वर्ल्ड ऑर्गन डोनेशन डे ! 1 व्यक्ति बचा सकता है 7 जिंदगियां…..
1 व्यक्ति बचा सकता है 7 जिंदगियां….. ऑर्गन डोनेट करना क्यों है जरूरी, डोनेशन से पहले जानें जरूरी बातें ….
58 साल के एक बांग्लादेशी शख्स को लिवर सिरोसिस था। अपने पति की जान बचाने के लिए उसकी पत्नी लिविंग डोनर बनी। उसने दिल्ली के एक हॉस्पिटल में अपने लिवर का एक हिस्सा डोनेट किया। जिससे उसके पति को नई जिंदगी मिली।
भारत में सालाना लगभग 5 लाख से ज्यादा लोगों को ऑर्गन ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। लेकिन 10 लाख लोगों पर डोनर की संख्या 1 से भी कम है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर एक व्यक्ति ऑर्गन डोनेट करता है तो वह कम से कम 7 लोगों की जिंदगियां बचा सकता है।
13 अगस्त यानी आज वर्ल्ड ऑर्गन डोनेशन डे है। इस मौके पर आज हम ऑर्गन डोनेशन पर बात करेंगे और जानेगें कि ऑर्गन डोनेट करने की कंडीशन और प्रोसेस क्या है।
सवाल: ऑर्गन डोनेशन क्या होता है?
जवाब: अपनी मर्जी से किसी जरूरतमंद को अपने शरीर का अंग डोनेट करना यानी दान करना ऑर्गन डोनेशन होता है।
इस प्रोसेस में डॉक्टर ऑर्गन डोनर की सर्जरी कर उसके किसी ऑगर्न या टिश्यू को निकालकर जरूरतमंद व्यक्ति के शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं।
सवाल: ऑर्गन और टिश्यू डोनेशन में क्या फर्क होता है?
जवाब: ऑर्गन शरीर का वह अंग है, जिसका काम करना किसी भी इंसान के जीवित रहने के लिए जरूरी है। जैसे हार्ट या दिल, लंग्स, किडनी आदि। वहीं टिश्यू, जिन्हें ऊत्तक भी कहते हैं, वो कोशिकाएं कॉर्निया, त्वचा, हार्ट वॉल्व जैसे अंगों का हिस्सा होती हैं।
अब समझते हैं कि भारत में कितने लोगों को किन ऑर्गन की जरूरत होती है और कितने ऑर्गन मिल पाते हैं।
इसे नीचे लगे क्रिएटिव से समझते हैं।
सवाल: शरीर के कौन से अंग डोनेट किए जा सकते हैं?
जवाब: आम तौर पर शरीर के ऑर्गन और टिश्यूस दोनों को डोनेट किया जा सकता है। पॉइंट्स से समझते हैं-
डोनेट करने वाले ऑर्गन
- लंग्स
- हार्ट
- लिवर
- किडनी
- छोटी आंत
- पेंक्रियाज
डोनेट करने वाले टिश्यू
- आंख
- हड्डी
- स्किन
- नसें
- हार्ट वॉल्व
सवाल: लोग आंखों को लेकर बहुत कन्फूज रहते हैं कि आंखें डोनेट करने पर क्या पूरी आंख निकाल ली जाती है?
जवाब: नहीं। आंख का केवल आगे वाला भाग निकाला जाता है जिसे पुतली कहते हैं। उसे ही डोनेट किया जाता है।
सवाल: तो क्या कोई भी व्यक्ति ऑर्गन डोनेट कर सकता है?
जवाब: बिल्कुल, कोई भी व्यक्ति ऑर्गन डोनेट कर सकता है। इसमें जाति, धर्म, लिंग का कोई लेना देना नहीं।
बस इसकी कुछ कंडीशन हैं जिन्हें डोनर को फॉलो करना होता है। इसे क्रिएटिव से समझते हैं।
सवाल: क्या ऑर्गन मरने के बाद ही डोनेट किया जा सकता है?
जवाब: नहीं। इसे एक जिंदा इंसान भी कर सकता है, लेकिन एक जिंदा व्यक्ति हर ऑर्गन नहीं डोनेट कर सकता है।
डोनर भी दो तरह के होते हैं।
लिविंग डोनर: जब जिंदा व्यक्ति शरीर के कुछ हिस्से डोनेट करता है
डिसीज्ड ऑर्गन डोनर: किसी के ब्रेन डेड घोषित होने पर उसके परिवार वाले ऑर्गन डोनेट कर सकते हैं।
सवाल: ये ब्रेन डेड डोनर क्या होता है?
जवाब: ब्रेन डेड डोनर का दिल तो धड़कता है पर दिमाग पूरी तरह काम करना बंद कर देता है। उसके ठीक होने की कोई गुंजाईश नहीं होती। ऐसी कंडीशन में व्यक्ति को कानूनी रूप से मृत माना जाता है। इसे ब्रेन डेथ भी कहते हैं।
सवाल: ऑर्गन डोनेट करने के लिए कहां जाएं और किससे कॉन्टेक्ट करें?
जवाब: इसके लिए नीचे लिखी वेबसाइट्स पर जा सकते हैं। ऑर्गन डोनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
इसके अलावा टोल फ्री नंबर पर भी कॉन्टेक्ट कर सकते हैं।
- 1800114770
- 18001037100
सवाल: ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराने के लिए क्या करें?
जवाब: अगर ऐसे ऑर्गन की जरूरत है जिसे लिविंग डोनर दे सकता है तो परिवार का सदस्य ऑर्गन डोनेट कर सकता है।
इसके लिए अस्पताल एक आवेदन भरवाता है जिसे मेडिकल कॉलेज में जमा करना होता है। वहां कमेटी की मंजूरी के बाद ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया जा सकता है।
डिसीज्ड ऑर्गन यानी जिन्हें मरने के बाद डोनेट किया जाता है, अगर उनकी जरूरत है तो इसके लिए हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज में आवेदन करना होता है। कमेटी की मंजूरी के बाद वेटिंग लिस्ट में नंबर अलॉट होता है। नंबर आने पर ऑर्गन ट्रांसप्लांट किया जाता है।
अब ऑर्गन डोनेशन से जुड़े मिथ को समझते हैं..
मिथ 1: अंगदान शरीर को बेडौल कर देता है।
अक्सर लोगों को लगता है कि अंगदान करने से शरीर बिगड़ जाता है। यह सही नही हैं, क्योंकि यह रेगुलर तरीके से होने वाली सर्जरी की तरह होता है, सर्जरी के निशान को अच्छे से कवर किया जाता है।
मिथ 2: अगर मैंने आंखें दान की तो अगले जन्म में बिना आंख के जन्म लूंगा।
यह अफवाह है। मरने के बाद शरीर खत्म हो जाता है। अगर आप पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं तो भी आपके शरीर को कुछ नहीं होगा।
मिथ 3: अगर ऑर्गन डोनेशन के लिए राजी हो गए तो डॉक्टर मरीज को बचाने की कोशिश नहीं करेंगें।
डॉक्टर का पहला काम मरीज की जान बचाना होता है न कि किसी ओर की। ऑर्गन डोनेशन के लिए तभी कहा जाता है जब व्यक्ति को मृत ( या ब्रेन डेड) घोषित कर दिया जाता है। वरना डॉक्टर की कोशिश मरीज की जान बचाने की होती है।
मिथ 4: डोनर के परिवार को अस्पताल में ऑर्गन डोनेट करने के पैसे देने होते हैं।
नहीं, डोनर के परिवार को कोई ज्यादा पैसा नहीं देना होता। ब्रेन डेड घोषित होने के बाद अगर आपका परिवार ऑर्गन डोनेशन के लिए राजी होता है तो अस्पताल ही उसका सारा खर्च उठाता है।
मिथ 5: डोनर बनने का डिसीजन लेने के बाद फिर अपना मन नहीं बदल सकते।
यह सच नहीं है। अपना डिसीजन बदल भी सकते हैं। मन बदलने पर रजिस्ट्रेशन वापस ले सकते हैं। अपना ऑर्गन डोनेशन कार्ड कैंसिल कर सकते हैं और परिवार को बता सकते हैं कि आपने अपना डिसीजन बदल लिया है।
चलते-चलते
ये बड़ी हस्तियां कर चुकी हैं ऑर्गन डोनेट
राजनीति: मनमोहन सिंह , नवजोत सिंह सिद्धु, ज्योति बसु
बॉलीवुड: आमिर खान, अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन, रजनीकांत, प्रियंका चोपड़ा, जूही चावला
स्पोर्ट्स: गौतम गंभीर, विनोद कांबली, अनिल कुंबले
आध्यात्मिक गुरु: श्री श्री रविशंकर, बाबा रामदेव