बांग्लादेश चुनाव के नतीजे आखिर क्यों अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष का केंद्र बने हुए हैं,
बांग्लादेश चुनाव के नतीजे आखिर क्यों अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष का केंद्र बने हुए हैं,
7 जनवरी, 2024 को बांग्लादेश के राष्ट्रीय चुनाव, हिंसा और विरोध के बीच कराए गए। इन घटनाओं ने इस चुनाव पर विवाद खड़े कर दिए हैं।
शासन कर रही अवामी लीग पार्टी ने 300 सीटों पर चुनाव लड़ कर 225 सीटों पर जबरदस्त जीत दर्ज की।
2009 में, सत्ता में आने के बाद अवामी लीग ने केयरटेकर सरकार की निगरानी में चुनाव कराने के संवैधानिक व्यवस्था को समाप्त कर दिया था।
मुख्य विपक्षी दल, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की सर्वोच्च नेता और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया ने इन चुनावों का बहिष्कार किया था। वे अभी भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण जेल में हैं और केयरटेकर सरकार की निगरानी में चुनाव कराने की मांग करती रही हैं।
क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का केंद्र
कभी अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अनदेखी का शिकार रहा बांग्लादेश, आज दक्षिण एशिया की एक उभरती आर्थिक महाशक्ति है।
2022 में 7.1% की सालाना GDP विकास दर के साथ इस अर्थव्यवस्था का मूल्य 400 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया और यहां की जनसंख्या 16.5 करोड़ से अधिक है। इस देश की रणनीतिक स्थिति इसे भू-राजनीति के केंद्र में रखती है। क्षेत्रीय और वैश्विक शक्तियां जैसे कि चीन, भारत, रूस और यूनाइटेड स्टेट्स यहां अपने प्रभाव को बढ़ाना चाहते हैं।
अपने सबसे नजदीकी पड़ोसी और साझा ऐतिहासिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों के कारण बांग्लादेश के साथ भारत के गहरे रणनीतिक फायदे जुड़े हुए हैं।
इनके बीच सालाना व्यापार 15 बिलियन डॉलर के करीब पहुंच चुका है। निवेश, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, ऊर्जा और नदियों के पानी के बंटवारे पर समझौते इस संबंध के महत्व को समझने में हमारी मदद करते हैं।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के जरिए वहीं के बढ़ते आर्थिक राजनीतिक दबाव को संतुलित करने में बांग्लादेश भारत का एक महत्वपूर्ण साझेदार है।
वहीं दूसरी तरफ, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बढ़ रही अस्थिरता के बुरे असर को कम करने के लिए भी भारत को बांग्लादेश की जरूरत है।
इसलिए इस बात से कोई आश्चर्य नहीं है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शेख हसीना को जीत बधाई दी और भारत और बांग्लादेश के बीच सहयोग को बढ़ाने का भरोसा जताया।
अमेरिका बांग्लादेश में लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट, मानव अधिकारों के दमन और प्रेस की घटती आजादी को लेकर चिंतित है।
बांग्लादेश के मामले में अमेरिका दुविधा में फंसा दिख रहा है। एक तरफ वह बांग्लादेशी सत्ता के साथ मजबूत रणनीतिक रिश्ते बनाए रखना चाहता है वहीं दूसरी तरफ, लोकतांत्रिक मूल्यों को भी बढ़ावा देना चाहता है।
यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट्स ने चुनाव से पहले कहा था कि, वे उन बांग्लादेशी व्यक्तियों पर वीजा प्रतिबंध लगाने की सोच रहे हैं जो बांग्लादेश के लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को कमजोर करने की कोशिश करेंगे।
चीन और रूस की प्रतिक्रिया
इसके उलट बांग्लादेश में चीन के राजदूत ने बांग्लादेश को चीन का नंबर एक व्यापार सहयोगी बताया है।
दोनों देशों के बीच सालाना व्यापार 25 मिलियन डॉलर से अधिक हो चुका है। उन्होंने कहा कि चुनाव बांग्लादेश का आंतरिक मामला है और बांग्लादेश को बेहतर पता है कि वहां चुनाव किस तरह कराने हैं।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत चीन ने बांग्लादेश में 10 बिलियन डॉलर से अधिक मूल्य के पोर्ट, पुल, राजमार्ग और अन्य बुनियादी ढांचे में निवेश किया है।
चुनाव के बाद, अमेरिका ने इस चुनाव पर नजर रख रहे अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर यह दावा किया कि चुनाव ना तो स्वतंत्र थे और न ही निष्पक्ष थे।
इन चुनावों में बड़े पैमाने पर भागीदारी की कमी रही है।
वहीं दूसरी तरफ, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने अवामी लीग को जीत की बधाई देते हुए कहा कि चीन बांग्लादेश को राष्ट्रीय चुनाव, तय समय सीमा में सफलता के साथ कराने की और अवामी लीग को जीत की बधाई देता है।
मास्को ने रूपपुर में 12 बिलियन डॉलर की एक 2400 मेगावाट क्षमता के न्यूक्लियर पावर प्लांट में निवेश करके बांग्लादेश के साथ नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की है।
यह प्रोजेक्ट बांग्लादेश के सबसे बड़े बुनियादी ढांचे के प्रोजेक्ट में से एक है। बड़ा निवेश करने के कारण रूस की बांग्लादेश के चुनाव नतीजों में गहरी दिलचस्पी है।
सहयोग की एक अनोखी घटना में, 2022 में, जब अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण एक रूसी जहाज को न्यूक्लियर सामग्री लाने की मनाही थी, तब भारत ने दखल देते हुए कार्गो को रोड के जरिए निर्माण स्थल तक पहुंचाया।
रूस ने भी शेख हसीना को चुनावी जीत के लिए बधाई दी। बांग्लादेश के लिए रूस के राजदूत अलेक्जेंडर मेंटिसकी ने उनके आधिकारिक घर पर उनसे मुलाकात की।
इसी तरह चुनाव से पहले रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने 2023 में व्यंग्य करते हुए कहा कि, ‘उन्होंने कई बार बांग्लादेश के आंतरिक राजनीतिक प्रक्रियाओं में अमेरिका और उसके सहयोगियों के प्रयासों को उजागर किया है ‘।
आगे बांग्लादेश की चुनौतियां
बांग्लादेश के बढ़ते आर्थिक और रणनीतिक ताकत की वजह से 2024 के चुनाव नतीजे भू-राजनीतिक युद्ध का मैदान बन गए हैं। भू-राजनीति के हिसाब से देखा जाए तो, अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए बांग्लादेश के साथ सामान्य व्यापार करना थोड़ा मुश्किल हो गया है। वे किस हद तक कार्यवाही कर सकते हैं, यह देखना अभी बाकी है।
रेडीमेड कपड़ा उद्योग बांग्लादेश के विदेशी मुद्रा कमाने का प्रमुख साधन है और अमेरिका तथा यूरोपीय यूनियन द्वारा लगाया कोई भी प्रतिबंध बांग्लादेश के रेडीमेड कपड़ा उद्योग के लिए बहुत बड़ी चुनौती होगा।
बांग्लादेश में बनने वाला रेडीमेड कपड़ा मुख्य रूप से इन्हीं देशों में निर्यात किया जाता है।
2007 में, जब मौजूदा विपक्षी BNP ने चुनाव में गड़बड़ी करने की कोशिश की थी, तब यूनाइटेड नेशंस ने सख्त चेतावनी देते हुए बांग्लादेश को शांति स्थापित करने की प्रक्रिया से बाहर करने की संभावना व्यक्त की थी।
इस वजह से मिलिट्री के समर्थन से बनी केयरटेकर सरकार ने 2008 में चुनाव कराने का जिम्मा लिया, जिसमें तब की विपक्षी पार्टी, अवामी लीग की जीत हुई। इस पर यूनाइटेड नेशंस आलोचना के अलावा कोई कार्यवाही करेगा, यह देखने की जरूरत है।
अंत में, इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि पिछले कुछ महीनों में बढ़ती महंगाई के कारण कई विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं।
ऊर्जा को आयात करने की कीमतें बढ़ी हैं, डॉलर का भंडार कम हुआ है और स्थानीय मुद्रा कमजोर हुई है।
इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड ने माना है कि कोविड-19 महामारी के बाद सप्लाई चेन में दिक्कतों और रूस–यूक्रेन युद्ध ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था के लिए उबरना मुश्किल कर दिया है।
हसीना सरकार के लिए आने वाले महीने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से भरे रहेंगे। उन्हें कमजोर होती अर्थव्यवस्था के साथ राष्ट्रीय हितों और भू-राजनीति के बीच संतुलन स्थापित करना होगा।
लेखक: सैयद मुनीर खसरू अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक द इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी, एडवोकेसी एंड गवर्नेंस (IPAG) के अध्यक्ष हैं।