हर इमारत में एक पॉजिटिव वाइब ज़ोन होना चाहिए !
हर इमारत में एक पॉजिटिव वाइब ज़ोन होना चाहिए …
इससे पहले मैं पूछता क्यों, वह बोली कि “मुझे सड़क पर भूख से रोता बिल्ली का बच्चा दिखा, मुझे नहीं पता उसे क्या खिलाऊं। मैंने दूध दिया, लेकिन वह अभी भी भूखा है। मेरी मां ने कहा कि बहुत ज्यादा दूध भी अच्छा नहीं है। क्या आप थोड़ा फूड देंगे? फूड रखकर खिलाने के लिए मेरे पास न्यूज़ पेपर है।’ मैंने डायनिंग टेबल से टिशू पेपर लिया, बिल्ली के बच्चे के लिए खाना पैक किया और बच्ची से कहा, ‘न्यूज़पेपर पढ़ने के लिए है, प्लेट का अच्छा विकल्प नहीं।’
फिर मैंने समझाया कि प्रिंटिंग इंक में शीशा व भारी धातु तत्व होते हैं, जो पेट में जा सकते हैं। जैसे समोसा, पकोड़े में तेल होता है, एनिमल फूड में भी ऑइल होता है और अगर इसे पेपर में लपेटेंगे तो यह केमिकल सोख लेगा। अगले दो दिन तक बच्ची घर से टिशू पेपर लाई फिर मुझे बताया कि मार्केट से उसे कैट फूड मिल गया है।
एक महीने बाद मैं उसकी मां से मिला, बच्ची को न्यूज़पेपर में पैक करने के नुकसान बताने के लिए उन्होंने मुझे थैंक्यू कहा, उन्हें गर्व था कि अब उनकी बेटी हर चीज टिशू पेपर में पैक करती है और बड़ा पाव वालों को भी सलाह देती है। जाहिर है उस जानकारी ने उसे सशक्त बनाया, जिससे उसमें सकारात्मकता आई।
इस साधारण बातचीत से मुझे एक प्रोफेसर का केबिन याद आ गया, जो कि भोपाल में एसआईआरटीई कॉलेज के एमबीए विभाग से गुजरते हुए दिखा, उसके बाहर लिखा था, “समाधान कक्ष’। मैं रुका और देखा कि प्रोफेसर प्रसन्न जैन विद्यार्थियों की व्यक्तिगत से लेकर पेशेवर समस्याएं सुन रहे थे।
मुझे बताया गया कि बाकी प्रोफेसर्स की तुलना में उनकी डेस्क पर अक्सर भीड़भाड़ होती है क्योंकि छात्रों को लगता है कि वहां उनकी समस्याएं सुनी जाती हैं। विभाग के डीन धर्मेश जैन ने मुझे कहा कि खूबसूरती ये है कि भले ही बच्चों की समस्याएं न सुलझें, पर कम से कम वह सुनते हैं, उन्हें सहज और शांत कर देते हैं।
बीते मंगलवार को शिक्षा मंत्रालय ने प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में शामिल हो रहे बच्चों को ध्यान में रखते हुए स्कूलों को एक गाइडलाइन “उम्मीद (UMMEED)’ का ड्राफ्ट भेजा है, साथ ही स्कूल वेलनेस टीम बनाने के लिए कहा, ताकि खतरे वाले लक्षण दिख रहे विद्यार्थियों की पहचान हो सके।
उम्मीद का अर्थ है- अंडरस्टैंड, मोटिवेट, मैनेज, एंप्थाइज, एंवापर और डेवलप। वहीं सीबीएसई ने सर्कुलर जारी कर स्कूलों से परिसर में स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार के लिए उपाय करने को कहा है। इस तरह स्कूल में सकारात्मकता को बढ़ावा देने के लिए जल्द ही ‘हेप्पीनेस ज़ोन’ होगा। इसमें पॉजिटिव बोर्ड हो सकता है, जहां सकारात्मक सूचनाएं पोस्ट होंगी, विद्यार्थियों को विचार व भाव व्यक्त करने के लिए परिसर जैसे लेट्स टॉक या फिर वेलनेस ज़ोन होंगे।
संक्षेप में कहें तो सब चाहते हैं कि स्कूलों को मेंटल हेल्थ व वेल-बीइंग के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए गतिविधियां आयोजित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। इत्तेफाक है कि आज वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे है। अगली पीढ़ी भारी मनोवैज्ञानिक दबाव में है, आइए हम इस काम को सिर्फ स्कूलों के भरोसे न छोड़ें।
मैं हर हाउसिंग सोसाइटी से अनुरोध करता हूं कि मानसिक स्वास्थ्य के इस ज्वलंत मुद्दे के समाधान के लिए सोसायटी में कम से कम एक व्यक्ति या एक स्थान हो। इस दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है।
……युवा पीढ़ी के बीच मेंटल हेल्थ सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है, ऐसे में न सिर्फ शैक्षणिक संस्थाओं बल्कि ऐसी हर इमारत जहां युवा-बच्चे रहते हैं, वहां एक सुरक्षित और मनोवैज्ञानिक रूप से सहज जगह तैयार करने की जरूरत है।