भाजपा : 49 चेहरे 2 से 8 बार के विधायक !
भाजपा के 57 प्रत्याशियों की चौथी लिस्ट का एनालिसिस ..! 49 चेहरे 2 से 8 बार के विधायक; अगली लिस्ट क्या टिकट कटने वाली होगी?
7 अक्टूबर को डिंडौरी में सभा में सीएम शिवराज ने जनता से पूछा था ‘मामा को मुख्यमंत्री बनना चाहिए कि नहीं?’
क्रिकेट कमेंट्री में एक शब्द ज्यादा सुना जाता है- मनोवैज्ञानिक दबाव। मध्यप्रदेश में टिकट बांटने की तेज शुरुआत कर भाजपा ने विरोधी टीम कांग्रेस के लिए फिलहाल ऐसी ही स्थिति खड़ी कर दी है। हालांकि भाजपा ने तेज शुरुआत में अपने कुछ विकेट भी गंवाए। जैसे- गुना जिले की चांचौड़ा विधानसभा से भाजपा की पूर्व विधायक ममता मीणा ने टिकट नहीं मिलने पर पार्टी को अलविदा कह दिया। कई जगह से एक साथ विरोध के बाउंसर भी आए।
पहली और दूसरी लिस्ट में उन सीटों पर फोकस किया गया, जो हारी हुई थीं। इसमें न उम्र का बंधन था, न हार की सीमा…। चंदेरी से 76 साल के जगन्नाथ सिंह रघुवंशी को टिकट दिया तो दो बार हारे चेहरों पर भी पार्टी ने भरोसा जताया। वजह सिर्फ एक – सर्वे रिपोर्ट। तीसरी लिस्ट में एक ही नाम था। गोंडवाना पार्टी से आई मोनिका बट्टी को टिकट दिया गया। यहां भी जीत के लिए कुछ भी करेगा… वाली बात।
अब चौथी लिस्ट में मौजूदा विधायकों और मंत्रियों को टिकट देकर बीजेपी ने शुरुआती झटकों से उबरकर चुनावी मैदान में सधी हुई बैटिंग करने का प्रयास किया है। नो रिस्क।
चौथी लिस्ट के 57 नामों में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और 24 मंत्रियों के नाम जरूर हैं, लेकिन चौंकाने वाला नाम एक भी नहीं है। हां, पार्टी ने पहली, दूसरी और तीसरी लिस्ट के बाद उठे सवालों के जवाब जरूर दिए हैं…
आइए जानते हैं कुछ सवालों के जवाब…
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चुनाव के बाद भूमिका क्या रहेगी?
इस सवाल का सामना खुद शिवराज को पहली बार इस चुनाव में करना पड़ रहा है। इससे भी आगे यह सवाल उठ रहा था कि वे चुनाव लड़ेंगे या नहीं? दूसरे सवाल का जवाब, तो आ गया, लेकिन पहले सवाल का स्पष्ट जवाब नहीं आया है, क्योंकि पार्टी फिलहाल इस पर जवाब देना नहीं चाहती है। मप्र में चुनावी कमान संभाल रहे गृहमंत्री अमित शाह से शिवराज की मौजूदगी में भी यह सवाल पूछा गया था, तब उन्होंने कहा था यह पार्टी का काम है, पार्टी को करने दीजिए। सियासत में इस तरह के जवाबों के भी कई निहितार्थ होते हैं।
शिवराज मैदान में हैं तो क्या कमलनाथ को भी चुनाव लड़ना ही पड़ेगा?
निश्चित तौर पर। अब कमलनाथ के सामने चुनाव नहीं लड़ने का विकल्प नहीं बचा है। कमलनाथ से कई मर्तबा यह सवाल पूछा जा चुका है कि वे चुनाव लड़ेंगे या नहीं? हर बार जवाब के बाद सवाल बरकरार ही रहा। चुनाव नहीं लड़ने के पीछे यह तर्क दिया जाता रहा है कि उन्हें पूरे प्रदेश को देखना है। शिवराज को भी तो पूरा प्रदेश देखना है? इस सवाल का जवाब कांग्रेस खेमा अपने हिसाब से दे सकता है, लेकिन तर्क भी मजबूत होना चाहिए जो इस मामले में निश्चित तौर पर कांग्रेस के पास नहीं होंगे।
अधिकतर मंत्रियों को टिकट दिए, क्या एंटी इनकम्बेंसी का डर नहीं है?
एंटी इनकम्बेंसी यानी सिस्टम के प्रति दिखाई नहीं देने वाला गुस्सा। यह इलेक्शन की ऐसी टर्मिनोलॉजी है, जो चुनाव के बाद विश्लेषण के काम ज्यादा आती है। वैसे भी राजनीति में धारणाएं और परिभाषाएं बदलती रहती हैं। जिन 24 मंत्रियों को टिकट दिए गए हैं, उनमें अधिकतर चुनावी राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं।
गोपाल भार्गव को ही लीजिए- आठ बार चुनाव जीत चुके हैं। चुनावी कथा के इन पंडितजी के सामने एंटी इनकम्बेंसी का अध्याय कौन बांचेगा? दूसरे कुछ नाम भी ऐसे हैं। पार्टी ने तमाम पहलुओं पर गौर फरमाया और पाया कि मैदानी पकड़ में इनका कोई विकल्प नहीं है। वैसे सभी माननीयों पर यह बात लागू नहीं मानी जानी चाहिए। 2018 में 27 मंत्रियों को टिकट मिला था, जबकि पांच बेटिकट थे। जो मंत्री चुनावी गाड़ी में सवार हुए उनमें से 13 को जनता ने नीचे उतार दिया।
इतने विधायकों को फिर मौका क्यों दिया?
मुख्यमंत्री और 24 मंत्रियों के अलावा 32 विधायकों पर पार्टी ने फिर से भरोसा जताया है। गौर करने वाली बात यह है कि चौथी लिस्ट में अधिकतर वे विधायक हैं, जो दो से ज्यादा बार जीत चुके हैं। जाहिर है पार्टी के सर्वे में इनकी स्थिति बाकी के मुकाबले मजबूत पाई गई है।
क्या अब भाजपा बचे हुए मंत्रियों और विधायकों के टिकट नहीं काटेगी?
जरूर कटेंगे। अब जो नौ मंत्री समेत बाकी 67 विधायक बचे हैं। हो सकता है कि अगले कुछ दिनों तक उन्हें नींद नहीं आने की समस्या का सामना करना पड़े। हालांकि मंत्री यशोधरा ने पहले ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। तय मानिए भाजपा की आने वाली लिस्ट सबसे क्रिटिकल होगी। पार्टियों के रणनीतिकार अच्छी तरह जानते हैं कि टिकट नहीं मिलने से ज्यादा गुस्सा टिकट कटने पर सामने आता है।
पिछले चुनाव में ऐसे अनेक उदाहरण हैं। याद कीजिए जब तत्कालीन गृहमंत्री हिम्मत कोठारी का टिकट कटा था, तब पार्टी के निर्णय के विरोध में उनके समर्थकों का सैलाब सड़कों पर उमड़ा था। भाजपा भी इसी बात का ध्यान रख रही है।
केंद्रीय मंत्री सिंधिया के समर्थकों की क्या स्थिति?
चौथी लिस्ट को देखें तो सिंधिया कैंप की स्थिति ठीक है। सिंधिया समर्थक पांच मंत्रियों के अलावा एक विधायक को टिकट मिला है। हालांकि चार मंत्री ऐसे हैं, जिनका भविष्य आने वाली सूची के बाद साफ होगा। चौथी लिस्ट में इनका नाम नहीं होने का मतलब है कि सबकुछ ठीक नहीं है।
आकाश सहित नेता पुत्र और पुत्रियों का क्या?
इंदौर एक से भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को टिकट देने के बाद सबसे बड़ा सवाल यही उठा कि उनके विधायक पुत्र आकाश का क्या होगा? चौथी लिस्ट में इंदौर-3 का जिक्र नहीं है, जहां से आकाश विधायक हैं। उनकी सीट को होल्ड पर रखने का मतलब है कि आकाश को पिता के चुनाव में काम करने का पार्टी पूरा मौका दे रही है। मंत्री गौरीशंकर बिसेन का नाम इस लिस्ट में नहीं है। पार्टी बिसेन को टिकट नहीं देकर उनकी इच्छा पूरी कर सकती है। बिसेन की इच्छा है कि उनकी राजनीतिक विरासत को उनकी बेटी मौसम संभाले।