बिहार में बिना नीतीश क्यों नहीं चलती सरकार ?

बिहार में बिना नीतीश क्यों नहीं चलती सरकार
कम सीटें फिर भी सीएम क्यों; 4 वजहों से उनके पास सत्ता की चाबी

 नीतीश के बिना बिहार में सरकार चलाना मुश्किल क्यों हो गया है और कैसे 2 दशकों से उनके हाथ में सत्ता की चाबी है…

JDU का 6% वोट घटा, लेकिन फिर भी बिहार में किंग हैं
2010 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की JDU पार्टी को सबसे ज्यादा 22.58% वोट मिला था। जबकि इससे पहले 2005 के चुनाव में नीतीश को 20.46% वोट मिले थे।

इसके बाद 2015 में नीतीश कुमार 17 साल पुरानी दोस्ती तोड़कर NDA से अलग हो गए। इस बार चुनाव में उन्हें 71 सीटों पर जीत मिली। वहीं, 2020 में विधानसभा चुनाव हुआ तो जदयू को सिर्फ 43 सीटों पर जीत मिलीं। अब देखिए कैसे साल-दर-साल नीतीश का वोट प्रतिशत घटता गया है…

जेडीयू को 2010 में 22.5% वोट मिला था जो 2015 में घटकर 16.8% रह गया। वहीं, बीजेपी का वोट शेयर 2010 में करीब 16.5% था जो 2015 में बढ़कर करीब 24.5% हो गया। भले ही जदयू का वोट शेयर 6% घटा हो, लेकिन अब भी बिहार में उसके बिना सरकार बनाना मुश्किल है।

नीतीश के कोर वोटर कौन हैं और उनकी बिहार में आबादी कितनी है?
सीनियर जर्नलिस्ट अमिताभ अग्निहोत्री के मुताबिक बिहार में नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक 16% है। उनके वोट शेयर पर उनके पाला बदलने से कोई असर नहीं होता है। वह बिहार में कोइरी, कुर्मी और महादलित समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। इस समुदाय के लोगों के लिए नीतीश कुमार प्राइड इश्यू हैं। यही वजह है कि नीतीश कुमार को साथ रखना बीजेपी और आरजेडी दोनों की मजबूरी है।

वो 4 वजहें जिसने नीतीश को बिहार की राजनीति में इतना मजबूत बनाया है…

1. जदयू में इकलौते नेता, दूसरे बड़े नेताओं को उभरने से रोका
2003 में नीतीश के साथ मिलकर जॉर्ज फर्नांडिस ने 2003 में नई पार्टी जनता दल यूनाइटेड बनाई। इस वक्त जॉर्ज इस पार्टी के दूसरे सबसे बड़े नेता थे। 2009 आते-आते नीतीश जितना मजबूत हो गए थे, जॉर्ज उतना ही कमजोर हो गए। दोनों नेताओं के बीच खटास पैदा हो गई थी।

खराब सेहत का हवाला देते हुए नीतीश ने जॉर्ज को 2009 लोकसभा चुनाव में टिकट ही नहीं दिया। जॉर्ज ने मुजफ्फरपुर से निर्दलीय चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। इस तरह नीतीश ने अपने राजनीतिक गुरु को हमेशा के लिए साइडलाइन कर दिया। यह पहला और आखिरी मौका नहीं था। जो भी नीतीश के फैसले के बीच में आया, सबको उन्होंने अपने रास्ते से हटा दिया।

पार्टी के शुरुआती दिनों के नेता दिग्विजय सिंह, शरद यादव को भी नीतीश कुमार ने जॉर्ज की तरह ही साइड लाइन कर दिया। अब जब ललन सिंह जदयू को महागठबंधन के साथ रखना चाहते थे तो नीतीश ने सबसे पहले उन्हें अध्यक्ष पद से हटाया।

जब पूरी तरह से पार्टी पर नीतीश की पकड़ मजबूत हुई, तब जाकर उन्होंने बीजेपी के साथ सरकार बनाने का फैसला किया। जदयू में सबसे मजबूत नेता की छवि ने ही उन्हें बिहार की राजनीति में इतना ताकतवर बनाया है।

2. बिहार में मजबूती से सरकार चलाकर अपनी साख बनाई
एक मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में विवादों से दूर रहे हैं। इससे प्रदेश में उनकी साख मजबूत हुई है। बीजेपी नेता अरुण जेटली ने 2005 के विधानसभा चुनाव से पहले नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया। उनका यह फैसला सटीक बैठा। लालू यादव के शासन के बाद 2005 और 2010 के बीच नीतीश कुमार ने बिहार में बिजली, सड़क और अपराध रोकने पर अच्छा काम किया। इससे उनकी छवि मजबूत हुई। लोग उन्हें ‘सुशासन बाबू’ कहने लगे। इस तरह नीतीश कुमार प्रदेश में पसंदीदा सीएम बनकर उभरे।

3. राजद ‘M-Y’ समीकरण में सिमटी तो JDU ने पूरे EBC को साधा
बिहार की राजनीति में लालू यादव की पार्टी राजद को M-Y यानी मुस्लिम-यादव समीकरण वाली पार्टी के रूप में जाना जाता है। 1990 के बाद से ही राजद के बड़े नेता अपने मूल वोट बैंक को साधने में ही लगे रहे। इसकी वजह से दूसरी जातियों का वोट राजद को न के बराबर मिलता रहा।

इसी समय 30% से ज्यादा EBC समुदाय और एससी को साधने की कोशिश नीतीश कुमार और उनकी पार्टी ने की। उन्हें 2010 के विधानसभा चुनाव में काफी सफलता भी मिली। इस बार विधानसभा चुनाव में इन्हें 22% से ज्यादा वोट मिला। हालांकि 2020 विधानसभा चुनाव में तेजस्वी ने 10 लाख रोजगार का वादा किया। उन्होंने कहा कि राजद सिर्फ M-Y पार्टी नहीं बल्कि A टू Z पार्टी है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। नीतीश अपने वोट बैंक को साधकर मजबूत नेता बन चुके थे।

4. बीजेपी के साथ गठबंधन में रहकर मजबूत हुए नीतीश
बीजेपी के साथ गठबंधन में रहकर नीतीश कुमार पहले से ज्यादा मजबूत नेता बनकर उभरे। इस गठबंधन के पक्ष में एक खास बात यह है कि बीजेपी का वोटर बेस सवर्ण जाति, गैर-यादव अन्य पिछड़ी जातियों (OBC) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) है।

वहीं, नीतीश की पार्टी का EBC, गैर-यादव OBC के साथ-साथ लव-कुश (कुर्मी-कोइरी), महादलित (SC) मुख्य वोट बैंक है। यही वजह है कि गठबंधन में होने पर इन जातियों के वोट दोनों दलों को थोक में मिलते हैं।

नीतीश ने बिहार में खुद को एक विकासवादी मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया है। वहीं, बीजेपी में नरेंद्र मोदी की इमेज भी विकास पुरुष की है। लंबे समय तक साथ रहने के कारण JDU और BJP के विधायक आपस में सामंजस्य के साथ काम करते नजर आते रहे हैं। बीजेपी के साथ रहने से नीतीश की पार्टी को फायदा ही मिला है।

बीजेपी और राजद को नीतीश से ज्यादा वोट, लेकिन फिर भी JDU उनकी मजबूरी क्यों?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट रशीद किदवई के मुताबिक बिहार में जाति की राजनीति सबसे मजबूत है। बीजेपी और राजद नीतीश कुमार के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल नहीं हो पाई हैं। यही वजह है कि अपने करीब 16% EBC वोट बैंक के बल पर नीतीश कुमार सत्ता के केंद्र में बने हुए हैं। सोशल इंजीनियरिंग और धर्म के नाम पर बीजेपी भले ही यूपी में जाति समीकरण को तोड़ने में कामयाब रही हो, लेकिन बिहार में वो कामयाब नहीं हो पाई है।

इसके अलावा पार्टी पर पूरी तरह से कंट्रोल होने की वजह से नीतीश पसंदीदा लोगों को टिकट देते हैं। यही वजह है कि इनके विधायकों के टूट की संभावना बेहद कम होती है। वो जितनी बार चाहे पाला बदल लें, उनके विधायक उनके साथ रहेंगे।

राजद, बीजेपी या बिहार के किसी दूसरे दल में नीतीश के कद का नेता नहीं होना भी उनके मुख्यमंत्री होने की एक वजह है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *