शिक्षण संस्थानों में सुरक्षा पर सवालिया निशान ?
यह वाकई शर्मनाक बात है कि हमारे शैक्षणिक संस्थान तक छात्राओं के लिए सुरक्षित नहीं हैं। यह एक ही मामला नहीं है। इस तरह के मामले थोड़े-थोड़े अंतराल में सामने आते ही रहतेे हैं। बहुत सारे मामले तो सामने आते भी नहीं। कुछ समाजकंटक अपनी मर्दानगी, दबंगता और कुंठा निकालनेे के लिए किसी भी हद तक जाने का तैयार रहते हैं। उन्हें महिलाएं आसान शिकार नजर आती हैं। छोटे-मोटे मामलों को तो छात्राएं दरगुजर कर देती हैं। इस कारण भी समाजकंटकों के हौसले बुलंद हो जाते हैं। ऐसे तत्वों की समय रहते पहचान करके त्वरित कार्रवाई ही इनके हौसलों को पस्त कर सकती है। विडंबना यह है कि हर बार इस तरह की घटनाओं के मामले में पुलिस और प्रशासन की सक्रियता कुछ समय तक ही नजर आती है। कुछ समय बाद फिर पहले जैसी स्थिति हो जाती है। घटना के विरोध में विद्यार्थियों के व्यापक आंदोलन के बाद बीएचयू प्रबंधन ने चिंता दर्शाई है, लेकिन उसके पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि कैसे बाइक पर सवार बाहरी समाजकंटक बेरोक-टोक परिसर में आ जाते हैं, इतनी बड़ी वारदात कर जाते हैं और बिना कोई पहचान छोड़े आसानी से बाहर भी चले जाते हैं? शिक्षण संस्थानों की सुरक्षा पुख्ता होनी चाहिए। प्रवेश द्वार पर सुरक्षाकर्मी होने चाहिए, संस्थान के समय से अतिरिक्त समय में प्रवेश की प्रविष्टि और परिसर में पर्याप्त संख्या में सीसीटीवी कैमरे होने चाहिए।
सुरक्षा व्यवस्था में लापरवाही का खमियाजा विद्यार्थियों को तो भुगतना ही पड़ता है, इस तरह की घटनाओं से शिक्षण संस्थान, शहर और देश की छवि भी बिगड़ती है। छात्र-छात्राएं सुरक्षित माहौल के हकदार हैं। आपराधिक तत्वों को सबक मिले, यह भी बहुत जरूरी है। वाराणसी की पुलिस को समाजकंटकों की धरपकड़ करनी होगी। इस घटना से बीएचयू प्रबंधन ही नहीं, सभी शिक्षण संस्थानों को सबक लेना चाहिए और सुरक्षा व्यवस्था के मामले में किसी तरह की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।