिन्होंने आवेदन लिए और रद्दी की टोकरी में डाल दिए। कम समय में ऐसे अफसरों को भी चिह्नित कर लिया जो सिर्फ टाइम पास कर रहे हैं।
दफ्तरों से एसी और फर्नीचर उखाड़ ले गए अफसर
थोकबंद तबादलों के बाद दफ्तरों की हालत बदली-बदली सी है। कुछ पुलिस अफसरों के दफ्तर तो बैठने लायक भी नहीं हैं। आयुक्त मकरंद देउस्कर ने भी उनके नए ठिये बना दिए हैं। दरअसल तबादले के बाद कुछ अफसर उनके कार्यालय में लगे एसी और फर्नीचर ले गए। अफसर जब नई पदस्थापना पर पहुंचे तो टूटा-फूटा दफ्तर देख चौंक गए। कुछ में तो एसी के कारण पीओपी तक उखड़ी हुई थी। अब अफसर स्वयं के रुपयों से एसी और वालपेपर लगवा रहे हैं। उनके साथ एक समस्या आयुक्त की बैठक भी है। पलासिया पुलिस कंट्रोलरूम को कमिश्नोरेट बनाने के बाद वे अधिकारियों पर बराबर नजर बनाए हुए हैं। ऐसे में अपने संपर्कों से साज सज्जा करवाने वाले अफसर फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं।
डीसीपी के जाने का इंतजार क्यों कर रहे अफसर
अपराध शाखा के डीसीपी निमिष अग्रवाल के लिए हर पुलिसकर्मी चिंतित है। चिंता उनके तबादले को लेकर हो रही है। ज्यादातर पुलिसकर्मी चाहते हैं कि डीसीपी जल्द से जल्द रिलीव हो जाएं। डीसीपी अग्रवाल का राज्य शासन ने पुलिस ट्रेनिंग कालेज (पीटीसी) में तबादला कर दिया था। उनकी गृहमंत्री डाक्टर नरोत्तम मिश्रा से अदावत रही है। अग्रवाल की इमानदार छवि के अफसरों में गिनती होती है। उनके स्थान पर उज्जैन से अभिषेक आनंद को भेजा गया था। करीब 15 महीने के कार्यकाल में ही डीसीपी ने अपराध शाखा को पटरी पर ला दिया। जैसे ही उनका तबादला हुआ उन पुलिसकर्मियों में खुशी की लहर छा गई जो डीसीपी के निशाने पर थे। लेकिन आयुक्त ने उन्हें रिलीव करने से मना कर दिया। आयुक्त पूर्व में इंटेलिजेंस आइजी और सीएम के ओएसडी रहे हैं। पुलिस मुख्यालय और सीएम हाउस में उनकी बात को काफी महत्व दिया जाता है।
एसडीईआरएफ लेकर स्वयं पहुंच गए डीआइजी
बावड़ी हादसे में यूं तो पुलिस और सेना की भूमिका की जितनी तारीफ की जाए, कम है, लेकिन एसडीईआरएफ ने गजब का जज्बा दिखाया। तीन दिन पूर्व ही पद संभालने वाले डीआइजी (होमगार्ड) महेशचंद्र जैन टीम लेकर स्वयं पहुंच गए। यातायात डीसीपी रहे जैन का 25 मार्च को ही डीआइजी होमगार्ड व एसडीईआरएफ के पद पर तबादला हुआ था। गुरुवार को जैसे ही घटना की सूचना मिली़, वे दल-बल के साथ मौके पर पहुंच गए। जिला प्रशासन ने सेना को संदेश भेजा। इसके पहले ही एसडीईआरएफ ने 15 से ज्यादा लोगों को जिंदा निकाल लिया। शुरुआती रेस्क्यू आपरेशन में शामिल रही एसडीईआरएफ के पास उस समय पर्याप्त संसाधन भी नहीं थे। जाते-जाते मेजर अर्जुनसिंह उन जवानों से मिले, जिनकी बदौलत 15 लोगों की जान बची। मेजर ने तो यह भी कहा कि एसडीईआरएफ न होती तो बचाव कार्य में दिक्कत होती।