आखिर क्यों ढह रहा है बॉलीवुड ..?
आखिर क्यों ढह रहा है बॉलीवुड, बड़े-बड़े स्टारों की चमक हो चुकी है फीकी?
पिछले कुछ सालों से दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री ‘बॉलीवुड’ यानी हिंदी सिनेमा संघर्ष के बुरे दौर से गुजर रहा है. क्या इसके पीछे की वजह फिल्मों की कहानियों का बेदम होना है या इसकी वजह कुछ और है?
भारत के 1.4 अरब लोगों में से एक चौथाई अब स्ट्रीमिंग सेवाओं का इस्तेमाल करते हैं, ये संख्या लगातार बढ़ रही है.
2023 के शुरुआती 6 महीने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए अच्छे नहीं दिख रहे हैं. शाहरुख खान अभिनीत फिल्म ‘पठान’ की कामयाबी के बावजूद पिछले साल के मुकाबले हिंदी सिनेमा की कुल बॉक्स ऑफिस कमाई में 22 फीसदी की गिरावट आई है. यह अपने आप में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए बुरी खबर है.
वहीं निर्माता सुदीप्तो सेन की द केरल स्टोरी ने 303 करोड़ रुपये की कमाई की. इसी के साथ ये फिल्म साल की तीसरी सबसे ज्यादा हिंदी कमाई करने वाली फिल्म बनी. ये फिल्म कमाई के मामले में शाहरुख खान की पठान से एक कदम पीछे हैं.
बता दें कि फिल्म द केरला स्टोरी ने साल 2022 में आई ‘द कश्मीर फाइल्स’ के पैटर्न को दोहराया. 15 करोड़ रुपये के बजट में बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 340 करोड़ रुपये की कमाई की थी. ‘द कश्मीर फाइल्स’ में अनुपम खेर ने लीड रोल निभाया था.
फिल्म की कमाई को देखते हुए द केरला स्टोरी के निर्माता निर्देशक सुदीप्तो सेन और निर्माता विपुल शाह ने अपने अगले प्रोजेक्ट ‘बस्तर’ की घोषणा कर दी है. निर्माताओं के अनुसार बस्तर एक ‘सच्ची घटना’ पर आधारित फिल्म है. फिल्म 5 अप्रैल 2024 को रिलीज होगी. लेकिन दूसरी सच्चाई ये भी है कि कई बड़ी बजट और बिग स्टारर फिल्में इस साल बड़ी फ्लॉप साबित हुई हैं.
दर्शकों की पसंद पर खरा न उतरने वाली फिल्म का सबसे ताजा उदाहरण ओम राउत की फिल्म आदिपुरुष है. इसे आलोचकों के साथ-साथ दक्षिणपंथी संस्था से भी आलोचना का सामना करना पड़ा. फिल्म के डायलॉग को लेकर खूब विवाद हुआ, बाद में इसे बदलना भी पड़ा. प्रभास की स्टार पावर इसे केवल थोड़ा ही आगे बढ़ा सकी और ये फिल्म कुछ दिनों में धड़ाम हो गयी.
बड़े बजट में अक्षय कुमार की ‘सेल्फी’, अजय देवगन की ‘भोला’ और कार्तिक आर्यन की ‘शहजादा’ ने भी बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है. सवाल ये है कि क्या हिंदी सिनेमा अपने बुरे दौर से गुजर रहा है, आखिर बड़े स्टार होने के बावजूद भी फिल्में कमाल क्यों नहीं दिखा पा रही हैं.
कमजोर या अस्तित्वहीन कहानियों का दौर
अलजजीरा में छपी खबर के मुताबिक बॉलीवुड इंडस्ट्री के लिए ये समय पिछले एक दशक के मुकाबले सबसे खराब वक्त से गुजर रहा है. कमजोर या अस्तित्वहीन कहानियों के साथ पुरुष-नेतृत्व वाले बे सिर-पैर के नाटक ने हिंदी फिल्म जगत को एक ऐसे चौराहे पर ला दिया है, जहां पर पहचान को बरकरार रखना भी मुश्किल है.
अक्षय कुमार, आमिर खान और रणबीर कपूर जैसे भारत के कई सबसे चहेते मेगास्टार्स की बड़ी बजट की फिल्में बिना पहचान के डूब जा रही हैं. इन फ्लॉप फिल्मों में पिछले साल आई अक्षय कुमार की बच्चन पांडे, रणबीर कपूर की शमशेरा और आमिर खान की लाल सिंह चड्ढा शामिल हैं.
बात अगर बड़े स्टारों की फ्लॉप फिल्मों की हो रही है तो 2022 में आई रणबीर कपूर की फिल्म ब्रह्मास्त्र का जिक्र भी लाजिमी है. ये फिल्म दा विंची कोड और मार्वल यूनिवर्स में से एक थी. फिल्म इतनी बुरी तरह से शुरू हुई कि भारत की प्रमुख थिएटर कंपनियों, आईनॉक्स और पीवीआर के शेयरों में गिरावट आई. निर्माताओं और थिएटर मालिकों को दर्शकों को हॉल में लाने के लिए टिकट की कीमतों में कटौती करनी पड़ी.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा क्यों हो रहा है
ऐसा नहीं है कि महामारी के बाद लोग फिल्में नहीं देख रहे हैं. साउथ की फिल्में बड़ी सफलता हासिल कर रही हैं. आरआरआर और एक्शन ड्रामा पुष्पा: द राइज 2022 की भारत की टॉप परफॉर्मेंस वाली फिल्मों में से एक हैं. आरआरआर ने दुनिया भर में लगभग 160 मिलियन डॉलर की कमाई के साथ अब तक की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बनने के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
2022 मशहूर निर्देशक मणिरत्नम की पोन्नियन सेलवन: आई, एक क्लासिक तमिल भाषा में बनी कहानी थी. ये फिल्म तमिल भाषा में अब तक की चौथी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई. साथ ही ये फिल्म अब तक की 16 वीं सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म भी बनी. कन्नड़ एक्शन थ्रिलर कंतारा अब तक की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली कन्नड़ फिल्म बनी. लेकिन अब हिंदी फिल्में अपना जलवा नहीं दिखा पा रही हैं. बड़े बजट की कई फिल्में एकदम धड़ाम हो जा रही हैं.
सवाल ये है कि क्या समय-समय पर भारतीय फिल्मों के बहिष्कार की मांग इसकी वजह है. क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वर्तमान दक्षिणपंथी सरकार के समर्थक फिल्में ज्यादा पसंद की जा रही है, या फिल्म में सरकार की आलोचना दर्शकों को दूर कर रही है. लेकिन इसका जवाब यकीनन ही ‘नहीं’ है, क्योंकि अक्षय कुमार जो वर्तमान सरकार के बहुत बड़े प्रसंशक हैं उनकी फिल्मों को भले ही बहिष्कार का सामना नहीं करना पड़ा फिर भी उनकी फिल्में फ्लॉप रही हैं.
बॉलीवुड को जो पीछे ले जा रहा है उसका जवाब बहुत ही आसान है, और वो है फिल्म में कहानियों की कमी. भारत एक ऐसा देश हैं जहां के लोगों में फिल्म और कहानियों को लेकर भूख है. यहां की संस्कृति फिल्मों विशेष रूप से बॉलीवुड का भारी प्रभुत्व है. आजकल की कई बड़ी स्टारर फिल्मों में बेकार कहानियां लिखी गई जो बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी. कार्तिक आर्यन और कृति सेनन स्टारर शहजादा, लव रंजन की तू झूठी मैं मक्कार फिल्म में रणबीर कपूर और श्रद्धा कपूर थे, सलमान खान स्टारर ‘किसी का भाई किसी की जान’ इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं.
ओटीटी का जमाना आया और सिनेमा घरों का जमाना लद गया ?
ओवर-द-टॉप (ओटीटी) से पहले बॉलीवुड की आय का बड़ा हिस्सा ऐसी फिल्मों के निर्माण में चला जाता था जो क्लिच थीं और बड़े और कथित रूप से मशहूर सितारों पर निर्भर थीं. किसी भी फिल्म को देखने के लिए सिनेमाघरों में जाना आदर्श माना जाता था.
अब हालांकि ओटीटी प्लेटफार्मों पर हर तरह के कंटेंट हैं जो कमर्शियल फिल्मों में देखने को नहीं मिल रहे. भारतीय दर्शक ताजा रिलीज़ हुई कई फिल्मों को घर बैठे देख पा रहे हैं. ओटीटी के जमाने में दर्शक कल्पना हीन फिल्में देखना नहीं पसंद कर रहे हैं. जिसकी वजह से बड़े -बड़े स्टार अर्श से फर्श पर आ गिरे हैं.
रीमेक बन रहा घाटे का सौदा?
2022 में आई शाहिद कपूर की फिल्म ‘जर्सी’ चार साल पहले आई तेलुगू की नानी स्टारर जर्सी का हिंदी रीमेक है. ये फिल्म ओपनिंग में तीन करोड़ रुपये की भी बोहनी नहीं कर और पूरी कमाई 20 करोड़ से कम में सिमट गई. सवाल ये है कि आखिर साउथ की रीमेक कौन देखना चाहेगा.
बीबीसी में छपी एक खबर के मुताबिक परसेप्ट पिक्चर्स के बिजनेस हेड यूसुफ़ शेख का कहना है कि रीमेक के राइट्स अब यूज़लेस हैं. हिंदी में फिल्म बनने के बाद कहानी में भी आकर्षण खत्म होता जा रहा है.
तो क्या पहले साउथ की रीमेक नहीं बनती थी?
मुन्ना भाई एमबीबीएस उन कुछ सदाबहार कॉमेडी में से एक है जो प्रशंसकों के पसंदीदा हैं. इस फिल्म ने संजय दत्त ने वापसी की थी. ये फिल्म (तेलुगु) शंकर दादा एम.बी.बी.एस. वसोल राजा एम.बी.बी.एस (तमिल) का रीमेक थी. लव आज कल तेलुगु फिल्म तीन मार का रीमेक थी. इन दो फिल्मों के अलावा कई उदाहरण हैं जिन्होंने शानदार स्क्रिप्ट के साथ झोला भरके कमाई भी की.
कारण साफ था कि तब सोशल मीडिया का उतना बोलबाला नहीं था. पहले के हिंदी बेल्ट के दर्शकों को रजनीकांत और कमल हासन को छोड़कर साउथ के बारे बहुत ज़्यादा कुछ पता नहीं था. साउथ की फिल्में और वहां के बाकी के स्टार बहुत लोकप्रिय नहीं थे इसलिए जब फिल्म का मीडिया प्रचार होता था तो पता चलता था कि ये फलां साउथ की फिल्म का रीमेक है.
सोशल मीडिया के पहले के दौर में साउथ की फिल्मों के हिंदी रीमेक का इतिहास गोल्डन रहा है. इसका सबसे शानदार उदाहरण एक करोड़ लगाकर दस करोड़ कमाने वाली ‘एक दूजे के लिये’ (तेलुगू की ‘मारो चरित्र’) है. रामगोपाल वर्मा की ‘शिवा’ और ‘सत्या’ अनिल कपूर की विरासत (तमिल की ‘थेवर मगन’), कमल हासन की चाची 420 (तमिल की ‘अव्वै शण्मुगी’), सैफ़ अली ख़ान की ‘रहना है तेरे दिल में’ ( तमिल की ‘मिन्नाले’), रानी मुखर्जी की ‘साथिया’ (तमिल की ‘अलैपयुते’) – इस लिस्ट में शामिल हैं. ऐसी और भी कई फिल्में हैं जो रीमेक होने के बावजूद कामयाब रही हैं.
फिल्मों में विषयों का चयन बना रहा फिल्मों को फ्लॉप
आलोचकों ने बॉलीवुड पर आला या संभ्रांतवादी फिल्में बनाने का भी आरोप लगाना शुरू कर दिया है. ऐसी फिल्में उस देश में कैसे कामयाब हो सकती हैं जिसकी 70 प्रतिशत आबादी शहरों के बाहर रहती है. गांव के लोग खुद को अब हिंदी फिल्मों की कहानी से जोड़ नहीं पा रहे हैं.
आमिर खान ने ‘लाल सिंह चड्ढा’ के लिए मीडिया को दिए साक्षात्कार के दौरान स्वीकार किया ‘ हिंदी फिल्म निर्माताओं को जो टॉपिक प्रासंगिक लगने लगा है वो बड़े पैमाने पर दर्शकों के लिए उतना प्रासंगिक नहीं है, ज्यादातर लोग फिल्म के टॉपिक से जुड़ाव महसूस नहीं कर रहे हैं’.
बता दें कि लाल सिंह चड्ढा के आस पास आई फिल्म पुष्पा: द राइज और आरआरआर जैसी टॉलीवुड फिल्में हिट रही थी. इस तरह के फॉर्मूले लंबे समय से बॉलीवुड का मुख्य आधार रहे हैं, लेकिन फिल्म समीक्षकों का कहना है कि दक्षिणी प्रतिद्वंद्वी इसे और बेहतर करने लगे हैं.
मीडिया ट्रेंड के रिसर्च एनालिस्ट करण तौरानी ने मीडिया को बताया ‘हाल के सालों में फिल्म निर्माता-निर्देशक किसी स्टार को अपना नायक बनाकर बॉक्स ऑफिस पर सफलता सुनिश्चित करने का सपना देखने लगे हैं, जिसकी अब कोई गारंटी नहीं रह गई है. वो फिल्मों की कहानी पर काम ना करके बड़े स्टार पर पैसा खर्च कर रहे हैं. उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि दर्शक जरूर ही बड़े स्टार को अहमियत देते हैं, लेकिन दर्शक चाहते हैं कि स्टार एक ऐसी फिल्म में काम करे, जिसकी कहानी बेहतरीन हो.
मुंबई के दिग्गज थिएटर मालिक मनोज देसाई ने एएफपी को बताया, ‘हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह अब तक का सबसे बुरा दौर है. कुछ बड़ी फिल्मों की स्क्रीनिंग रद्द कर दी गईं क्योंकि दर्शक वहां नहीं थे’.
भारतीय स्टेट बैंक के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने एक रिपोर्ट में कहा कि शर्मनाक बात यह है कि जनवरी 2021 से 2022 के अगस्त तक हिंदी भाषा की फिल्मों ने बॉक्स-ऑफिस पर लगभग आधी कमाई बड़ी मुश्किल से की. उन्होंने कहा, ‘दशकों तक कहानी कहने के बाद ऐसा लगता है बॉलीवुड एक विपरीत मोड़ पर खड़ा है. क्योंकि फिल्म देखने वाले इस बात को लेकर ज्यादा समझदार हो गए हैं कि उन्हें अपना पैसा कहां खर्च करना है.