योगी की नाक के नीचे ‘प्रभारी अफसर योजना ?

सीएम योगी कहते हैं कि उनकी सरकार ने अफसरों के आउट ऑफ टर्न प्रमोशन को खत्म कर दिया। लेकिन, अफसरों ने इसकी काट निकालते हुए आउट ऑफ टर्न पोस्टिंग की नई व्यवस्था शुरू कर दी, जो देश के किसी भी अन्य राज्य में नहीं चल रही।

नियम के मुताबिक, IAS अफसरों का पूरा बैच प्रमोट होता है फिर उसी आधार पर उनकी तैनाती होती है। हालांकि, उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने कुछ खास कृपापात्र अफसरों को मनमाने तरीके से प्रमोशन की प्रत्याशा में एक साल पहले ही उच्च पदों पर प्रभारी अफसर बनाकर विराजमान कर दिया।

2008 बैच के IAS अफसरों पर सरकार मेहरबान
फिलहाल, जैसा माहौल यूपी की नौकरशाही में है, ऐसे में किसी भी बात से इनकार नहीं किया जा सकता। Annual Confidential Report (ACR) अफसरों के कामकाज की समीक्षा का एक पैमाना होता है, जो उनका रिपोर्टिंग अफसर लिखता है। अफसरों की एसीआर ही उनके प्रमोशन का आधार बनती है।

आल इंडिया सर्विस रूल की धज्जियां उड़ाने में योगी सरकार के नियुक्ति विभाग का कोई सानी नहीं है। हैरत की बात है कि बड़े बड़े IAS अफसर सबकुछ देखने के बाद भी ‘धृतराष्ट्र’ बने हुए हैं। पूरी ब्यूरोक्रेसी कुछ अफसरों की बेअंदाजी से परेशान हैं। मगर सोच ईमानदार, काम असरदार की बातें करने वाली यूपी सरकार नौकरशाही की निरंकुशता और घाल मेल के सामने बौनी साबित हो रही है।

तो खुद ही अपनी ACR लिखेंगे सिंह साहब?

चंद्र भूषण सिंह 2008 बैच के IAS हैं। अपर परिवहन आयुक्त के पद पर तैनात हैं।
चंद्र भूषण सिंह 2008 बैच के IAS हैं। अपर परिवहन आयुक्त के पद पर तैनात हैं।

मंत्री तो दूर की बात है, अफसर मुख्यमंत्री की आंखों में भी धूल झोंकने से बाज नहीं आ रहे। सरकार की नजरें इनायत 2008 बैच के IAS अफसरों पर कुछ ज्यादा ही दिखती है। चंद्र भूषण सिंह 2008 बैच के विशेष सचिव स्तर के प्रमोटी IAS अफसर हैं। ये अपर परिवहन आयुक्त के पद पर हैं। इसके साथ ही ये प्रभारी परिवहन आयुक्त भी हैं जो कि सचिव स्तर के अफसर का पद है। तो क्या सिंह साहब अपने ‘प्रतिवेदक अधिकारी’ खुद ही होंगे जो अपनी स्वंय की ACR लिखेंगे।

मासूम अली को नियम से इतर मिली पोस्टिंग

यूपी में 563 IAS और 1072 PCS अफसर
उत्तर प्रदेश में मौजूदा वक्त में 563 आईएएस अफसर हैं और 1072 पीसीएस अफसर फिर भी जिलों में प्रभारी अफसरों की भरमार है। क्या वजह है कि कुछ अफसरों के बीच ही ‘पासिंग द पार्सल’ का गेम खेला जा रहा है।

चहेतों के लिए बदल गया नियम
किंजल सिंह भी 2008 बैच की IAS अफसर हैं, इस समय महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा के पद पर हैं। पिछली सरकारों में इस महत्वपूर्ण कुर्सी पर हमेशा सचिव या उससे सीनियर अधिकारी ही बैठते थे। मगर महज जुमलों से सख्ती और नियम कानून की हर दम दुहाई देने वाली यूपी की योगी सरकार में नियम कानून को ताक पर रखकर प्रभारी अधिकारियों की तैनाती धड़ल्ले से हो रही है। आश्चर्य की बात ये है कि इस ‘प्रभारी अफसर योजना’ का लाभ अपने कुछ खास अफसरों को ही दे रहे हैं वरिष्ठ अफसर।

किंजल सिंह 2008 बैच की IAS अफसर हैं।
किंजल सिंह 2008 बैच की IAS अफसर हैं।

ये सारे प्रभारी अफसर पिछले कई सालों से प्राइम पोस्टिंग पर ही रहे हैं। सूत्रों की माने तो प्रदेश के सियासी गलियारों और ब्यूरोक्रेसी में एक टर्म बड़ा ही चर्चित है ‘SPG प्रोटैक्टी’, जो भी अफसर इस टर्म को आत्मसात करते हैं वो हमेशा बढि़या पोस्टिंग पाते हैं।

गौरतलब है कि 2008 बैच में कुल 17 आईएएस अफसर हैं मगर ‘प्रभारी अफसर योजना’ के इस मॉडल से और इस तरह की मनमानी तैनातियों से ब्यूरोक्रेसी में अंदर ही अंदर खींचतान का माहौल बना हुआ है। सरोज कुमार, अमृत त्रिपाठी, बी चंद्रकला, बालकृष्ण त्रिपाठी, सुखलाल भारती, वेदपति मिश्रा ये सारे अफसर 2008 बैच के हैं और शासन में विशेष सचिव के पद पर तैनात हैं। सूत्रों की माने तो प्रभारी अफसरों की तैनाती के चलते बैच के बाकी अफसरों में ईर्ष्या, कलह का भाव पैदा हो रहा है जिसका सीधा असर विभागीय समन्वय और विकास कार्यों में अवरोध के रूप में पड़ रहा है…क्योंकि बाकी के अफसर बैचमेट प्रभारी अफसरों से बात करने में कतराते हैं।

प्रदेश में अफसरों की लंबी फौज, पर तैनात हो रहे प्रभारी
सबसे बड़ा सवाल ये पैदा होता है आखिर क्या वजह है कि प्रभारी अफसर तैनात किए जा रहे हैं जबकि एक लंबी चौड़ी अफसरों की फौज प्रदेश के पास है। क्या नियुक्ति विभाग ये बताएगा कि ऑनलाइन साफ्टवेयर के जरिए अपनी ACR भरते वक्त चंद्रभूषण सिंह सरीखे प्रभारी अफसरों के ‘प्रतिवेदक अधिकारी’ क्या ये अफसर खुद ही होंगे? क्योंकि नियम तो यही कहता है। उनके गलत कामों पर लगाम कैसे लगेगी और कौन लगाएगा। भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस का इससे बेहतरीन उदाहरण किसी भी राज्य में नहीं देखा सकता जहां बिल्ली को ही दूध की रखवाली का काम दे दिया गया हो।

इतना ही नहीं पिछले दो हफ्तों से प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में तबादलों का दौर चल रहा है। मगर जो अनिर्णय और अनिश्चितता तबादलों में देखने को मिल रही है वो भी मुख्यमंत्री ऑफिस और नियुक्ति विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है। घंटों की मैराथन मीटिंग के बाद IAS अफसरों के तबादलों पर मुहर लगती है।

सिविल सर्विस बोर्ड के अध्यक्ष मुख्य सचिव होतें है और वो सीधे मुख्यमंत्री को तबादलों के बारे में रिपोर्ट करते हैं। अपर मुख्य सचिव नियुक्ति देवेश चतुर्वेदी, अपर मुख्य सचिव मुख्यमंत्री शशि प्रकाश गोयल के साथ बैठकर मुख्यसचिव दुर्गा शंकर मिश्रा तबादलों पर आखिरी मुहर लगाते हैं और मुख्यमंत्री का उसपर अनुमोदन लेते हैं, बावजूद इसके इतनी विसंगतियों भरी सूची से अंदाजा लगाया जा सकता है।

इतने बड़े सूबे के पास कार्यवाहक डीजीपी, मुख्य सचिव दूसरी बार के सेवा विस्तार पर हो तो ब्यूरोक्रेसी में इस तरह की विसंगतियां होना लाजमी है।

[क्या अपनी ACR भी खुद लिखेंगे साहेब?]
[योगी की नाक के नीचे ‘प्रभारी अफसर योजना’; IAS का मनमाने तरीके से ‘तबादला-प्रमोशन’]

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