अतीक के माफिया बनने की कहानी ?

अतीक के माफिया बनने की कहानी  …!
मायावती की सरकार गिराने के लिए गेस्ट हाउस कांड करवाया, भाई चुनाव हारा तो विधायक को दौड़ाकर गोली मरवाई

बात, साल 1979 की है। चकिया का अतीक अहमद चांद बाबा को हराकर विधायक बन चुका था। अब तक चकिया और इलाहाबाद में शौक इलाही उर्फ चांद बाबा का सिक्का चलता था। रंगबाजी के दम पर अतीक चांद बाबा की नजर में आया। चांद बाबा ने पीठ पर हाथ क्या रखा, अतीक इलाहाबाद की सरजमीं पर घोड़े जैसे दौड़ने लगा।

अतीक अपने खौफ के साम्राज्य को बढ़ाने के लिए उतावला दिखाई देने लगा। 1985 आते-आते उसका नाम चांद बाबा से बड़ा हो गया था। 1989 में यूपी में विधानसभा के चुनाव थे। चांद बाबा यहां से विधायक थे। अतीक ने अपने गुरु बाबा के खिलाफ इलाहाबाद पश्चिमी से निर्दलीय प्रत्याशी की दावेदारी ठोक दी। इस चुनाव में चांद बाबा को सिर्फ 9281 वोट मिले। अतीक 25,906 वोट पाकर चुनाव जीत गया। यहीं से अतीक चांद बाबा की स्याह सल्तनत का वारिस बन गया।

चुनाव नतीजों के बाद अतीक चांद बाबा के साम्राज्य की जड़ों में घुसने लगा। बाबा का मर्डर प्लान तैयार किया। बात, 1989 की है। चुनाव के चंद महीने बाद ही चांद बाबा की रोशन बाग में गोली और बम बरसाकर सरेआम हत्या कर दी गई। हत्याकांड के बाद अतीक का नाम देश में मशहूर हो गया।

मैं उत्तर प्रदेश हूं…। 

चांद बाबा की हत्या के बाद अतीक के सिर पर खून सवार हुआ, और ताबड़तोड़ तमाम हत्याओं को अंजाम दिया। आइए उनमें से कुछ एक की कहानी पढ़ते हैं-

रसूख ऐसा कि पार्षद कुन्नू की हत्या में 5 साल बाद हुई थी पहली कार्रवाई

1994 में इलाहाबाद में वार्ड पार्षद अशफाक कुन्नू की हत्या हो जाती है। अतीक अहमद पर पार्षद कुन्नू की हत्या करवाने का आरोप लगता है। अतीक के भाई अशरफ का नाम भी केस में जुड़ा। हालांकि, उस वक्त अतीक का दबदबा ऐसा था कि उस पर कानूनी शिकंजा नहीं कसा जा सका। 5 साल बाद 1999 में सरकार भाजपा की आई तो पहली बार केस में कार्रवाई शुरू हुई। तत्कालीन एसपी सिटी लालजी शुक्ला ने मामले में पहली कार्रवाई की। आगे चलकर अशरफ की गिरफ्तारी भी हुई।

लखनऊ गेस्ट हाउस कांड- सरकार गिराने के लिए मायावती के साथ बदसलूकी

साल 1995, 2 जून को लखनऊ में ऐसी वारदात होती है, जिसकी चर्चा देश और दुनिया में हुई। सत्ता बदलने के लिए लखनऊ में गेस्ट हाउस कांड को अंजाम दिया जाता है। इस घटना में अतीक का नाम आया। उस समय यूपी में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार थी।

बसपा गठबंधन को तोड़ने के लिए मायावती स्टेट गेस्ट हाउस में बैठक कर रही थीं। उसी वक्त सपा के विधायक वहां पहुंचकर मारपीट करने लगे। मायावती के साथ भी बदसलूकी की गई। इसमें अतीक अहमद की भूमिका बताई जाती है। अतीक पर विधायकों को एकजुट कर गेस्ट हाउस पहुंचाने का आरोप लगा था।

व्यापारी के भाई को अशरफ ने मारी गोली, जेल अतीक गया

1996, इलाहाबाद में व्यवसायी अशोक साहू की हत्या कर दी जाती है। इस वारदात को इलाहाबाद के सबसे पॉश इलाका सिविल लाइंस में अंजाम दिया जाता है। घटना में अतीक के भाई अशरफ का नाम आया। अशरफ ने अशोक को दौड़ाकर गोली मार दी थी। हत्याकांड में अतीक और उसके पिता जेल भी गए। हालांकि, अशरफ को बचाने के लिए उसे घटना के 2 दिन पहले चंदौली में एक थानेदार ने तमंचा के साथ गिरफ्तार दिखा दिया था। इससे अशरफ हत्याकांड से बच निकला।

कब्रिस्तान के पास से हिंदुओं को घर छोड़ने का फरमान

कब्रिस्तान प्रकरण, फरवरी-मार्च 2015 का वाकया है। अतीक ने अपने घर के आसपास के हिंदुओं को मकान खाली करने का आदेश दे दिया था। उस समय प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे। अतीक ने अपने कसारी- मसारी मोहल्ले में रहने वाले हिंदुओं को घर छोड़ने का फरमान जारी कर दिया।

अतीक का कहना था कि हिंदुओं ने कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जाकर मकान बना लिए हैं। घरों के मालिक पुलिस के पास गए। कोई सुनवाई नहीं हुई। राजनीतिक गलियारे में मामले ने तूल पकड़ा तो सरकार घिर गई। सरकार के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझा।

भाजपा नेता अशरफ को इसलिए मरवा दिया, क्योंकि उसका नाम भाई के नाम पर था

वक्त के साथ रंगबाजी का भूत अतीक से ज्यादा उसके भाई के सिर पर सवार होता गया। अब अतीक के आधे काम को उसका भाई अशरफ संभालने लगा था। वाकया, 2003 का है। अतीक ने भाजपा नेता अशरफ की गोली मारकर हत्या करवा दी थी। दरअसल, अतीक की कोठी चकिया में थी, उसी के घर के सामने अशरफ का भी घर था।

इस हत्याकांड की वजह, सिर्फ इतनी बताई जाती है कि अतीक का कहना था कि भाजपा नेता का नाम उसके भाई के नाम पर है। वह विपक्षी दल भाजपा के लिए काम करके मुझे चिढ़ाता है। भाजपा नेता अशरफ की हत्या के बाद उसके शव को लेकर अतीक के गुर्गे भाग गए थे। परिवार वालों को शव के लिए कई दिनों तक अतीक के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा था।

भाई चुनाव हारा तो विधायक राजू पाल को दौड़ाकर मरवाया

विधायक अतीक 2004 में फूलपुर सीट से आम चुनाव में जीत दर्ज करके संसद पहुंचता है। इसके चलते उसकी अपनी विधानसभा सीट इलाहाबाद शहर पश्चिमी खाली हो जाती है। सीट पर उपचुनाव होता है। अतीक ने अपने भाई अशरफ को उम्मीदवार बनवा दिया। सपा के सिंबल पर अशरफ मैदान में उतरा। मुकाबला बसपा के राजू पाल से होता है। राजू ने अतीक के भाई अशरफ को हरा दिया।

राजू पाल की जीत ने अतीक के गुरूर को तोड़ दिया। जवाब में दोनों भाइयों ने राजू पाल की हत्या की साजिश रची। 25 जनवरी 2005 की बात है। राजू पाल किसी काम से बाहर गए हुए थे, अतीक के भाई अशरफ और उसके शूटर्स ने दिनदहाड़े दौड़ाकर उनकी हत्या कर दी। पूरा शहर बंद हो गया।

अतीक ने दहशत कायम रखने के लिए खौफनाक कदम उठाया। उसने पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाए जाने के दौरान पुलिस गाड़ी का पीछा किया। 56 किमी दूर अस्पताल परिसर में जब राजू पाल के शव को उतारा गया तो अतीक ने एक बार फिर शव पर गोलियां चलवाईं। हत्याकांड में बाद में अतीक और उसका भाई अशरफ भी जेल गया। यही हत्याकांड आगे चलकर अतीक के किले में आखिरी ताबूत बनने का काम भी किया।

अतीक का आतंक इस हत्याकांड के बाद इस कदर बढ़ गया कि यूपी के कारोबारी और नेता उसकी अपनी अदालत में बिन बुलाए पहुंचने लगे। नेता हाजिरी लगाकर आशीर्वाद मांगते तो कारोबारी चढ़ावा चढ़ाते। तमाम नेताओं को अतीक टिकट दिलाने के लिए चंदा भी देने लगा। छुटभैया गुंडों की अतीक आंखें निकलवा लेता था।

अतीक के इंतकाम की स्क्रिप्ट कैसे 19 साल पहले राजू पाल की हत्या से लिखी गई थी..

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