जान बचाएं, ये फिक्र न करें कि किसकी है !
जान बचाएं, ये फिक्र न करें कि किसकी है और फिर देखें आपको खुद में कितनी ऊर्जा महसूस होती है
ये इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं कि कैसे ‘ड्यूटी निभाकर’ या ‘ड्यूटी नहीं भी हो’ तब भी किसी का जीवन बचाना ही उनके जीने का तरीका है। अधिकांश मौकों पर एेसे काम नजर में आ जाते हैं, तो कभी-कभी नजर में नहीं भी आते या थोड़ी-बहुत अटेंशन मिलती है।
कुछ मामलों में यह दो घंटे की जद्दोजहद होती है तो कुछ में यह 20 घंटे से ज्यादा चला संघर्ष, तब भी पता नहीं चल पाता कि हासिल क्या हुआ। लोग फिर भी आगे बढ़ने से नहीं कतराते और असल जिंदगी के हीरो साबित होते हैं, जो न सिर्फ एक इंसान के बच्चे, बल्कि एक व्हेल के बच्चे का जीवन बचाने के प्रति भी समर्पित होते हैं!
इत्तिफाक से दोनों घटनाक्रम इस रविवार को घटे, एक घटना बीच हवा में हुई तो दूसरी पानी में। और दोनों मामलों में इंसानों ने जिंदगी बचाने के लिए पहनी जाने वाली अनिवार्य यूनिफॉर्म सफेद एप्रिन नहीं पहनी हुई थी। रविवार को विस्तारा एयरलाइंस की फ्लाइट यूके814 ने सुबह 9.01 मिनट पर बेंगलुरु से दिल्ली के लिए उड़ान भरी। बीच हवा में ही एक मेडिकल इमरजेंसी आ गई, जब दो साल की एक बच्ची की सांसें थम गईंं।
उसकी हाल ही में हार्ट सर्जरी हुई थी। तभी उसी विमान में सहयात्री एम्स के पांच डॉक्टर्स ने बच्ची को आपातकालीन उपचार देना शुरू किया। बिना किसी मेडिकल उपकरण के पांचों डॉक्टर्स उसकी सांसें वापस लाने में जुटे रहे, इस बीच पायलट ने एयर ट्राफिक कंट्रोल से नागपुर में आपातकालीन लैंडिंग की इजाजत मांगी।
एयरपोर्ट स्टाफ ने फुर्ती दिखाते हुए ऐसे मामले हैंडल करने में सक्षम जरूरी सुविधाओं से लैस एम्बुलेंस की व्यवस्था की, विमान के सहयात्री यह जानते हुए भी कि अब उन्हें अपने घर पहुंचने में घंटों की देरी होगी, उस बच्ची के लिए दुआ कर रहे थे।
विमान उतरते ही बच्ची को स्थिर हालत में शिशु रोग विशेषज्ञों के हवाले कर दिया गया। इस मामले की आखिरी अपडेट के अनुसार बच्ची का उपचार जारी है, उसका इलाज कर रहे डॉक्टर्स का कहना था कि वह खतरे से बाहर है।
हवा में घटी इस आपात स्थिति से कुछ घंटे पहले, सूरत के 200 युवा ब्राइस व्हेल के बच्चे को जीवित रखने के लिए रविवार की दोपहर से लगातार 20 घंटे तक जुटे रहे। यह नन्ही व्हेल पहले रविवार की सुबह ओलपाड़ गांव के पास उथले पानी में पहली बार दिखी थी। उसे छूने पर वह आंखें खोल रही थी और हिल रही थी।
उसकी सांसें चलती दिख रही थीं। इस बेबी व्हेल को देखकर ओलपाड़ के आसपास के गांव मोर, भगवा और जिनोद से लोग आए और उसे जीवित रखने के लिए पानी छिड़कते रहे। लो टाइड के कारण वहां आसपास पानी नहीं था, ऐसे में वे लोग दो किमी चलकर प्लास्टिक की बोतलों में पानी लाते रहे। बाद में उन्होंने यहां तक पानी लाने के लिए एक पानी के पंप की भी व्यवस्था की।
जब तक वन विभाग वाले और खुदाई मशीन नहीं आ गई, उन ग्रामीणों के प्रयासों से व्हेल जीवित और गीली बनी रही। इस उम्मीद के साथ कि वह जीवित बच जाएगी, वन विभाग की मदद से उसे खींचकर सोमवार की सुबह समुद्र के गहरे पानी में ले जाया गया।
हालांकि रात में वह फिर से समुद्र के किनारे दिखाई दी। वन विभाग ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर जेसीबी की मदद से पूरी रात एक गड्ढा खोदा और पंप की मदद से उसमें पानी भरा। व्हेल को उस गड्ढे में खींचकर लाने के बाद कुछ लोगों के समूह और अधिकारियों ने तय किया कि रात में रुककर नजर रखेंगे। जब मैं यह आर्टिकल लिख रहा था, तो मुझे बताया गया कि उस नन्ही व्हेल को वापस समुद्र में भेजने से पहले उसे चिकित्सकीय मदद दी जा रही थी।
फंडा यह है कि जान बचाएं, ये फिक्र न करें कि किसकी है और फिर देखें आपको खुद में कितनी ऊर्जा महसूस होती है, यह आपको इतना बदल देगी कि आप कई लोगों के बिग ब्रदर बन जाएंगे। ये समर्पण का सच्चा उदाहरण है या इसे सफेद एप्रिन या उसके बिना रक्षाबंधन कहें।