एक अच्छा शिक्षक ‘जिंदगी की पाठशाला’ से सबक सिखाता है
एक अच्छा शिक्षक ‘जिंदगी की पाठशाला’ से सबक सिखाता है
नागपुर के सरस्वती विद्यालय में वो लंच ब्रेक से पहले की क्लास थी। भूख से धैर्य जवाब दे रहा था। मैं बस अपना लंच बॉक्स खोल और बंद कर रहा था, जैसे कमल हासन फिल्म ‘एक-दूजे के लिए’ में अभिनेत्री को रिझाने के लिए लाइट बंद-चालू करते हैं। खाने की खुशबू नाक में घुस चुकी थी, जिससे भूख और बढ़ गई।
मेरी बेंच के आसपास बैठे साथियों का चेहरा मेरी तरफ मुड़ा क्योंकि खुशबू से उनका ध्यान भी भंग हो गया, फिर उनकी घूमती गर्दन को देखकर टीचर समझ गईं कि हमारी बेंच पर कुछ तो चल रहा है। आलू-भटे की सब्जी की खुशबू तब तक शायद टीचर की टेबल तक भी पहुंच गई थी।
उन्होंने मुझे आने का इशारा किया और कहा कि टिफिन ले आओ। मैंने चुपचाप टेबल से लंच निकाला और अपना सिर लटकाने से पहले उन्हें दे दिया। अपने पास रखी उत्तर पुस्तिका से उन्होंने कागज का छोटा-सा टुकड़ा फाड़ा और उस पर कुछ लिखा।
वह मुझे दिया और कहा, ‘तुम्हारी मम्मी बहुत अच्छी कुक हैं। मैं यह लंच खाने वाली हूं क्योंकि मुझे भूख लगी है।’ क्लास खिलखिला उठी। वह बोलती रहीं, ‘ये पत्र लो और अपनी मां को दे देना, जाओ और लंच करके जल्दी वापस आओ।’ बेंच पर साथ बैठने वाले ज्यादातर साथियों को लगा, वह मुझे सजा दे रही हैं। मुझे भी यही लगा और बुरी तरह डर गया।
चूंकि मेरा स्कूल घर से पांच मिनट की ही दूरी पर था, मैं दौड़कर घर गया और मां को वह पत्र दिया, स्कूल से जल्दी आने पर वह चौंक गईं। पत्र पढ़ने के 20 सेकंड बाद उन्होंने मुझे लजीज लंच परोसा। खाते हुए मैंने पूछा कि पत्र में टीचर ने क्या लिखा है। पर उन्होंने वह पत्र नहीं दिखाया।
बस इतना ही कहा कि टीचर को खाने की खुशबू पसंद आई, क्योंकि तुमने क्लास के बीच में टिफिन खोला और वह अब उसे खा रही हैं। ये सुनकर मेरे अंदर मिले-जुले भाव उठे। अपने व्यवहार के कारण बुरा लगा, पर सुनकर अच्छा लगा कि मेरी मां अच्छी कुक हैं और मैंने भूखी टीचर को खाना दिया।
खाना खाकर मैं स्कूल के लिए निकल गया, ब्रेक के बाद क्लास शुरू होते ही टीचर मेरे पास आईं, माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘अपनी मां को कहना कि खाना बहुत स्वादिष्ट था।’ मुझे सच में लगा कि उन्होंने खाना खाया है। पर वो सच नहीं था।
सालों बाद जब हम बेहतरी की तलाश में नागपुर शहर छोड़ रहे थे, तो अलमारी में साड़ियों के पीछे रखा वो पत्र मिला। उसमें लिखा था- ‘प्यारी जयम, (मां का नाम जयलक्ष्मी था और दोस्त उन्हें जयम बुलाते थे) मेरी क्लास में तीन बच्चे ऐसे हैं, जो अलग-अलग कारणों से लंच नहीं ला पाए, उनमें एक की स्थिति गंभीर है।
उसके माता-पिता में झगड़ा हो गया और मां बिना खाना पकाए ही घर से चली गईं। कल से अगले एक हफ्ते तक आप एक अतिरिक्त टिफिन बॉक्स भेज दें, जब तक कि मैं इस परेशानी का हल नहीं निकाल लेती। मैं नहीं चाहती कि बच्चा भूखा घर जाए।
आप अपने बेटे को सिर्फ इतना कहें कि मुझे आपकी कुकिंग पसंद है इसलिए आप खाना भेज रही हैं। आपका घर ही ऐसा है, जहां मैंने हमेशा देखा है कि कम से कम एक व्यक्ति के लिए खाना अतिरिक्त बनता है। इसके अलावा मैं आपको जानती हूं और व्यक्तिगत तौर पर आपकी उदारता को भी। इसलिए मैं अधिकार से कह रही हूं। – सरस्वती’
उन्होंने जो किया, उसमें कई सबक छिपे हैं, जिसे ‘जिंदगी की पाठशाला’ कहते हैं। 1. देने की कला 2. दूसरों के लिए कुछ अच्छा करें तो उसका कभी प्रचार न करें। 3. दूसरों के सामने किसी की गरीबी उजागर न करें। 4. अच्छा लीडर समस्या देखकर उसे सुलझाता है, न कि मुंह मोड़ लेता है। 5. हमेशा अच्छे दोस्त रखें, जिन पर भरोसा कर सकें।
….अच्छे शिक्षक जिंदगी में लागू होने वाले कुछ अच्छे सबक हमेशा सिखा जाते हैं। अगर आपके टीचर्स ने जिंदगी का कुछ ऐसा सबक सिखाया है, तो मुझे लिखें। हम भास्कर के पाठकों के साथ इसे साझा करेंगे।