अगली बारी अरविंद केजरीवाल की ?

अगली बारी अरविंद केजरीवाल की

भारतीय राजनीति को कांग्रेस विहीन करने का सपना देखने वाली भाजपा ने अब शायद देश की राजनीति को विपक्ष विहीन करने का मन बना लिया है । भाजपा ने आगामी लोकसभा चुनावों में उतरने से पहले विपक्ष में खड़े तमाम क्षेत्रीय दलों को एक-एककर समाप्त करने का जो अभियान शुरू किया है उसके तहत अब अगली बारी आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की हो सकती है। भाजपा बिहार और झारखण्ड के बाद दिल्ली पर भी जीत हासिल करना चाहती है क्योंकि अभी दिल्ली में ‘ दिया तले अन्धेरा ‘ है।

केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की प्रशंसा करना होगी कि ‘अदावत की सियासत ‘ में उसने नए कीर्तिमान गढ़े हैं। इस मामले में कांग्रेस कहीं नहीं ठहरती। ‘ अदावत की सियासत ‘ को समझने के लिए भाजपा सरकार द्वारा एक दशक में प्रवर्तन निदेशालय समेत तमाम एजेंसियों के इस्तेमाल के मामलों को देखना होगा। प्रवर्तन निदेशालय भाजपा का गांडीव भी है और पांचजन्य भी। ये शोर भी करता है और शिकार भी करता है। अंग्रेजी वाले इसे ‘ ईडी ‘ कहते हैं। ईडी का अर्थ है ‘ एन्टायर डिस्ट्राय ‘। उर्दू में इसे आप ‘नेस्तनाबूद ‘करना कह सकते हैं। हिंदी वालों को इसे ‘ मिटटी में मिलना ‘ कहना आसान होगा।
देश में क्षेत्रीय दल आजादी के बाद से हैं किन्तु हिंदी पट्टी में अधिकांश क्षेत्रीय दलों का जन्म 1984 के बाद हुआ। इस हिसाब से अधिकांश क्षेत्रीय दल ‘ आपातकाल’ के बाद की पैदाइश हैं । भाजपा इन क्षेत्रीय दलों से कोई चार साल बड़ी है ,लेकिन भाजपा ने इन क्षेत्रीय दलों से कभी अग्रज भाव नहीं पाला । भाजपा ने जिस क्षेत्रीय दल के साथ सत्ता सिंहासन हासिल किया उसे बाद में या तो जमीदोज कर दिया या अपनी अदावत के दंश से ठिकाने लगा दिया। जिस क्षेत्रीय दल ने भाजपा को ऑंखें दिखाईं ,भाजपा ने उस क्षेत्रीय दल को कहीं का नहीं छोड़ा। उदाहरण एक खोजिये तो दस मिल जायेंगे।झारखंड मुक्ति मोर्चा से भाजपा की अदावत बहुत पुरानी है। झामुमो के एक वोट की वजह से एक जमाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार औंधे मुंह गिर गयी थी। अटल जी तो झामुमो से बदला नहीं ले पाए लेकिन आज की भाजपा ने झामुमो से हिसाब बराबर कर लिया।
झामुमो के नेता और कल रात तक झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के साथ ही राज्य में सोरेन की सत्ता का अंत हो गया । अब पता नहीं हेमंत को कितनी होली-दीवाली जेल के सींखचों के पीछे मनाना पड़ें। दरअसल ईडी जिस नेता पर हाथ डालती है उसे हाथ से निकलने नहीं देती। लम्बे हाथों वाला क़ानून हमेशा ईडी कोई यानि सरकार की मदद करता है ,अदालतों का इसमें क्या दोष ?। भ्र्ष्टाचार के मामलों में घेरे गए नेताओं को जमानत नहीं मिलती भले ही हत्या जैसे जघन्य मामलों के सजा याफ्ता आरोपी महीनों पेरोल का लाभ ले सकते हैं। पीएमएएलए क़ानून के तहत ईडी अब तक करीब 100 लोगों को निशाने पर ले चुकी है ,हेमंत सोरेन ईडी का ताजा शिकार हैं लेकिन इससे पहले गिरफ्तार किये गए 5 नेता अब तक जमानतें हासिल नहीं कर पाए है। ईडी के पास अभी भी निशाना साधने के लिए 5 और नाम हैं। अरविंद केजरीवाल का नाम अब सबसे ऊपर है।

ईडी के ओव्हर डोज के शिकार आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसौदिया,राज्य सभा सदस्य संजय सिंह, और सत्येंद्र जैन ,तृणमूल कांग्रेस के ज्योति प्रिय मलिक ,डीएमके सरकार के मंत्री वी सेंथिल बालाजी का नाम प्रमुख है । ईडी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को चार बार सम्मन भेज चुकी है ,उन्हें शायद हेमंत सोरेन की तरह पांच सम्मन और भेजे जायेंगे और दसवें सम्मन के साथ ही धर लिया जाएगा। अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से भाजपा को दिल्ली के साथ पंजाब बोनस में मिल सकता है क्योंकि पंजाब में भी आम आदमी पार्टी की सरकार है। आम आदमी पार्टी का सबसे बड़ा अपराध, शराब घोटाला नहीं बल्कि आईएनडीआईए यानि ‘ इंडिया’ गठबंधन के साथ खड़ा होना है। उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने इंडिया गठंबंधन से दूरी बना ली तो बहन मायावती को फ़िलहाल बख्श दिया गया।

रामभक्ति में डूबी देश की आधी आबादी को देश में इन दिनों चल रही अदावत की राजनीति का रत्ती भर अहसास नहीं है। कोई ये जानना नहीं चाहता कि देश के तमाम भ्र्ष्ट नेताओं के मुकाबले देस्ग को लूटकर भागे तमाम मोदियों और दूसरे उद्योगपतियों के खिलाफ हमारी सरकार गिरफ्तारी की कार्रवाई नहीं करती ? कोई नहीं जानना चाहता कि हमारी सरकार बैंकों को हजारों करोड़ रूपपये का चूना लगाने वालों के साथ कैसे गलबहियां कर रही है और उन्हें हजम किये गए पैसे को और हजम करने के लिए राहत के ‘ हाजमोला ‘ की सुविधा मुहैया कर रही है ।हाजमोला पाने वालों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। जीटीवी वाले तो बहुत छोटे वाले आदमी हैं। योग बेचने वाले बाबा भी इस फेहरिस्त में शामिल हैं।

बहरहाल ये मौसम ‘ तेल और तेल की धार ‘ देखने का है। अभी देश को ये देखना है कि क्या सचमुच भारत से विपक्ष को नेस्तनाबूद करने के महाअभियान में भाजप्पा को कामयाबी मिलेगी या ‘रामज्वर’ से पीड़ित जनता होश में आकर भाजपा के तिलस्मको तोड़कर आकर लोकतंत्र की रक्षा करेगी ? देश की जनता ने जिन अच्छे दिनों के आकर्षण में भाजपा को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया था ,वे अच्छे दिन तो दस साल बाद भी आये नहीं ,हाँ अब बुरे दिनों की दस्तक जरूर सुनी जा सकती है लेकिन दूसरी ध्वनियाँ इतनीं तेज हैं कि उनमें बाकी की ध्वनियाँ सुनाई ही नहीं दे रहीं । सियावर रामचंद्र की जय !

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *