ED को धारा 50 में गिरफ्तारी का अधिकार नहीं ?
ED को धारा 50 में गिरफ्तारी का अधिकार नहीं …
HC ने कहा- इसमें एजेंसी को समन जारी करने, डॉक्यूमेंट्स देखने की पावर…
दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार 19 अक्टूबर को कहा कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की धारा 50 के तहत ED (प्रवर्तन निदेशालय) को किसी व्यक्ति को समन जारी करने का अधिकार है, लेकिन गिरफ्तारी का नहीं। जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने यह टिप्पणी की।
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि PMLA की धारा 50 के तहत किसी व्यक्ति को समन जारी करने, डॉक्यूमेंट्स की जांच करने और बयान दर्ज करने का अधिकार है, जिसका अधिकार किसी भी सिविल कोर्ट को होता है। वहीं, PMLA की धारा 19 के तहत किसी शख्स को गिरफ्तार करने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा कि अगर ED किसी शख्स को धारा 50 के तहत समन जारी करती है और बाद में गिरफ्तार कर लेती है। ऐसी स्थिति में जब शख्स कोर्ट को बताएगा कि एजेंसी ने मुझे पूछताछ के लिए बुलाया था, लेकिन गिरफ्तार कर लिया तो कोर्ट उसे आसानी से बरी कर देगी।
ईडी ने एक व्यक्ति के खिलाफ केस दर्ज किया, लेकिन इसकी कॉपी नहीं दी
ED ने 2020 में आशीष मित्तल के खिलाफ ECIR के तहत केस दर्ज किया था। आशीष ने ED की ओर से दर्ज केस को खत्म करने के लिए कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। आशीष ने ECIR के तहत ED की ओर से केस में किसी भी कार्रवाई को रोकने की मांग की थी। ED ने याचिकाकर्ता को 21 अगस्त को पूछताछ के लिए बुलाया था।
मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने PMLA की धारा 50 के तहत ED को मिले अधिकारों का जिक्र किया। आशीष मित्तल ने कोर्ट में बताया कि उनके खिलाफ ED ने ECIR के तहत केस दर्ज किया, लेकिन उन्हें इसकी कॉपी नहीं दी, जबकि कानून के अनुसार उन्हें कॉपी दिए जाने का अधिकार है।
PMLA को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी सुनवाई कर रहा
सुप्रीम कोर्ट भी PMLA को लेकर दाखिल की गई एक रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई कर रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के कई प्रावधानों को गैर-संवैधानिक बताकर चुनौती दी गई थी।
याचिका में कहा- गिरफ्तारी, कुर्की, जब्ती का अधिकार गैर-संवैधानिक
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि PMLA के तहत गिरफ्तारी, जमानत, संपत्ति की जब्ती या कुर्की करने का अधिकार क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट के दायरे से बाहर है। पिटीशंस में मांग की गई कि PMLA के कई प्रावधान गैर संवैधानिक हैं, क्योंकि इनमें संज्ञेय अपराध की जांच और ट्रायल के बारे में पूरी प्रोसेस फॉलो नहीं की जाती।
कोर्ट ने जुलाई 2022 में मामले पर सुनवाई करते हुए प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को सही ठहराया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने रिव्यू पिटीशन दाखिल कर कोर्ट से मामले पर दोबारा विचार करने की अपील की।
रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने माना कि PMLA के दो नियम, ED की तरफ से दर्ज FIR की रिपोर्ट आरोपी को ना देने के प्रावधान और खुद को निर्दोष साबित करने का जिम्मा आरोपी पर होने के प्रावधान पर विचार करने की जरूरत है। मामले में अगली सुनवाई 22 नवंबर को होगी।
मनी-लॉन्ड्रिंग कानून, रिव्यू पिटीशन पर 22 नवंबर को सुनवाई:SC ने कहा- हम फैसले पर नहीं, कुछ बिंदुओं पर विचार कर रहे
सुप्रीम कोर्ट में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) को लेकर दाखिल रिव्यू पिटीशन पर 18 अक्टूबर को सुनवाई हुई। जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच मामले को सुना। बेंच ने कहा कि हम फैसले पर नहीं, बल्कि उसके कुछ प्वाइंट्स पर विचार कर रहे हैं। मामले की सुनवाई के लिए एक दिन तय करेंगे, हर पक्ष को दलील देने के लिए हाफ सेशन मिलेगा। अगली सुनवाई 22 नवंबर को होगी।
सुप्रीम कोर्ट में मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के कई प्रावधानों को गैर-संवैधानिक बताकर चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने जुलाई 2022 में मामले पर सुनवाई करते हुए कानून को सही ठहराया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने रिव्यू पिटीशन दाखिल कर कोर्ट से मामले पर दोबारा विचार करने की अपील की थी।
25 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई की। अदालत ने कहा- हम काला धन और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के समर्थन में हैं, लेकिन हमें लगता है कि कुछ मुद्दों पर फिर से विचार करना चाहिए। कोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।
कोर्ट का मानना है कि कानून के दो नियम, ED की तरफ से दर्ज FIR की रिपोर्ट आरोपी को न देने के प्रावधान और खुद को निर्दोष साबित करने का जिम्मा आरोपी पर होने के प्रावधान पर विचार करने की जरूरत है।
कोर्ट में क्या दलीलें दी गईं…
जस्टिस एसके कौल: हम सीमित दायरे में हैं। हम इस बारे में विचार नहीं करेंगे कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत हुई गिरफ्तारी में जमानत मिलनी चाहिए या नहीं। बल्कि कानून से जुड़े कुछ पहलुओं पर विचार किया जाना है।
सॉलिसिटर जनरल: क्या अपने फैसले पर फिर विचार कर रहे हैं।
SC: हम कुछ प्लाइंट्स पर विचार कर रहे हैं, फैसले पर नहीं।
सॉलिसिटर जनरल: कोर्ट में बहुत विचार-विर्मश करने के बाद फैसला दिया था। याचिकाकर्ता को लगता है कि धारा 50 की गलत व्याख्या की गई है। कल कोई आकर कहेगा कि वह सेम सेक्स मैरिज पर 5 जजों की बेंच की ओर से दिए गए फैसले से समहत नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल: मोटे तौर पर 5 मुद्दे हैं। अदालत का कहना है कि PMLA कोई दंडात्मक कानून नहीं है। वह मेरी पहली समस्या है। मुझे मनी लॉन्ड्रिंग के लिए दोषी ठहराया जा सकता है और सजा सुनाई जा सकती है। क्या यह कोई दंडात्मक कानून नहीं है? कोर्ट कह रही है कि यह नियामक कानून है।
सिब्बल: एक और मुद्दा है, मान लीजिए कि क्राइम एक जगह होता है। जैसे मनी लॉन्ड्रिंग कर्नाटक में होती है, लेकिन बैंक खाता दिल्ली में है। इसलिए पूरा मामला दिल्ली ट्रांसफर कर दिया गया। कपिल सिब्बल बोल रहे थे एएसजी एसवी राजू बीच में बोलते लगते हैं।
जस्टिस कौल- कोर्ट को हम नियंत्रित करते हैं।
25 अगस्त 2022 को रिव्यू पिटीशन पर तात्कालीन CJI एनवी रमना, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने सुनवाई की थी। यह सुनवाई ओपन कोर्ट में हुई, यानी इसमें मीडिया और आम लोगों को कोर्ट की कार्यवाही में देखने के लिए शामिल होने दिया गया था।
कोर्ट ने ED के गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा था
सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2022 को PMLA के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 241 याचिकाओं पर फैसला दिया था। इस एक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मिले गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा था। कोर्ट ने कहा – मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तारी मनमानी नहीं है। इसे लेकर सांसद कार्ति पी चिदंबरम ने कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी।
तीन जजों की बेंच ने सुनाया था फैसला
जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने विजय मदनलाल चौधरी v/s यूनियन ऑफ इंडिया केस और 240 याचिकाओं पर फैसला सुनाया था। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम, महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी ED की गिरफ्तारी, जब्ती और जांच प्रक्रिया को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा था-
1. ED का गिरफ्तारी करने, सीज करने, संपत्ति अटैच करने, रेड डालना और बयान लेने के अधिकार बरकरार रखे गए हैं।
2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायत ECIR को FIR के बराबर नहीं माना जा सकता है। ये ED का इंटरनल डॉक्यूमेंट है।
3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ECIR रिपोर्ट आरोपी को देना जरूरी नहीं है। गिरफ्तारी के दौरान केवल कारण बता देना ही काफी है।
4. PMLA में 2018-19 में हुए संशोधन क्या फाइनेंस एक्ट के तहत भी किए जा सकते हैं? इस सवाल पर 7 जजों की बेंच मनी बिल के मामले के तहत विचार करेगी।
याचिका में कहा था- गिरफ्तारी, कुर्की, जब्ती का अधिकार गैर-संवैधानिक
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि PMLA के तहत गिरफ्तारी, जमानत, संपत्ति की जब्ती या कुर्की करने का अधिकार क्रिमिनल प्रोसीजर एक्ट के दायरे से बाहर है। दायर की गई याचिकाओं में मांग की गई थी कि PMLA के कई प्रावधान गैर संवैधानिक हैं, क्योंकि इनमें संज्ञेय अपराध की जांच और ट्रायल के बारे में पूरी प्रोसेस फॉलो नहीं की जाती है, इसलिए ED को जांच के समय CrPC का पालन करना चाहिए। इस मामले में सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत कई वकीलों ने अपना पक्ष रखा।