तीन देशों से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को मिल सकती हैं ये सरकारी सुविधाएं !

CAA हुआ लागू, तीन देशों से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को मिल सकती हैं ये सरकारी सुविधाएं
आज यानी 11 मार्च 2024 को कानून पारित होने के लगभग 5 साल बाद उसे नोटिफाई कर दिया गया है. इस कानून के लागू होने से पड़ोसी देशों यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों यानी हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसियों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है. आइए समझते हैं कि इससे उन्हें क्या लाभ होगा?

Explainer: CAA हुआ लागू, तीन देशों से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को मिल सकती हैं ये सरकारी सुविधाएं

देश में नागर‍िकता संशोधन कानून लागू कर द‍िया गया है.

तारीख थी 9 दिसंबर 2019. उसी साल मोदी की अगुआई वाली बीजेपी सरकार दूसरी बार चुनकर संसद पहुंची थी. तब मोदी सरकार ने दूसरे कार्यकाल के एक साल के भीतर ही नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया था, जो पारित भी हो गया. नियमानुसार उसे फिर राज्यसभा में पेश किया गया और 12 दिसंबर 2019 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद उसे कानून का दर्जा दे दिया गया. ये तो हो गई इतिहास के पन्नों में दर्ज CAA के पारित होने की कहानी. असली मसला ये है कि इस कानून के लागू होने के बाद उन तीन देशों से आए 6 धर्मों के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को कौन-कौन सी सुविधाएं मिलेंगी? आज जानेंगे. पहले कानून के बारे में समझ लीजिए.

आज यानी 11 मार्च 2024 को कानून पारित होने के लगभग 5 साल बाद उसे नोटिफाई कर दिया गया है. इस कानून के लागू होने से पड़ोसी देशों यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों यानी हिंदू, सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसियों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है. ये वे अल्पसंख्यक हैं जो पिछले कई सालों से शरणार्थी के तौर पर भारत में बसे हुए हैं. इसमें मुस्लिम धर्म के लोगों को शामिल नहीं किया गया है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि इस कानून में किसी भी भारतीय चाहे वो किसी भी धर्म या मजहब का हो उसकी नागरिकता छीनने का कोई भी प्रावधान नहीं है.

कैसे होगा फायदा?

केंद्र सरकार के तरफ से दी जाने वाली सरकारी सुविधाओं की बात करें तो उसमें मुफ्त राशन की सुविधा से लेकर आयुष्मान भारत योजना शामिल है, जिसके तहत सरकार 5 लाख रुपए तक के इलाज फ्री की सुविधा प्रदान करती है. सरकार गरीब महिलाओं को लकड़ी जलाकर खाना बनाने की समस्या से निजात दिलाने के लिए उज्ज्वला योजना भी चलाती है, जिसका लाभ सिर्फ भारतीय नागरिक ले सकते हैं. एक बार जब वो अलपसंख्यक इस कानून की मदद से नागरिकता ले लेंगे तो उन्हें भी इसका लाभ मिल सकेगा.

केंद्र सरकार देश के नागरिकों को प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) के तहत देश के नागरिकों को 2 लाख रुपए का कवर भी प्रदान करती है.

खत्म हो जाएगी बुढ़ापे की टेंशन

केंद्र सरकार प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना नाम से एक पेंशन स्कीम चलाती है, जिसके तहत असंगठित श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा और वृद्धावस्था सुरक्षा मिलती है. इस योजना के तहत लाभार्थी को 60 साल की उम्र के बाद 3,000 रुपए की पेंशन दी जाती है. पेंशन पाने के लिए लाभार्थी को 18 से 40 साल के बीच इस योजना में निवेश करना पड़ता है. यानी अगर नागरिकता मिल जाती है तो उन लोगों के बुढ़ापे की टेंशन भी खत्म हो जाएगी.

बन सकेंगे भारतीय किसान

सीएए के तहत जिन गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलेगी. वे सभी भारत में जमीन खरीद सकेंगे, जिसके बाद उन्हें भारतीय किसान के रूप में अपनी पहचान बनाने में मदद मिलेगी. उसके बाद सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ मिल सकेगा.

भारत सरकार पीएम किसान योजना के तहत गरीब किसानों को साल में 6 हजार रुपए देती है. साथ ही उनके फसल की सुरक्षा के लिए फसल बीमा योजना भी चलाती है, जिसके तहत वह फसल के खराब होने पर सरकार से मुआवजा भी ले सकते हैं. इतना ही नहीं ये शरणार्थी, जिस राज्य में रहते होंगे. उस राज्य की सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का भी फायदा ले सकेंगे.

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देश में लागू हुआ CAA, आसान भाषा में समझें क्या-क्या बदलेगा?
मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसी के साथ देश में अब CAA लागू हो गया है. साल 2020 में देशभर में CAA के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे. इन प्रदर्शनों में कई ऐसे लोग भी थे जिन्हें कानून की कम या गलत जानकारी थी. इसलिए आइए समझते हैं कि CAA लागू होने से क्या बदलेगा.

देश में लागू हुआ CAA, आसान भाषा में समझें क्या-क्या बदलेगा?

साल 2019 में CAA दोनों सदन से पास हो गया था.Image Credit source: PTI

आगामी लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का नोटिफिकेशन जारी कर दिया है. इसी के साथ देश में अब CAA लागू हो गया है. CAA के अमल में आ जाने के बाद अब बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता साफ हो गया है. साल 2020 में देशभर में CAA के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे. इन प्रदर्शनों में कई ऐसे लोग भी थे जिन्हें कानून की कम या गलत जानकारी थी. इसलिए आइए समझते हैं कि CAA लागू होने से क्या बदलेगा.

बिल से लेकर कानून बनने का सफर

भाजपा पार्टी के एजेंडा में CAA का काफी पहले से जिक्र होते आया है. मोदी सरकार के पहले कार्यालय में साल 2016 में इसे लोकसभा में पेश किया गया. यहां से पास होने के बाद इसे राज्यसभा में भेजा गया, लेकिन वहां इसे बहुमत से पास नहीं कराया जा सका. अटकने के बाद इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया.

2019 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो दोबारा बहुमत जीतने के बाद मोदी सरकार बनी. सरकार बनते ही इसे दोबारा लोकसभा में पास किया गया. दो दिन बाद 9 दिसंबर,2019 को राज्यसभा में भी इस पर मुहर लग गई. दोनों सदनों में पास होने के बाद CAA को 10 जनवरी,2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल चुकी है. हालांकि, इसके लागू में होने में काफी देरी हो गई. इसकी प्रमुख वजह रही देशभर में होने वाले विरोध प्रदर्शन.

भारतीय नागरिकों पर CAA का क्या असर होगा?

सरकार ने अपने बयान में कहा है कि CAA के जरिए मिलने वाली नागिरकत वन-टाइम बेसिस पर ही होगी. यानी कि 31 दिसम्बर,2014 के बाद गैर-कानूनी तरीके से पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता नहीं दी जाएगी. इस कानून के अमल में आने के बाद भारत के किसी भी नागरिक – चाहें वो किसी भी धर्म का हो – की नागरिकता को कोई प्रभाव नहीं होगा.

CAA की जरूरत क्यों पड़ी?

भारत के पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने बताया कि CAA की आवश्यकता इसलिए थी क्योंकि हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन और ईसाई अल्पसंख्यक जो दशकों से भारत में आए और देश में बस गए, वे पूर्व-संशोधित नागरिकता कानून के तहत भारतीय नागरिकता हासिल नहीं कर सकते थे. इसके चलते वो भारतीय नागरिकता के कई लाभों से वंचित थे. संशोधन के बाद उन्हें अनिश्चित जीवन नहीं जीना पडे़गा.

गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को ही नागरिकता क्यों मिल रही है?

भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के आने के कई कारण थे- उत्पीड़न, भेदभाव, शारीरिक असुरक्षा, जबरन धर्म परिवर्तन का खतरा, इत्यादि. आधिकारिक आंकड़े मुस्लिम बहुल पड़ोसी देशों से बड़े पैमाने पर अल्पसंख्यकों के पलायन की गवाही देते हैं. 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यक, ज्यादातर हिंदू और सिख, आबादी का लगभग 23% थे; आज वो लगभग 5% हैं. हिंदू लगभग 1.65% ही रह गए हैं. इसी तरह 1971 में जब बांग्लादेश बना, तब हिंदू आबादी का 19% थे. 2016 में वे केवल 8% ही थे. जबकि भारत में अल्पसंख्यकों की संख्या दोगुना हुई है. 1947 में भारत में मुसलमानों की संख्या 9.2 करोड़ थी. आज उनकी अनुमानित संख्या लगभग 20 करोड़ है.

अल्पसंख्यकों की गिरती जनसंख्या के अलावा सभी मुस्लिम बहुल पड़ोसी देशों के सर्वोच्च पदों पर मुसलमानों को तवज्जो मिलती है. जबकि भारतीय संविधान सभी अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करता है और मुसलमानों के साथ-साथ बाकी अल्पसंख्यकों को उनके धार्मिक और शैक्षणिक संस्थानों के प्रबंधन में विशेष अधिकार देता है.

‘आशा की नई किरण’

2019 में राज्यसभा में बिल पेश करते समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने CAA को ‘आशा की एक नई किरण’ बताया था. उन्होंने कहा, ‘नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के उन लोगों को आशा की एक नई किरण देगा जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धर्म के आधार पर उत्पीड़न का सामना करने के बाद भारत आ गए हैं.’ गृह मंत्री अमित शाह ने इस बात पर जोर दिया कि CAA भारत में किसी भी अल्पसंख्यक के खिलाफ नहीं है और हर एक भारतीय नागरिक के अधिकारों को समान रूप से संरक्षित किया जाएगा.

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