बढ़ती आबादी उपलब्धि की जगह बोझ न बन जाए !
बढ़ती आबादी उपलब्धि की जगह बोझ न बन जाए
मनुष्य ऑक्सीजन लेता है, कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड लेते हैं और ऑक्सीजन देते हैं। इन दोनों के तालमेल से ही प्रकृति और मनुष्य का स्वास्थ्य चलेगा। अब इसको हम बिगाड़ रहे हैं। एक और बात चिंताजनक हो गई।
समाज में युवा ऐसी ही भूमिका में रहते हैं। पहले समाज उन्हें देगा, फिर युवा समाज को लौटाएंगे। अब जनसंख्या के मामले में भारत दुनिया में नंबर 1 है, यहां युवा आबादी भी सबसे ज्यादा है। लेकिन ये आंकड़े चिंताजनक भी हैं क्योंकि आबादी अपने साथ अनेक समस्याएं भी लाती है। कुपोषण बना हुआ है।
देश में बच्चों का शारीरिक कुपोषण तो है, मानसिक कुपोषण भी हो रहा है। सोलह संस्कार की व्यवस्था जिस देश में हो, उसमें अब यह सोचने का समय आ गया है कि शिक्षा से रोजगार तक भी सोलह संस्कार नए ढंग से स्थापित किए जाने चाहिए। बच्चे सोशल मीडिया से मानसिक भोजन ले रहे हैं। जनसंख्या की ये बढ़ती तस्वीर कहीं उपलब्धि की जगह बोझ न बन जाए और बोझ को बीमारी बनने में देर नहीं लगेगी।