कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में रेस

कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में रेस

एक्जिट पोल पर यकीन नहीं करना चाहिए,जनादेश कुछ भी हो सकता है ,लेकिन कर्नाटक के नाटक का पटाक्षेप हुआ सा लगता है .यवनिका के पीछे से जो आवाजें आ रहीं हैं वे बजरंगबली की नहीं हैं. कर्नाटक के बाद अब रेस होना है मध्यप्रदेश में ,राजस्थान में ,छत्तीसगढ़ में .लेकिन आज हम मध्यप्रदेश की बात करते हैं ,क्योंकि मध्यप्रदेश में एक पिता अपने बेटे को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने के लिए दिन-रात एक किये हुए है .

मध्यप्रदेश में सत्ता का संग्राम करनाक की ही तरह रोचक होने वाला है,क्योंकि यहां राजस्थान और छग से अलग परिदृश्य है .मध्यप्रदेश में कांग्रेस की दशा घायल शेर जैसी है.उस शेर जैसी जिसके मुंह से मांस का टुकड़ा छीन लिया गया हो और बेचारा कुछ न कर पाया हो . कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए इस साल के अंत में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न बने हुए हैं .

मध्यप्रदेश में अब न कांग्रेस पहले वाली कांग्रेस है और न सत्तारूढ़ भाजपा पहले जैसी भाजपा .कांग्रेस की सरकार बनवाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा का महल रोशन कर रहे हैं ,जबकि कांग्रेस में सारा दारोमदार कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने अपने कन्धों पर ले रखा है .कमलनाथ को अपनी प्रतिष्ठा बचाना है और अपमान का बदला लेना है जबकि दिग्विजय सिंह को अपने बेटे जयवर्द्धन को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाना है .दोनों के लक्ष्य साफ़ हैं और इनकी राह में अब कोई रोड़ा भी नहीं है .
पिछले तीन साल से सत्तारूढ़ भाजपा भी अब पहले जैसीई भाजपा नहीं रही. भाजपा तो मध्यप्रदेश में 2018 में ही जनता द्वारा खारिज की जा चुकी थी,लेकिन अब तीन साल जबरन सत्ता में रहने के बाद उसकी दशा 2018 से भी ज्यादा खराब हो गयी है .2018 में शिवराज बनाम महाराज था लेकिन 2023 में शिवराज और महाराज एक ही मंच पर हैं .महाराज के भाजपा में शामिल होने से भाजपा मजबूत होने के बजाय और कमजोर हो गयी .इसका ताजा उदाहरण है की भाजपा के दिग्गज नेता रहे पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी के पुत्र और पूर्व मंत्री दीपक जोशी भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए .
सत्तारूढ़ भाजपा में असंतोष की गाजर घास चारों और फ़ैल चुकी है. असंतुष्ट नेता अपने हिस्से का एक पौंड गोश्त मांग रहे हैं और न देने पर दीपक जोशी बनने की परोक्ष तथा प्रत्यक्ष धमकियां भी दे रहे हैं .मतलब साफ़ है की भाजपा को विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले अपने आपसे लड़ना पडेगा .यानि भाजपा के लिए वर्ष २०२३ का विधानसभा चुनाव वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से भी ज्यादा कठिन चुनाव है.
लौटकर आते हैं कांग्रेस पर. कांग्रेस में कमलनाथ ने स्पष्ट कार्यविभाजन कर दिया है. उनका कोई प्रतिद्वंदी नहीं है. वे अपने ढंग से काम कर रहे हैं. कमलनाथ ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विही सिंह को संगठन की कमान सौंप दी है .तोड़फोड़ और प्रबंधन का जिम्मा उन्होंने अपने कन्धों पर लिया है .टिकिट वितरण में भी भी उन्हें किसी की नहीं सुनना .जो जीतने लायक होगा टिकिट पायेगा और नहीं होगा उसे जाना ही होगा ,कमलनाथ के स्वभाव को समझने और जान्ने वाले पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह चुपचाप अपने मिशन में लग गए हैं .दिग्विजय सिंह पूरे प्रदेश में अपने बेटे जयवर्धन के साथ विधानसभा क्षेत्रों का द्वारा कर रहे हैं .
दरअसल दिग्विजय सिंह की मुहीम कांग्रेस की सत्ता में वापसी के साथ ही अपने बेटे को सत्ता के शीर्ष पर पहुंचाने की है .वे इस खेल में माहिर हैं. कांग्रेस की सरकार में भी उन्होंने अपने बेटे को पहली बार में ही केबिनेट स्तर का मंत्री बनवा लिया था ,और इसके लिए कितने नियम तोड़े गए थे,ये बताने की जरूरत नहीं है. दिग्विजय सिंह जानते हैं की 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद भले ही कमलनाथ मुख्यमंत्री बन जाएँ किन्तु वे ज्यादा दिन ये जिम्मेदारी निभाएंगे नहीं और अंतत: वे पाने बेटे को आगे बढ़ा सकते हैं .कुछ लोगों का मानना है की 2018 में कांग्रेस की सरकार को बचाया जा सकता था लेकिन उसे जानबूझकर कुर्बान किया गया ताकि दिग्विजय में कोई व्यवधान न आये ,और ज्योतिरादित्य सिंधिया बाहर जाए .
दिग्विजय संघ की ही तरह भाजपा और कांग्रेस के तमाम शीर्ष नेताओं में अपने बच्चों के राजनीतिक भविष्य को लेकर फिक्रमंदी है .हर कोई चाहता है की इस बार के विधानसभा चुनाव में उनके बच्चे कम से कम विधायक तो बन ही जाएँ. केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार अपने बेटे आर्यमन को चुनाव मैदान में उतारना चाहते हैं,लेकिन वे विधानसभा के रस्ते राजनीति में आएंगे या लोकसभा के रस्ते ये अभी स्पष्ट नहीं है .केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर अपने बेटे देवेंद्र प्रताप सिंह के लिए और भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा आपने बेटे तुष्मुल झा के लिए चिंतित हैं .पूर्व मंत्री श्रीमती माया सिंह अपने बेटे के लिए तो स्थानीय सांसद विवेक शेजवलकर अपने बेटे के लिए कुर्बानियां देने को तैयार दिखाई देते हैं .
कर्नाटक के विधानसभा चुनाव परिणाम आते ही मध्यप्रदेश में परिदृश्य साफ़ हो जाएगा. राजस्थान और छग में स्थितियां साफ़ दिखाई दे रही हैं .वहां जो होना है सो लगभग तय है .इसलिए भाजपा को सबसे ज्यादा फ़िक्र मध्यप्रदेश की है .मध्यप्रदेश देश में भाजपा की सरकार बनवाने वाले प्रदेशों में से एक प्रमुख प्रदेश है.यहां की लोकसभा की 29 सीटों में से 28 भाजपा के पास हैं ,लेकिन यदि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गयी तो भाजपा के लिए 2024 के आम चुनाव में मध्यप्रदेश से अपने लिए ज्यादा हासिल करना कठिन हो जाएगा .
मध्यप्रदेश में भाजपा के सामने सत्ता का एक अनार है और सौ बीमार हैं जबकि कांग्रेस में ऐसी दशा नहीं है. कांग्रेस में स्पष्ट है कि सरकार बनने पर कौन मुख्यमंत्री बनेगा ? पिछले विधानसभा चुनाव में महाराज के हाथों निबट चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इस बार कौन निबटायेगा ये बताने की जरूरत नहीं है .चौहान की भी चिंता दुसरे नेताओं की तरह अपने बेटे को राजनीति में स्थापित करने की है .यानि इस बार का विधानसभा चुनाव पिछले चुनावों से बिलकुल अलग दिखाई देगा .देखना होगा कि कौन सा पिता अपने बेटे के लिए जमीन हासिल कर पाता है और कौन सा नहीं ?
@ राकेश अचल

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