देश के साथ देशवासियों की भी तरक्की हो तो बात बनेगी

आज भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकोनॉमी है। हम 3 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन चुके हैं और आने वाले दशक में 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य है। 1.4 अरब आबादी और उनकी जरूरतों से इकोनॉमी में सहज ही ग्रोथ होगी। लेकिन चुनौती यह समझने की है कि क्या इकोनॉमी के आकार में बढ़ोतरी मैन्युफेक्चरिंग, खनन, डिजिटल इनोवेशन, मूलभूत उद्योगों में बढ़त और समावेशी विकास से हो रही है या यह केवल उपभोक्ता-खपत में बढ़त पर टिकी है?

भारत अपने लक्ष्यों को अर्जित कर सकता है, पर उसे हर सेक्टर के लिए समग्र रवैया अपनाना होगा। यह भरोसेमंद और निरंतरतापूर्ण नीतियों से ही सम्भव है। समावेशी विकास बड़ी चुनौती है। फोर्ब्स की जीडीपी प्रति-व्यक्ति आय (डॉलर में) की सूची में अमेरिका 80.3 हजार के आंकड़े के साथ शीर्ष पर है। इसके बाद जर्मनी का नम्बर आता है।

इकोनॉमी के आकार में यूके भले ही भारत के बाद छठे नम्बर पर हो, पर जीडीपी प्रति-व्यक्ति आय के मामले में वह कनाडा के बाद चौथे नम्बर पर है। इसके बाद फ्रांस, इटली और जापान का क्रम आता है। इनकी तुलना में भारत की जीडीपी प्रति-व्यक्ति आय 2.6 हजार डॉलर ही है।

यह मानदंड इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सम्पत्ति के वितरण का आकलन करता है। इससे यह भी पता चलता है कि हमारा फोकस केवल पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने पर ही नहीं रहना चाहिए, बल्कि जीडीपी प्रति-व्यक्ति आय के मानदंड पर भी ऊपर उठना होना चाहिए। क्योंकि भारत का 2.6 हजार डॉलर का जीडीपी प्रति-व्यक्ति आय का रिकॉर्ड शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है। 13.72 हजार डॉलर के साथ चीन इसमें हमसे कहीं आगे है। यहां तक कि ब्राजील भी 9.67 हजार डॉलर के रिकॉर्ड के साथ समावेशी विकास के इस मानदंड पर हमसे ऊपर है।

भारत का भौगोलिक आकार बहुत बड़ा है और उसकी 65% आबादी 30 से कम आयु वालों की है। ऐसे में रोजगार-निर्माण हमारे नीतिगत-निर्णयों का आधार होना चाहिए। आज भारत में बेरोजगारी दर 6.1% की है, जो कि अब तक की उच्चतम है। शहरी क्षेत्रों में 7.6% युवा बेरोजगार हैं।

भारत को हर साल 86 लाख नौकरियां सृजित करने की जरूरत है और यह कृषि और मैन्युफेक्चरिंग- विशेषकर एमएसएमई सेक्टरों के लिए समग्रतापूर्ण रवैया अख्तियार करते हुए ही सम्भव है। युवाओं की स्किलिंग और री-स्किलिंग पर ऊर्जा लगाई जानी चाहिए और आय में सुधार को बढ़ावा देना चाहिए।

एनएसएसओ का डाटा बताता है कि रोजगार पाने योग्य 7.8% शहरी युवा और कुल 5.3% ग्रामीण युवा आज बेरोजगार हैं। वहीं देश की कार्यक्षम आबादी- यानी वे जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक हो- हर महीने 1 करोड़ 30 लाख की गति से बढ़ रही है। 0.1% की गति से बढ़ता कृषि क्षेत्र इस वर्कफोर्स को समायोजित नहीं कर पाएगा। इससे भी बुरी बात यह है कि महामारी के बाद गांव लौट आए लोग अब फिर से शहरों में लौटकर नहीं जाना चाहते।

कामचलाऊ नीतियों से बात नहीं बनेगी। ई-कॉमर्स मार्केटिंग का भविष्य है और उपभोक्ता मामले, अंदरूनी कारोबार, वाणिज्य से सम्बंधित मंत्रालयों में कई परिवर्तनों से एमएसएमई का क्रियान्वयन बहुत कठिन हो गया है। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय को अंतर-मंत्रालयीन समिति की कमान सौंपना अच्छा निर्णय है, पर जरूरत है भरोसेमंद रवैए और नीतियों की।

भारत में गजराज सरीखी सम्भावनाएं हैं, पर वो अभी सो रहा है। उसे जागकर उठ खड़ा होने की जरूरत है। फोकस इस पर होना चाहिए कि युवा वर्कफोर्स में शामिल हों, जिससे आय के स्तरों में बढ़ोतरी आए। मांग बढ़े और मैन्युफेक्चरिंग-डिमांड आधारित आय का चक्र गतिशील हो। जीडीपी के साथ ही प्रति व्यक्ति आय, बेरोजगारी दर, फास्ट-मूविंग कमर्शियल गुड‌्स की मांग आदि पर भी नजर रखना होगी। हिंदुस्तान के साथ-साथ हिंदुस्तानियों की भी तरक्की हो तो ही बात बनेगी।

हमारा फोकस पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने पर ही नहीं रहना चाहिए, हमें जीडीपी प्रति-व्यक्ति आय के मानदंड पर भी ऊपर उठना होगा। क्योंकि इसमें भारत का रिकॉर्ड शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है।

(ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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