क्या फंड्स बंटवारे में भेदभाव करता है केंद्र ?

क्या फंड्स बंटवारे में भेदभाव करता है केंद्र …
कर्नाटक को सिर्फ 3%, जबकि UP को 18% हिस्सा क्यों मिलता है

‘टैक्स कलेक्शन के मामले में महाराष्ट्र नंबर 1 तो कर्नाटक दूसरे नंबर पर है। इस साल कर्नाटक ने टैक्स कलेक्शन में 4.30 लाख करोड़ का योगदान दिया…मैं ये बताना चाहता हूं कि अगर हम 100 रुपए टैक्स भेज रहे हैं तो केंद्र सरकार इसमें से हमें 12-13 रुपए ही वापस कर रही है।’

ये बयान कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का है। केंद्र सरकार पर फंड्स बंटवारे में भेदभाव का आरोप लगाते हुए कर्नाटक कांग्रेस ने 7 फरवरी को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना भी केंद्र पर ऐसे आरोप लगा चुके हैं।

केंद्र सरकार राज्यों को फंड्स का बंटवारा कैसे करती है, किसी को कम तो किसी को ज्यादा पैसा क्यों दिया जाता है, अलग-अलग राज्यों की क्या स्थिति है…

भारत के सभी राज्यों की हालत एक जैसी नहीं है। एक तरफ बिहार जैसा पिछड़ा राज्य है, तो दूसरी तरफ महाराष्ट्र जैसा अमीर राज्य। सरकार सभी राज्यों से सेंट्रल टैक्स की वसूली करती है। जाहिर है, अमीर राज्यों से ज्यादा पैसा मिलता है और गरीब राज्यों से कम। सारा पैसा इकट्ठा होने के बाद केंद्र इसका राज्यों में बंटवारा करती है। जो अमीर राज्य हैं उन्हें कम पैसा दिया जाता है, लेकिन कमजोर राज्यों को मदद करके ऊपर उठाया जाता है।

केंद्र अपनी मर्जी से किसी राज्य को कम, ज्यादा पैसा नहीं दे सकती। इसके लिए संविधान के आर्टिकल 280 में प्रावधान किया गया है। आर्टिकल के मुताबिक हर 5 साल में राष्ट्रपति एक वित्त आयोग का गठन करेंगे। ये वित्त आयोग स्टडी करके एक फॉर्मूला तैयार करेगा, जिसके आधार पर राज्यों को फंड्स का बंटवारा होगा।

इस वक्त एनके सिंह की अध्यक्षता वाले 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू हैं। जिसका गठन नवंबर 2017 में हुआ था। इस आयोग की सिफारिशें 2021-22 से 2025-26 तक लागू रहेंगी।

किस राज्य को केंद्र से कितना पैसा मिलेगा, 15वें वित्त आयोग ने इसका एक फॉर्मूला बनाया है।

15वें वित्त आयोग के फॉर्मूले में राज्य की जरूरतों को मुख्य आधार बनाया गया है। मसलन- जनसंख्या, क्षेत्रफल और जंगल के लिए 40% वेटेज दिया गया है। औसत आय के मुकाबले राज्य की प्रति व्यक्ति आय कितना ऊपर या नीचे है, उसे 45% वेटेज दिया गया है। वहीं जनसंख्या नियंत्रण और टैक्स कलेक्शन की कोशिशों को 15% वेटेज दिया गया है।

दक्षिणी राज्य अक्सर इस फॉर्मूले पर सवाल उठाते हैं। उनका तर्क है कि ज्यादा सेंट्रल टैक्स भेजने के बावजूद उनके हिस्से बहुत कम पैसा आता है, जबकि कुछ राज्य कम टैक्स देकर भी कई गुना ज्यादा फंड पा जाते हैं।

क्या फंड्स बंटवारे में राज्यों के साथ भेदभाव करती है केंद्र सरकार? इससे जुड़े सवालों पर हमने JNU के रिटायर्ड प्रोफेसर और अर्थशास्त्री अरुण कुमार से बात की…

केंद्र सरकार सेंट्रल टैक्स के पैसों का असमान वितरण क्यों करती है?

केंद्र सरकार वित्त आयोग की सिफारिशों पर राज्यों को पैसों का आवंटन करती है। वित्त आयोग ऐसा फॉर्मूला बनाता है जिसमें जो अमीर प्रांत हैं उन्हें कम पैसा मिले और जो कमजोर राज्य हैं, उन्हें मदद करके ऊपर उठाया जाए।

केंद्र से पैसे के आवंटन पर दक्षिणी राज्य अक्सर नाराज क्यों रहते हैं?

उत्तर भारत के मुकाबले दक्षिण के राज्य ज्यादा उन्नत हैं। उनकी जनसंख्या कम है और प्रति व्यक्ति आय ज्यादा है। 15वें वित्त आयोग के मौजूदा फॉर्मूले के ज्यादातर क्राइटेरिया ऐसे हैं, जिनसे उत्तर भारत के राज्यों को ज्यादा फंड मिलता है। इसलिए दक्षिण भारत के राज्य शिकायत करते हैं। कर्नाटक के CM और नेताओं ने अपने टैक्स के अनुपात में ज्यादा पैसे की मांग करते हुए बुधवार को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया।

कुल सेंट्रल टैक्स कलेक्शन से राज्यों को 41% हिस्सा दिया जाता है, बाकी 59% केंद्र अपने पास रखती है। क्या इस रेश्यो को 50-50 किया जाना चाहिए?

15वें वित्त आयोग ने कुल सेंट्रल टैक्स में से राज्यों को 41% हिस्सा देने की बात कही, जबकि राज्यों की मांग है कि केंद्र और राज्य की हिस्सेदारी 50%-50% होनी चाहिए। राज्यों का कहना है कि केंद्र सरकार आभासी चीज है। यानी उसकी अपनी अलग जमीन नहीं है। वो अपने हिस्से का जो भी पैसा खर्च करेगी, राज्यों पर ही करेगी।

केंद्र सरकार अपने हिस्से के पैसे में राजनीतिक भेदभाव कर सकती है। जहां सत्ता में है उन्हें ज्यादा दे, जहां सत्ता में नहीं है उन्हें कम दे। जो विपक्षी पार्टी हैं वो भी चाहती हैं कि हम अपने स्टेट्स को डेवलप करें। इसलिए राज्य चाहते हैं कि केंद्र की हिस्सेदारी कम हो।

हमारे देश में राज्यों की विविधता बहुत ज्यादा है। इसलिए अपनी आबादी पर राज्य अपने हिसाब से खर्च करें तो ज्यादा उपयोगी होगा। राज्यों को ज्यादा स्वायत्तता देने के लिए भी उनकी हिस्सेदारी बढ़नी चाहिए।

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