इंदौर  स्वच्छता में नंबर 1 इंदौर शहर के उद्योगों को दूषित जल के उपचार के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है। सांवेर रोड औद्योगिक क्षेत्र के उद्योगों के रसायनयुक्त दूषित पानी के उपचार के लिए सेक्टर एफ में ‘कामन इफ्युलेंट ट्रीटमेंट प्लांट’ (सीईटीपी) लगाया गया। नगर निगम द्वारा इस संयंत्र में उद्योगों द्वारा दिए जा रहे दूषित पानी के उपचार के लिए बदले में 11 पैसे प्रति लीटर शुल्क लिया जा रहा है।

इंदौर के उद्योगपतियों का कहना है कि सूरत व अहमदाबाद के उद्योगों से इसी काम का शुल्क 1 पैसे प्रति लीटर लिया जा रहा है। इतना ही नहीं, उद्योगों की पीड़ा यह भी है कि फ्लोमीटर लगने के कारण भी निगम कुल क्षमता के आधार पर मनमाने बिल दे रहा है। कुछ उद्योगों को निगम ने पिछले दो साल के लिए 27 लाख रुपये तक के बिल थमा दिए हैं।

22-23 दिन संचालित होते हैं उद्योग, शुल्क 30 दिन का

एसोसिएशन आफ इंडस्ट्री मप्र के सचिव तरुण व्यास के अनुसार, जिन उद्योगों ने अपने कारखानों में फ्लो मीटर लगाए हैं, उन्हें भी कुल क्षमता के आधार पर बिल भेजे गए हैं। उद्योग एक माह में 22 से 23 दिन संचालित होते हैं। ऐसे में उनसे माह के 30 दिनों का शुल्क लेना सही नहीं है। पूर्व में निगम द्वारा कहा गया था कि सीइटीपी लगाने की जो लागत आएगी, उसके आधार पर शुल्क तय किया जाएगा। इस संबंध में हम जल्द ही निगमायुक्त व महापौर से मिलेंगे। निगम के अधिकारी कह रहे हैं कि अभी बिल की 50 फीसद राशि जमा कर दो। अधिक राशि के बिल भरने में उद्योग असमर्थ हैं।

ये हैं नगर निगम के तर्क

उद्योग : अहमदाबाद व सूरत के मुकाबले ज्यादा ली जा रही राशि।

निगम का तर्क : वहां के संयंत्रों की क्षमता ज्यादा है। इस वजह से उसका खर्च कम आता है। वहां उद्योग उपचारित पानी को पुन: उपयोग के लिए लेते हैं। इंदौर में ऐसा नहीं होता है। निगम ने सीईटीपी के लिए विशेष पाइप लाइन बिछाई, मेंटेनेस का खर्च भी ज्यादा है।

उद्योग : फ्लो मीटर के आधार पर नहीं दिए गए बिल।

निगम का तर्क : कई उद्योगों ने फ्लो मीटर ही नहीं लगवाए। इससे खपत के आधार पर बिल दिए गए। कई उद्योगों के फ्लो मीटर भी हैं बंद।

उद्योग: ज्यादा राशि के बिल थमा दिए गए।

निगम का तर्क : जिन लोगों को आपत्ति है, वे हमें बताएं। समस्या का निराकरण करेंगे।

उद्योग : चार एमएलडी के संयंत्र में डेढ़ एमलडी पानी ही सिर्फ उद्योगों का।

निगम : भविष्य में इस क्षेत्र के सभी उद्योगों का पाइप लाइन के माध्यम से पानी पहुंचेगा। कुल क्षमता के आधार पर शुल्क किया है तय। कई उद्योग अपने दूषित जल का प्री ट्रीटमेंट करके नहीं भेज रहे।

उद्योगपति बोले : संयंत्र के संचालन का खर्च निकालकर नए सिरे से शुल्क तय करें

निगम ने दो साल पहले फैक्ट्री के लिए कनेक्शन दिया। अब कुल क्षमता के आधार पर उन्होंने हमें 27 लाख रुपये का बिल दे दिया है। यह सही नहीं है। पहले 10 पैसे प्रति लीटर शुल्क तय करने पर उद्योगों की आपत्ति थी। निगम की इस मनमानी से उद्योगों के बंद होने की नौबत आ जाएगी। – उद्योगपति सेक्टर एफ

मेरी फैक्ट्री को सवा लाख रुपये का बिल थमा दिया, जबकि 60 से 65 हजार रुपये ही शुल्क होना चाहिए। निगम ने 30 दिन के अनुसार बिल थमाए जबकि फैक्ट्री 22 से 24 दिन ही संचालित होती है। उद्योगों ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को जितनी क्षमता के पानी के उपयोग की सहमति दी, उसी को आधार बनाकर बिल निगम ने जारी कर दिए। – उद्योगपति सेक्टर सी

जिस दर से बिल दिए गए हैं, उसे निगम द्वारा स्पष्ट किया जाएगा। दूसरे शहरों की तुलना कर शुल्क तय नहीं कर सकते। सुनिश्चित करेंगे कि फ्लोमीटर के आधार पर शुल्क लिया जाए। यदि किसी उद्योग को लगता है कि ज्यादा राशि के बिल दिए गए हैं तो वे शिकायत करें, हम जांच करवाएंगे। अपर आयुक्त नगर निगम

वर्ष 2017 में सांवेर रोड सेक्टर एफ में लगा था 4 एमएलडी क्षमता का सीईटीपी ….
    • 312 कारखाने पंजीकृत हैं, जो अपना दूषित पानी भेजते हैं।
    • 95 कारखानों में लगे हैं फ्लो मीटर।
    • 90 कारखाने टैंकरों के माध्यम से पानी भेजते हैं, इसमें सेक्टर डी, कुम्हेड़ी व बरदरी के कारखाने शामिल।
    • 35 किलोमीटर क्षेत्र में सीईटीपी से उद्योगों तक बिछी है पाइपलाइन।
  • 10 किलोमीटर क्षेत्र में पाइपलाइन बिछाना शेष।