नागरिकता संशोधन बिल को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने दी मंजूरी, बना कानून
नई दिल्लीः नागरिकता संशोधन बिल संसद से पास होने के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस पर अपना हस्ताक्षर कर दिया है. गुरुवार देर रात राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह बिल अब कानून बन चुका है. इससे पहले बुधवार को राज्यसभा में और सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल को मतविभाजन के बाद पास कर दिया गया था.
बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका स्वागत किया था और सहयोग करने वाले सांसदों को धन्यवाद दिया था. पीएम मोदी ने इस बिल को भारत के इतिहास में मील का पत्थर बताया था.
राज्यसभा में बिल पास होने के बाद पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा था, ”भारत के लिए और हमारे देश की करुणा और भाईचारे की भावना के लिए ऐतिहासिक दिन है. खुश हूं कि नागरिकता संशोधन बिल 2019 पास हो गया. पक्ष में वोट देने वाले सभी सांसदों का आभार. बिल बहुत सारे लोगों को वर्षों से चली आ रही उनकी यातना से निजात दिलाएगा.”
इस बिल में तय प्रावधानों के मुताबिक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना के कारण भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का नियम है.
राज्यसभा में यह बिल जहां 125 के मुकाबले 105 से पास हुआ. लोकसभा में इस बिल के पक्ष में 311 सासंदों ने वोट दिया जबकि 80 सासंदों ने इसके खिलाफ वोटिंग की थी.
कानून के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं उन्हें पांच साल तक भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता दी जाएगी. अभी तक यह समयसीमा 11 साल की थी.
कानून के मुताबिक ऐसे शरणार्थियों को गैर-कानून प्रवासी के रूप में पाए जाने पर लगाए गए मुकदमों से भी माफी दी जाएगी. कानून के अनुसार, यह असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होगा.
ये क्षेत्र संविधान की छठी अनुसूची में शामिल हैं. इसके साथ ही यह कानून बंगाल पूर्वी सीमा विनियमन, 1873 के तहत अधिसूचित इनर लाइन परमिट (आईएलपी) वाले इलाकों में भी लागू नहीं होगा. आईएलपी अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम में लागू है.