भ्रष्टों की गिरफ्तारी जरूरी !
एक “मौत” ने हजारों रिश्वतखोरों को जेल जाने से बचाया …
जिस डिप्टी कमिश्नर की लोकायुक्त कस्टडी में मौत हुई, उनके भाई बोले- भ्रष्टों की गिरफ्तारी जरूरी
- रीवा लोकायुक्त की DEO कार्यालय में दबिश: निलंबित कर्मचारी को बहाल करने की एवज में मांगी थी 50 हजार की रिश्वत। 5000 ले चुका था, 10 हजार लेते ट्रैप।
- मंडला जिले का CMO जबलपुर में गिरफ्तार: हाईकोर्ट के काम से आया था जबलपुर। गेट पर 15000 रुपए की रिश्वत के साथ पकड़ाया।
- सीधी लोकायुक्त पुलिस ने की बड़ी कार्रवाई: मेडिकल ऑफिसर डॉ. आरके साकेत को रिश्वत लेते रंगे हाथ किया गिरफ्तार।
- सागर में रिश्वत लेने वाले पटवारी को सजा: PM किसान सम्मान निधि की राशि का भुगतान और बैनामा पास कराने की एवज में मांगी थी रिश्वत।
मध्यप्रदेश में रिश्वतखोरी के ये केस पिछले दो महीने में सामने आए हैं। ये वो केस हैं, जिनमें गिरफ्तारी के तुरंत बाद जमानत भी दे दी गई। मध्यप्रदेश में घूसखोरी के 99.9% केसों में आरोपी को तुरंत जमानत दे दी जाती है, लेकिन 2004 से पहले ऐसा नहीं था।
भ्रष्टाचार के हर मामले में गिरफ्तारी होती है। ऐसे ही एक मामले में 13 जुलाई 2004 को हिरासत के दौरान एक अफसर की मौत हो गई थी। ये मामला इतना बढ़ा कि इसके बाद लोकायुक्त ने गिरफ्तारी लगभग बंद ही कर दी। आइए जानते हैं कि वो केस क्या था, जिसकी आड़ में अब भ्रष्टाचारी गिरफ्तार नहीं होते।
परिजन ने आरोप लगाया कि जैन की मौत लोकायुक्त पुलिस की पिटाई से हुई
मामला समझने के लिए हमने तत्कालीन एसपी लोकायुक्त मोहकम सिंह नैन से बात की। उन्होंने बताया कि 20 साल पुरानी बात है। उमा भारती मुख्यमंत्री थीं। वाणिज्य कर अधिकारी ऋषभ जैन को रिश्वत लेते रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया था। उस समय हमें सरकारी आदेश था कि राजपत्रित (गजेटेड) अधिकारी के खिलाफ एक्शन में उन्हें गिरफ्तार करना जरूरी है। उसी आदेश के तहत जैन को गिरफ्तार किया गया था। रॉयल मार्केट के लोकायुक्त ऑफिस में बने एक कमरे में उस समय आरोपियों को रखा जाता था। जैन को भी गिरफ्तार करके वहीं रखा गया था।
मैं दफ्तर में नहीं था। मुझे बताया गया कि ऋषभ जैन बाथरूम में फिसल गए थे। उन्हें चोट लगी। उनकी सुरक्षा में एक हेड कॉन्स्टेबल और दो कॉन्स्टेबल लगे थे। तीनों पुलिसकर्मियों ने उन्हें तुरंत हमीदिया अस्पताल पहुंचाया। जब जैन को हमीदिया लाया गया तो उनकी सांसें चल रही थीं। यहां उन्हें सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) दिया गया। उसी दौरान उनकी पसली की हडि्डयां टूटीं, लेकिन दो घंटे की कोशिश के बाद भी उनकी जान नहीं बचाई जा सकी। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। इसके बाद परिजन ने आरोप लगाया कि जैन की मौत लोकायुक्त पुलिस की पिटाई से हुई है।
13 जुलाई 2004 की बात है। हम ग्वालियर में अपने घर पर थे और टीवी देख रहे थे। अचानक ब्रेकिंग न्यूज चली कि कमर्शियल टैक्स के डिप्टी कमिश्नर ऋषभ जैन 2 हजार रुपए की रिश्वत लेते गिरफ्तार। हमने तुरंत भोपाल आने की तैयारी की। हमें ऋषभ के पास लोकायुक्त ऑफिस, भोपाल पहुंचना था। हम रास्ते में ही थे। उसी दौरान फोन आया कि आपके भाई की हालत खराब है। वो मरणासन्न स्थिति में हैं। आप सीधे हमीदिया अस्पताल पहुंचिए। हम हमीदिया अस्पताल पहुंचे तो वहां कोई पुलिवाला नहीं था। कोई सरकारी अधिकारी भी नहीं था। ऋषभ स्ट्रेचर पर पड़े थे।
उस समय डॉ. जैन उन्हें चेक कर रहे थे। डॉक्टर ने कहा कि आप सब बाहर जाइए। उनकी बॉडी में कोई रिस्पॉन्स नहीं था। मैंने डॉक्टर से कहा कि मैं भी डॉक्टर हूं। प्लीज जल्दी से इन्हें वेंटिलेटर पर रखवा दीजिए। डॉक्टर ने सीपीआर के लिए एंबु बैग मंगवाया। फिर वेंटिलेटर पर रखा। अगले दिन दोपहर 2 बजे डेड सर्टिफाइड कर दिया। उनके सिर पर चोट के निशान थे। सीने पर भी चोट के निशान थे। शॉर्ट पीएम में भी चोट के निशान मिले थे। हम उनके पार्थिव शरीर को टीकमगढ़ ले गए। वहां अंत्येष्टि कर दी। विधानसभा में लोकायुक्त पुलिस की एक स्वर से भर्त्सना हुई। इंदु भाभी को भैया की जगह कमर्शियल टैक्स ऑफिसर के तौर पर नियुक्त किया गया।
परिस्थितियों के हिसाब से आरोपी को जमानत देने के निर्देश जारी किए गए थे
इस मामले के बाद तत्कालीन लोकायुक्त संगठन ने एक सामान्य आदेश जारी कर गिरफ्तारी के बाद परिस्थितियों के हिसाब से आरोपी को जमानत पर रिहा करने के निर्देश जारी किए थे। यही वो बात है, जिसके आधार पर मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोपियों की गिरफ्तारी ही बंद हो गई। यही वो केस था, जिसके बाद मध्यप्रदेश में भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तारी सिर्फ नाममात्र की होती है। गिरफ्तारी के बाद पुलिस अधिकारी उन्हें मौके पर जमानत दे देते हैं।
साक्ष्य नष्ट होने या जांच प्रभावित होने की आशंका पर गिरफ्तार करती है लोकायुक्त पुलिस
ऐसा नहीं है कि लोकायुक्त पुलिस किसी भी मामले में भ्रष्टाचार के आरोपी को गिरफ्तार नहीं करती। लोकायुक्त डीजी योगेश चौधरी कहते हैं कि जब-जब हमें जरूरत होती है, आरोपियों की गिरफ्तारी करते हैं। जहां ऐसा लगता है कि आरोपी के जमानत पर होने से साक्ष्य नष्ट होने का जोखिम है या इस बात की आशंका हो कि आरोपी जांच को प्रभावित कर सकता है, उन मामलों में हम गिरफ्तारी करते हैं।
चौधरी ने कहा- उज्जैन में अप्रैल महीने में ही पुलिस कॉन्स्टेबल रवि कुशवाहा को 25 हजार रुपए की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। कुशवाहा ने लोकायुक्त टीम को देखकर थाने में पहले से मौजूद पेंटर आसिफ को रिश्वत के रुपए थमाकर वहां से भगा दिया था। ये पूरा दृश्य सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गया था।
अप्रैल महीने में नकल कराने के लिए पैसे मांगने के आरोप में दमोह में शिक्षक घनश्याम अहिरवार को लोकायुक्त पुलिस ने गिरफ्तार किया था। इस कारण ये कहना गलत है कि हम सबको जमानत दे देते हैं।
2013 में लोकायुक्त डीएसपी, हेड कॉन्स्टेबल और दो कॉन्स्टेबल को हुई थी 5 साल की जेल
ऋषभ जैन के बहुचर्चित मामले में वर्ष 2013 में अदालत ने तत्कालीन एसपी मोहकम सिंह नैन सहित प्रधान आरक्षक रामाशीष, आरक्षक बद्री निहाले और सिलवानुस तिर्की को दोषी माना था। सभी को 5-5 साल की जेल और 5 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई गई थी।
मोहकम सिंह नैन कहते हैं कि उन्हें सिर्फ इस आधार पर कसूरवार ठहराया गया कि उस समय वे एक जिम्मेदार पद पर थे। न तो वे खुद मौके पर गए थे, न ही उन्होंने आरोपी से पूछताछ की थी।
खुद को मुसीबत से बचाने कोई भी अफसर गिरफ्तारी का रिस्क नहीं लेना चाहता
लोकायुक्त एनके गुप्ता इस सवाल पर सीधे तौर पर कुछ नहीं कहते, लेकिन ये मानते हैं कि भ्रष्टाचार के मामले में कार्रवाई ऐसी होनी चाहिए, जिसका संदेश दूसरे भ्रष्टों को भी मिले।
लोकायुक्त में पदस्थ एक सीनियर अफसर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि जब कार्रवाई की जाती है, तब अक्सर अफसर और उसके परिवार के सदस्यों के बीमार पड़ जाने या बेसुध हो जाने से जैसी स्थितियां सामने आ जाती हैं। ऐसे में कोई भी अफसर खुद को मुसीबत से बचाने के लिए गिरफ्तारी से बचता है। जहां बहुत जरूरी होता है, वहां ही गिरफ्तारी की जाती है।

भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988
- घूसखोर सरकारीकर्मियों पर कार्रवाई के लिए बने कानून में 2018 में संशोधन हुआ।
- मध्यप्रदेश-राजस्थान में इसी कानून की अलग-अलग धाराओं के तहत कार्रवाई होती है।
- MP में लोकायुक्त पुलिस और इकोनॉमिक ऑफेंस विंग (EOW) कार्रवाई करती है।
- राजस्थान में ACB यानी एंटी करप्शन ब्यूरो ऐसे लोगों पर कार्रवाई करती है।
MP-राजस्थान में कार्रवाई का तरीका एक जैसा
- पहले शिकायतकर्ता एजेंसी में शिकायत करता है।
- जांच के लिए एजेंसियां सबूत जुटाती हैं, जैसे ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग।
- डील के बाद एजेंसी रुपयों में विशेष केमिकल फिनाप्थलीन लगाकर देती है।
- जैसे ही रिश्वतखोर पैसे लेता है, उसे पकड़ लेते हैं।
- रिश्वत लेने के प्रमाण के लिए जैसे ही आरोपी के हाथ में पानी डालते हैं, फिनाप्थलीन के चलते उसके हाथ से लाल रंग उतरने लगता है।
दोनों में क्या है अंतर…
राजस्थान में 2021 में 430 सरकारी अफसर-कर्मचारी घूस लेते पकड़े गए। यहां हर साल औसत 450 कार्रवाइयां होती हैं। ACB कोर्ट से भी अधिकांश मामलों में जमानत नहीं मिलती। घूसखोर कलेक्टर, एसपी तक को जेल भिजवाया है। राजस्थान के एक अधिकारी कहते हैं कि अगर नोटिस देकर छोड़ देंगे, तो मैसेज कैसे जाएगा।