महंगे होते जा रहे उपचार से बढ़ रहीं चुनौतियां
महंगे होते जा रहे उपचार से बढ़ रहीं चुनौतियां …
पहले से ही महंगे इलाज की समस्या से जूझ रहे देश के लिए दुनिया की प्रतिष्ठित व विश्वसनीय संस्था विलिस टॉवर्स वॉटसन (डब्ल्यूटीडब्ल्यू) के ग्लोबल मेडिकल ट्रेंड सर्वे की ताजा रिपोर्ट उत्साहजनक नहीं है। रिपोर्ट इस दृष्टि से चिंताएं और आशंका बढ़ाने वाली है कि आम व्यक्ति के इलाज का खर्च अगले साल दस प्रतिशत से ज्यादा महंगा होने वाला है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों में इसका असर होने वाला है। भारत के लिए यह ज्यादा बड़ी चुनौती इसलिए है क्योंकि तमाम पहलुओं में हम उनसे बहुत अलग हैं।
चिंता को इस दृष्टिकोण से समझा जा सकता है कि देश का आम आदमी इलाज के खर्च का मौजूदा स्तर ही वहन करने की स्थिति में नहीं है। इलाज के खर्च के अभाव में दम तोड़ने या तकलीफ सहते रहने को विवश मरीजों की संख्या का कोई हिसाब नहीं है। देश की एक बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है।। देश में अस्सी करोड़ लोग सरकार की मुफ्त अनाज की योजना पर निर्भर हैं। जिन लोगों के पास अपने दम पर पेट भरने लायक सामर्थ्य तक नहीं हो, वे इलाज की भारी-भरकम रकम वहन कैसे कर सकते हैं। इस वर्ग के लिए दस प्रतिशत ज्यादा खर्च का मतलब है इलाज प्राप्त करने की रही-सही आस पर भी पानी फिरना। महंगे इलाज से सिर्फ यही वर्ग प्रभावित नहीं होगा। सब पर इसका असर आने वाला है। उन पर भी जिनका स्वास्थ्य बीमा है, क्योंकि इलाज का खर्च और स्वास्थ्य बीमा की दर एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसी सर्वे का निष्कर्ष है कि इलाज महंगा होने के साथ ही अगले साल स्वास्थ्य बीमा भी 12 प्रतिशत से ज्यादा महंगा हो जाएगा। इसका अर्थ है कि स्वास्थ्य बीमा वालों को भी 12 फीसदी प्रीमियम ज्यादा देना पड़ेगा। यह सरकार और बीमा नियामक के लिए एक और बड़ी चुनौती है। देश की लगभग दो तिहाई आबादी स्वास्थ्य बीमा से कवर नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं तक अल्प पहुंच, शिक्षा और जागरूकता का अभाव तो इसकी वजह है ही, इसका एक बड़ा कारण कमजोर आर्थिक स्थिति भी है। ऐसे में आम आदमी की तकलीफ कम करने और उसे राहत पहुंचाने के लिए सरकार को अपने प्रयास बढ़ाने होंगे।
वर्तमान में सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि वंचित वर्ग की उपचार तक पहुंच कितनी मुश्किल है। सरकारी अस्पतालों के हालात सुधारे बिना हर वर्ग तक चिकित्सा सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता। इसलिए सरकार को इस दिशा में ठोस प्रयास करने होंगे। सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ानी होंगी। अस्पतालों में चिकित्सकों और अन्य चिकित्साकर्मियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के साथ दवाओं की आपूर्ति का भी ध्यान रखना होगा।