क्या है इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) क्यों इसके फैसले महत्वपूर्ण हैं,
क्या है इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) क्यों इसके फैसले महत्वपूर्ण हैं,
यूनाइटेड नेशंस की सर्वोच्च अदालत में साउथ अफ्रीका द्वारा इजराइल पर लगाए गए नरसंहार के आरोपों पर सुनवाई की। ये सुनवाई कानूनी तौर पर बाध्य करती है और इसके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है।
हालांकि, इसके द्वारा दिए गए फैसले को लागू करने की कोई व्यवस्था न होने के कारण, इससे बच निकलने के रास्ते खोज लिए जाते हैं।
यूनाइटेड नेशंस की सबसे ऊंची न्यायिक संस्था, इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ), एक बार फिर खबरों में छाई हुई है।
पिछले दिनों, यहां दक्षिण अफ्रीका द्वारा दायर एक मामले में सुनवाई हुई, जिसमें इजराइल पर गाजा में नरसंहार करने का आरोप लगाया गया था।
7 अक्टूबर को हमास के हमले में 1,200 इजराइली मारे गए थे, जिसके बाद इजराइल ने गाजा पर जवाबी कार्यवाही में 23,000 से अधिक फिलिस्तीनी लोगों की हत्या कर दी और गाजा के 90% से अधिक लोग बेघर हो गए हैं।
इजराइल द्वारा नरसंहार के आरोपों को खारिज करने के बाद इस मामले पर महीनों तक सुनवाई चलने की सम्भावना है।
दो विश्व युद्ध के रूप में दशकों तक चले अंतर्राष्ट्रीय विवादों के बाद यूनाइटेड नेशंस चार्टर के आधार पर जून 1945 में नीदरलैंड के हेग में स्थित पीस पैलेस में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस की स्थापना हुई थी।
इस बहुपक्षीय मंच के पास दो तरह की क्षेत्रीय शक्तियां हैं, एडवाइजरी जूरिडिक्शन (क्षेत्रीय) शक्ति और विवाद से जुड़े मामलों में क्षेत्रीय शक्ति।
एडवाइजरी जूरिडिक्शन शक्ति का इस्तेमाल देशों के बीच विवाद की स्थिति में कानूनी सलाह देने के लिए किया जाता है।
साथ ही, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन की स्थिति में देशों की जिम्मेदारी भी इसी के जरिए तय की जाती है।
ICJ की स्थापना से पूर्व, परमानेंट कोर्ट ऑफ इंटरनेशनल जस्टिस दोनों विश्व युद्धों के बीच अपने फैसलों को लागू करने में विफल रहने के कारण बेअसर हो गया था।
इस कोर्ट में कुल 15 जज होते हैं, जिनका कार्यकाल नौ सालों तक चलता है। इन्हें यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली और यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल में एक साथ होने वाले अलग चुनावों के जरिये नियुक्त किया जाता है।
हालांकि, कुछ मामलों में, जरूरत के अनुसार विशेष विवादों पर ज्ञान रखने वाले अस्थाई जजों को भी नियुक्त किया जाता है।
ICJ के जजों को निष्पक्ष होना चाहिए और वे अपने देश के पक्ष में कार्य नहीं कर सकते। हालांकि, अतीत में, जजों ने अपने देश की राजनीति को ध्यान में रखते हुए अपने मत का इस्तेमाल किया है।
जैसा कि 2022 में, जब कोर्ट ने रूस को यूक्रेन में सैन्य कार्यवाही तुरंत रोकने के निर्देश दिए, तब रूस और चीन के जजों ने इस फैसले के खिलाफ अपना मतदान किया।
वास्तव में, भारत द्वारा ICJ के लिए नियुक्त जस्टिस दलवीर भंडारी ने जब रूस के खिलाफ आखिरी फैसले के पक्ष में अपना मत दिया, तब उसे भारत के आधिकारिक पक्ष के विरोध की तरह देखा गया।
इससे पहले यूक्रेन-रूस युद्ध से जुड़े हर मतदान में भारत ने हिस्सा नहीं लिया है।
लागू करने की शक्तियों का अभाव
भले ही, कोर्ट के फैसले कानूनी रूप से बाध्य करते हैं, और इनके खिलाफ अपील नहीं की जा सकती है।
इसके साथ ही दिए गए फैसले को लागू करने की कोई व्यवस्था न होने के कारण इनसे बच निकलने की सम्भावना रहती है।
यूनाइटेड नेशंस चार्टर, यूनाइटेड नेशंस सिक्योरिटी काउंसिल को कोर्ट के फैसले लागू करने का अधिकार देता है।
हालांकि, इनका पालन सिक्योरिटी काउंसिल के स्थाई सदस्यों की सत्ता की राजनीति पर निर्भर करता है।
इजराइल के खिलाफ किसी भी फैसले को लागू करने के विरोध में, इजराइल के सबसे मजबूत सहयोगी, अमेरिका द्वारा वीटो का इस्तेमाल हो सकता है।
शक्तिशाली सदस्य देशों की सुनवाई के दौरान हिस्सा नहीं लेने वाले देश, कोर्ट की कार्य क्षमता के लिए चुनौती है।
2022 में, यूक्रेन द्वारा रूस के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में, रूस ने मुकदमे को बेतुका बता कर इसे न्याय प्रक्रिया में शामिल करने से इंकार कर दिया।
इसी तरह, यूनाइटेड स्टेट्स के कंट्रोल के समर्थन के खिलाफ निकारागुआ द्वारा शुरू किये गए प्रसिद्द मामले में यूनाइटेड स्टेट्स ने कोर्ट के फैसले को मानने और उसे लागू करने से इंकार कर दिया।
ICJ की धीमी और नौकरशाही से चलने वाली प्रक्रिया के कारण फैसले आने में कई साल लग जाते हैं, जिसकी आलोचना होती रही है। इजराइल पर गाजा में नरसंहार के मामले में फैसला आने में कई साल का समय लग सकता है।
2019 में, गाम्बिया द्वारा म्यांमार के खिलाफ रोहिंग्या शरणार्थियों पर दायर मामले पर सुनवाई जारी है। गाम्बिया द्वारा मामला दायर करने के ढाई साल बाद भी अस्थायी उपायों पर ही फैसला आ पाया है।
नरसंहार के पहले दो मामलों में तथ्यों के आधार पर आखिरी फैसला आने में एक दशक से भी अधिक का समय लग गया।
ये मामले थे – क्रोएशिया बनाम सर्बिया तथा बोस्निया और हर्जेगोविना बनाम सर्बिया और मॉन्टेंगरो। ऐसे में, सवाल उठता है कि क्या कोर्ट द्वारा अन्याय के खिलाफ दिया कोई भी फैसला अंत में बेकार हो जाता है।
कोर्ट कितना प्रासंगिक रह गया है
पिछले कुछ दशकों में, देश ऐसे भी मामले लेकर कोर्ट में पहुंच रहे हैं जो आम तौर पर दायर नहीं किए जाते थे, जैसे कि मानवाधिकार और पर्यावरण का उल्लंघन।
ICJ उन देशों की भागीदारी को आगे बढ़ाने में भी सफल रहा है, जिन्होंने कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को स्वीकार नहीं किया है। ऐसा करने के लिए कोर्ट विशेष समझौतों और विवाद निपटाने के हिस्सों का उपयोग करती है।
रोमानिया ने हाल ही में कोर्ट के अधिकार के समर्थन के लिए एक घोषणा सामने रखी है, जिसकी अब तक 30 से अधिक देश समर्थन कर चुके हैं।
हर्जाने से जुड़े महत्वपूर्ण फैसलों के संबंध में भी आदेश का पालन किया गया है।
2022 के डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) बनाम युगांडा के मामले में अपने फैसले में, कोर्ट ने व्यक्तियों और प्राकृतिक संसाधनों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए पांच सालाना किश्तों में कुल 325 मिलियन डॉलर DRC को भुगतान करने का आदेश दिया था।
इसके बाद, युगांडा ने फैसले का पालन करते हुए DRC को पहला भुगतान सही समय पर किया।
कोर्ट की सलाहकार की भूमिका ने विवादों के शांतिपूर्ण समाधान खोजने और राजनयिक प्रयासों को आगे बढ़ाने में मदद की है।
अतीत में, इसके द्वारा जारी की गयी सलाह में, जिनमें 1996 में ‘परमाणु हथियारों के खतरे या उपयोग की वैधता’ और 2004 में ‘ कब्जे वाले फिलिस्तीनी क्षेत्र में दीवार बनाने के कानूनी नतीजे ‘ शामिल हैं।
2022 में, इजराइल-फिलिस्तीन विवाद में, यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली ने एक प्रस्ताव पारित कर ICJ से फिलिस्तीनी क्षेत्रों के इजराइल के अवैध कब्जे के कानूनी नतीजों पर अपनी सलाह देने की मांग की है।
दक्षिण अफ्रीका द्वारा शुरू की गई, मौजूदा कार्यवाही सबूतों को दस्तावेज में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
विशेष महत्त्व
अंतर्राष्ट्रीय न्यायिक (judicial) निपटारे के लिए नए कोर्ट और ट्रिब्यूनल आने के बावजूद, ICJ ने अपने लिए विशेष स्थान बनाया है।
आज यह कोर्ट परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट, इंटरनेशनल ट्रिब्यूनल फॉर लॉ ऑफ सी और वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन द्वारा बनाये गए पैनलों के साथ अपनी जगह बनाए हुए है।
हालांकि, विभिन्न कोर्ट द्वारा आपस में विरोधी फैसले देने की स्थिति में संभावित विभाजन की चिंताएं भी उठ रही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कानून के विकास में कई ऐतिहासिक प्रगति के बावजूद, राजनीतिक झुकाव के कारण ICJ के प्रभाव पर बुरा असर पड़ता है।
एक संस्था को विश्व व्यवस्था के उच्च स्थान पर रख देने से पूरे न्यायिक ढांचे के राजनीतिक और संस्थागत सीमाओं से प्रभावित होने का खतरा है।वहीं दूसरी ओर, एक वितरित (बटीं हुई) न्याय व्यवस्था, अधिक न्यायिक स्वतंत्रता को बढ़ावा दे सकती है।
कई बार कूटनीति विफल रही है, अंतरराष्ट्रीय कानून ही आखिरी सहारा बने हैं – जिसकी बुनियाद वर्ल्ड कोर्ट के हितों की रक्षा पर टिकी हुई है।