साइबर सुरक्षा के लिए वैश्विक तंत्र की जरूरत
हो सकता है मैं आपके विचारों से सहमत न हो पाऊं फिर भी विचार प्रकट करने के आपके अधिकारों की रक्षा करूंगा .,,,
स्वाभाविक तौर पर खतरों ने जितना व्यापक रूप ले लिया है, उसी व्यापकता में इनसे निपटने की तैयारी के लिए समुचित तंत्र भी चाहिए होंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में ‘साइबर व आभासी दुनिया के युग में अपराध व सुरक्षा’ विषय पर जी-20 सम्मेलन में अपनी बात कहते हुए इसी खतरे की ओर ध्यान खींचा है। मोटे अनुमान के अनुसार, साइबर हमलों में पिछले चार साल में 5.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान दुनिया को पहुंच चुका है। वित्तीय नुकसान के अलावा जो हानि हुई है, उसका तो हिसाब ही नहीं है। इसे टालने का या नुकसान की भरपाई का रास्ता फिलहाल नजर भी नहीं आ रहा है। भारत की ओर से व्यक्त की गई यह चिंता भी वाजिब है कि संकट के समाधान में जितना समय लगेगा, उतनी ही स्थिति जटिल होती जाएगी। जाहिर है कि नुकसान भी उसी अनुपात में बढ़ जाएगा। रास्ता कठिन इसलिए ज्यादा है क्योंकि तकनीक के विकास के साथ पनप रहे अपराध के नित नए तरीकों में किसी को पता नहीं है कि अगला साइबर हमला किस तरह का होगा। सबसे बड़ी बात यह कि साइबर युग में किसी राज्य या राष्ट्र की सीमाओं को पार करना ज्यादा मुश्किल नहीं रह गया है। दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर कहीं भी कुछ भी किया जा सकता है। इसलिए यह अपराध अब किसी एक देश तक सीमित नहीं रह गया है। इससे निपटना भी किसी एक देश के बस की बात नहीं है।
सबका सहयोग और साझा तंत्र, जिसे वैश्विक तंत्र कह सकते हैं, इसके लिए जरूरी होगा। जी-20 सम्मेलन में सभी देशों ने इसे गंभीरतापर्वूक स्वीकार भी किया है। उम्मीद है कि दुनिया भर में जल्दी ही इस दिशा में कदम उठते हुए दिखेंगे। भारत के लिए कहा जाता है कि वह कई मुद्दों पर दुनिया की अगुवाई में सक्षम है। इस सम्मेलन में यह साबित भी हुआ है। भारतीय दृष्टिकोण से भी यह एक आशावादी परिदृश्य है। भारत ने सबसे पहले खतरे को भांपा है, तो यह भरोसा तो बनता ही है कि खतरों से निपटने के उपाय भी सबसे पहले भारत में ही लागू होते नजर आएंगे।