चंबल की रेत खदानों के टेंडर डालने नहीं आ रहीं कंपनी …?

रेत के लिए लंबा इंतजार ….

चंबल की रेत खदानों के टेंडर डालने नहीं आ रहीं कंपनी, तीन बार बढ़ाई गई अंतिम तिथि …

चंबल का रेत आमजन को सुलभ होने में अभी और समय लग सकता है। स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन टेंडर जमा करने की अंतिम तिथि को तीन बार आगे बढ़ा चुकी है। इसका कारण है कि कोई भी पार्टी टेंडर डालने के लिए आगे नहीं आ रही है। एक्सपर्ट की मानें तो चंबल की खदानों के जो दो ग्रुप बनाए गए हैं, उनमें शामिल सभी छह खदान 5 हैक्टेयर से बड़ी हैं। ऐसे में डिया(डिस्ट्रिक्ट एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेस्मेंट अथॉरिटी), सिया (स्टेट एनवायरमेंट इंपैक्ट एसेस्मेंट अथॉरिटी) और पॉल्युशन बोर्ड की अनुमति में समय लगने का अंदेशा कंपनियों को टेंडर डालने से रोक रहा है।

करोड़ों रुपए फंसा कर कंपनियां अनुमति मिलने के इंतजार में अपना नुकसान करना नहीं चाह रही हैं। जनवरी महीने में जारी अधिसूचना के तहत चंबल के 6 घाट अभयारण्य क्षेत्र से बाहर कर दिए गए हैं। इन घाटों पर सर्वे कार्य पूरा स्टेट माइनिंग कॉर्पोरेशन ने 12 अप्रैल को घाटों के दो समूह बनाकर कंपनियों से टेंडर आमंत्रित किए थे। टेंडर जमा करने की आखरी तिथि 8 मई रखी गई थी। इससे पहले टेंडर से संबंधित जानकारी के लिए एक मीटिंग आयोजित हुई, जिसमें रेत खोदने की इच्छुक कंपनियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।

इन कंपनियों में भिंड, दतिया और ग्वालियर में काम कर चुकी रेत कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए। लेकिन टेंडर डालने की बारी आई तो 8 मई तक कोई प्रविष्टि माइनिंग कॉर्पोरेशन को प्राप्त नहीं हुई। इसके बाद आखरी तारीख बढ़ाकर 15 मई कर दी गई। लेकिन टेंडर नहीं आए। अब इस तारीख को बढ़ाकर 19 मई कर दिया है। कॉर्पोरेशन को उम्मीद है कि कंपनियां इस बार आगे आएं।

चंबल की रेत रॉयल्टी से उपलब्ध होने में लग सकता है सालभर का समय

56 हेक्टेयर तक की खदानें, सभी अनुमति राज्य से मिलेंगी एक्सपर्ट्स की मानें तो कंपनियां जानती हैं कि 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्र फल वाली खदानों की सभी एनओसी मिलने में दो से 4 महीने का समय लगता है।

ऐसे में चंबल अभयारण्य की खदानें 56 हैक्टेयर तक क्षेत्रफल की हैं। कंपनियों को लग रहा है कि अनुमति मिलने में 5 महीने से 8 महीने तक लग सकता है। क्योंकि 5 हैक्टेयर से बड़ी खदानों की अनुमति राज्य पॉल्युशन बोर्ड, डिया और पर्यावरण मंत्रालय से मिलती हैं।

कंपनी जानती है राज्य स्तर से मिलती है एनओसी
रेत कंपनियां एनओसी मिलने की प्रकिया से भली भांति परिचित हैं। 5 हेक्टेयर से बड़ी खदानों की लगभग सभी एनओसी राज्य स्तर से मिलती हैं। इसमें महीनों लग जाते हैं। चंबल की खदानें तो 56 हेक्टेयर तक क्षेत्रफल वाली हैं। इनकी अनुमतियों में समय लगेगा। टेंडर होने पर 40 करोड़ से ज्यादा पैसा जमा हो जाएगा। – संजय गोयल, खनन मामलों के जानकार

कंपनियां पूछ रही सवाल
कंपनियों को पैसे फंसने का डर है और एनओसी मिलने में संशय है। इसलिए टेंडर डालने के इच्छुक लोग लिखित में क्वेरी लगाकर माइनिंग कॉर्पोरेशन से जानना चाह रहे हैं कि उन्हें एनओसी मिलने में दिक्कत तो नहीं होगी। इससे पहले भी राज्य शासन स्तर पर हुई एक बैठक में प्रदेश के खदान ठेकेदार यह मंशा जाहिर कर चुके हैं, कि एनओसी लेने का काम खुद राज्य सरकार कॉर्पोरेशन के माध्यम से करवाए।

लेकिन वर्तमान में एनओसी लेने का जिम्मा उन्हीं कंपनियों का रखा गया है, जो टेंडर लेती हैं। मुरैना, श्योपुर के लोगों को खदानें शुरू होने का बेसब्री से इंतजार है। वैध खदान शुरू होने से लोगों को सहत ही रेत मिल पाएगा। साथ ही रेत की कीमतें भी निर्धारित हो सकेंगी। सरकारी निर्माण कार्य में भी चंबल के रेत को अनुमति मिलेगी। सबसे बड़ा लाभ अंचल में रेत चोरी करने वाले माफिया द्वारा अंजाम दी जाने वाली दुर्घटनाओं पर विराम लगने होगा।

ये समूह और घाट शामिल
समूह एक में श्योपुर जिले के बड़ौदा तहसील का घाट शामिल है। इसमें रेत की मात्रा 1 लाख 70 हजार 802 घनमीटर है, इसकी दर 4 करोड़ 27 लाख है। इसी तरह समूह दो में मुरैना के राजघाट, भानपुर, पिपरई में रेत की मात्रा 11 लाख 83 हजार घन मीटर और दर 29 करोड़ 58 लाख रखी गई है। इधर ग्रुप दो के भाग दो में बरवासिन घाट, खांडौली, कैंथरी में रेत की मात्रा 16 लाख 37 हजार घन मीटर है। इसकी दर 40 करोड़ 93 लाख 77 हजार रुपए रखी गई है।

दो बार बढ़ाई तारीखें
टेंडर प्रकिया में भाग लेने के लिए कंपनियां अरुचि दिखा रही हैं। इसलिए निविदा की अंतिम तिथि दो बार बढ़ाई है। एनओसी लेने का काम कंपनियों का ही है। हम ठेकेदारों की जिज्ञासाओं का समाधान करने के लिए बैठक कर चुके हैं। उम्मीद है कि इस बार प्रविष्टि जरूर प्राप्त होंगी।
आशुतोष टेमले, महाप्रबंधक मध्यप्रदेश राज्य खनिज निगम

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