कूनो में चीतों के भोजन का संकट ?

कूनो में चीतों के भोजन का संकट:शिकार के लिए एक वर्ग किमी में होना चाहिए 27 चीतल, हैं सिर्फ 16

कूनो नेशनल पार्क में करीब चार माह बाद तीन चीते अग्नि, वायु और मादा चीता वीरा को एक बार फिर बाड़े से खुले जंगल में छोड़ा गया है। भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून की रिपोर्ट ने कूनो प्रबंधन के इस फैसले पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

इस रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जंगल में शाकाहारी वन्यजीवों की संख्या में कमी हुई है। चीतों का मुख्य भोजन चीतल है। यहां एक वर्ग किमी के दायरे में 16 चीतल बचे हैं जबकि मानक संख्या 27 होनी चाहिए।

विशेषज्ञों का कहना है कि चार महीने तक चीते बाड़े में बंद थे, इस दौरान यहां चीतल की आबादी बढ़ाने पर कूनो प्रबंधन को फोकस करना चाहिए था। इसी साल जनवरी में हुए सर्वे में चीतल की संख्या कम होने के संकेत मिल गए थे, लेकिन इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया।

भारतीय वन्यजीव संस्थान ने जनवरी महीने में कूनो में सर्वे किया था। उस समय प्रतिवर्ग किमी में 18 चीतल पाए गए थे, अब ये संख्या घटकर 16 बची है। वन अधिकारियों का कहना है कि इस संख्या को बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं। अब चीतल की संख्या कम होने के कारण चीतों को शिकार में क्या दिक्कतें आ सकती हैं, आखिर लापरवाही किस स्तर पर हुई है। ….. ने वन विभाग के अफसर और विशेषज्ञों से बात कर समझा।

10 साल में 74 फीसदी घट गई चीतल की आबादी
वन अधिकारियों के मुताबिक 10 साल पहले 2013 में कूनो में प्रतिवर्ग किमी में 61 चीतल थे। 2021 में इनकी संख्या घटकर 23 रह गई। रिटायर्ड पीसीसीएफ रामगोपाल सोनी कहते हैं- चीता जिनका शिकार करते हैं उन्हें प्रे-बेस कहते हैं। इनमें चीतल, बारहसिंघा, हिरण, नीलगाय जैसे जानवर आते हैं। चीता, भोजन के लिए पूरी तरह से चीतल पर ही निर्भर होता है, क्योंकि वह इतना शक्तिशाली नहीं होता कि बाकी वन्यप्राणी जैसे जंगली सूअर का शिकार कर सके। टाइगर के लिए भी जंगली सूअर का शिकार करना इतना आसान नहीं होता।

सोनी कहते हैं- प्रति वर्ग किलोमीटर में कम से कम 27 चीतल होना चाहिए। चीता तीन से चार दिन में एक बार शिकार करता है। चीतल की संख्या कम होगी तो उसे शिकार के लिए लंबी दूरी तय करना पड़ेगी। भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून भी इसे लेकर चिंता जता चुका है।

एक वर्ग किमी के दायरे में 27 चीतल होना चाहिए। कूनो में ये संख्या 16 हैं।
एक वर्ग किमी के दायरे में 27 चीतल होना चाहिए। कूनो में ये संख्या 16 हैं।

शिकार की तलाश में दूर जा रहे चीते, 22 दिन बाद मादा चीता को पकड़ा था
रामगोपाल सोनी बताते हैं- प्रे-बेस की कमी की वजह से कूनो में चीते शिकार की तलाश में दूर तक जाते हैं। 21 जुलाई को रेडियो कॉलर बंद होने के बाद दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता निर्वा कूनो में लापता हो गई थी। उसे 22 दिन की खोज के बाद 13 अगस्त को धोरेट रेंज से पकड़ा गया था। निर्वा की खोज के लिए चीता ट्रैकर्स, अधिकारियों और पशु चिकित्सकों समेत 100 से ज्यादा फील्ड कर्मचारियों को तैनात किया गया था। टीम के अलावा, दो ड्रोन कैमरे, एक डॉग स्क्वॉड और हाथियों के दल को तैनात किया था। 22 दिन तक 15 से 20 किमी क्षेत्र की खोज के बाद निर्वा को 6 घंटे की मशक्कत के बाद पकड़ा गया था।

लापता मादा चीता निर्वा को 22 दिन बाद 13 अगस्त को पकड़ा गया था।
लापता मादा चीता निर्वा को 22 दिन बाद 13 अगस्त को पकड़ा गया था।

एक्सपर्ट बोले- अवैध शिकार की वजह से कम हुए चीतल
पिछले 10 वर्षों में प्रे-बेस दोगुना होने की बजाय एक चौथाई रह गया। इसका सबसे बड़ा कारण अवैध शिकार भी है। सोनी के मुताबिक ग्रामीण चीतल और नीलगाय का लगातार शिकार कर रहे हैं। एक चीतल का मांस 5 से 6 हजार तो एक नीलगाय का मांस 10 हजार रुपए तक में बेचा जाता है। अवैध शिकार पर विभाग रोक लगाने में नाकाम ही रहा है।

नाम न बताने की शर्त पर भारतीय वन्य जीव संस्थान के एक विशेषज्ञ ने बताया कि जब नामीबिया से चीतों को यहां लाया गया था तो रात में गोलियां चलने की आवाजें सुनाई देती थी। इससे साफ है कि यहां वन्यजीवों का शिकार अब भी हो रहा है, वन विभाग के लिए ये बड़ी चिंता की बात है।

1300 चीतल का टारगेट था, इसमें से 750 छोड़ दिए हैं
प्रे-बेस कम होने के सवाल पर पीसीसीएफ असीम श्रीवास्तव का कहना है- कूनो में घास के पर्याप्त मैदान हैं, करीब 8 से 9 हजार चीतल सहित मोर, चिंकारा नीलगाय सहित अन्य शाकाहारी वन्यप्राणी भी 18 हजार से ज्यादा है। शाकाहारी वन्य प्राणी हमेशा झुंड में भी भोजन करते हैं। ऐसे में चीतों को शिकार में किसी तरह की परेशानी नहीं होगी।

श्रीवास्तव कहते हैं, जहां तक चीतल की संख्या बढ़ाने की बात है तो 1300 चीतल को कान्हा और पेंच से ट्रांसलोकेट करने का प्लान तैयार किया है। इसमें से 750 चीतल को यहां शिफ्ट कर चुके हैं। जैसे-जैसे जरूरत पड़ेगी चीतल की शिफ्टिंग की जाएगी।

अग्नि, वायु और मादा चीता वीरा को खुले में छोड़ा
17 दिसंबर को कूनो नेशनल पार्क में अग्नि और वायु नाम के दो नर चीतों को अहेरा पर्यटन क्षेत्र में आने वाले पारोंद वन क्षेत्र में छोड़ा गया है। 20 दिसंबर को मादा चीता वीरा को छोड़ा गया है। चीता स्टियरिंग कमेटी की टीम तीनों पर नजर बनाए हुए हैं। इनके शिकार और जंगल में मूवमेंट को देखकर ही बाकी चीतों को खुले में छोड़ने का फैसला किया जाएगा। कूनो में इस समय 14 वयस्क चीते और एक चीता शावक है। इनमें सात नर चीते गौरव, शौर्य, वायु, अग्नि, पवन, प्रभाष और पावक हैं, जबकि सात मादा चीतों में आशा, गामिनी, नाभा, धीरा, ज्वाला, निर्वा और वीरा शामिल हैं।

तीन चीतों को जंगल में छोड़ा है। बाकी 11 चीतों को भी जल्द ही छोड़ा जाएगा।
तीन चीतों को जंगल में छोड़ा है। बाकी 11 चीतों को भी जल्द ही छोड़ा जाएगा।

पांच माह में 6 चीते, 3 शावकों की हुई मौत, पर्यटन भी नहीं बढ़ा
17 सितंबर 2022 को नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को यहां छोड़ा गया था। वहीं, साउथ अफ्रीका से 12 चीतों को इस साल 18 फरवरी को यहां लाया गया था। कूनो में 5 माह में 6 चीतों और 3 शावकों की मौत हो गई। जिसके बाद इनकी सुरक्षा को देखते हुए जुलाई में इन्हें फिर से बाड़े में बंद कर दिया गया था।

प्रोजेक्ट चीता आने के बाद पर्यटन बोर्ड यहां सैलानियों को आकर्षित करने के लिए कूनो फॉरेस्ट फेस्टिवल आयोजित कर रहा है। हालांकि, अभी पर्यटक यहां आने में खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। 1 अक्टूबर से अब तक करीब 800 पर्यटक ही पार्क पहुंचे हैं। यहां सेसईपुरा में कूनो नदी क्षेत्र को शामिल कर देश की पहली चीता सफारी प्रोजेक्ट शुरू करने की योजना है। सेंट्रल जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया से सफारी को मंजूरी मिल चुकी है, लेकिन अभी काम शुरू नहीं हुआ है।

कूनो में चीतों की लगातार मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया था। वन विभाग को व्यवस्थाएं सुधारने के लिए कहा था।
कूनो में चीतों की लगातार मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया था। वन विभाग को व्यवस्थाएं सुधारने के लिए कहा था।

बाड़े में बंद चीतों की मेटिंग का सही समय था
जिस समय नामीबिया और साउथ अफ्रीका से चीते कूनो लाए गए तब मप्र के पीसीसीएफ जेएस चौहान थे, वे अब रिटायर हो चुके हैं। चौहान का कहना है- चीतल की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ वन महकमे को चीतों की मेटिंग पर भी ध्यान देना चाहिए था। जब चीते बाड़े में बंद थे तब उनकी मेटिंग का सही समय था। नर और मादा को मेटिंग कॉल के समय एक बाड़े में रखना चाहिए था, लेकिन पुराने अनुभवों को देखते हुए ऐसा नहीं किया गया।

चौहान ने कहा कि इस प्रोजेक्ट की कामयाबी इसी बात पर टिकी हैं कि यहां कितने चीते जन्म लेते हैं, क्योंकि शावक चीतों में सर्वाइवल रेट 25 से 30 प्रतिशत ही है। वहीं चीतल की आबादी न बढ़ने पर भी सवाल उठाते हुए वे कहते हैं- बढ़ोतरी ना होने का कारण अवैध शिकार ही समझ में आता है। इस पर अंकुश लगाना बेहद जरूरी है नहीं तो प्रे-बेस और भी कम हो जाएगा।

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