नोटा से लेकर इलेक्टोरल बॉन्ड तक… कोर्ट के 5 ‘सुप्रीम’ फैसले .. भारत में चुनाव की दिशा….

नोटा से लेकर इलेक्टोरल बॉन्ड तक… कोर्ट के 5 ‘सुप्रीम’ फैसले, जिसने बदल दी भारत में चुनाव की दिशा
साल 2013 में एससी ने मतदाताओं के सामने नोटा का विकल्प रखते हुए कहा था कि किसी भी मतदाता को ये हक मिलना चाहिये कि वह राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव में खड़े किए गए उम्मीदवारों को खारिज कर सके. 

भारत में 19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण सम्पन्न हो चुका है. आने वाले एक महीने के भीतर अन्य 6 चरण का मतदान भी हो जाएगा और सभी सीटों के लिए मतों की गिनती 4 जून को होगी. इस चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एससी ने ईवीएम-वीवीपैट सत्यापन की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था. 

ऐसे में इस रिपोर्ट में देश के आजाद होने के बाद से सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों के बारे में जानते हैं जिसने भारत के लोकतंत्र को आकार देने में अहम भूमिका निभाई है. 

साल 1952:

आजाद भारत के पहले आम चुनाव यानी साल 1952 से एक महीने पहले, जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से जुड़ा एक बड़ा फैसला सुनाया था. इस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि भारत में चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद सभी चरणों के खत्म हो जाने तक किसी भी मध्यस्थ चरण में कोर्ट की तरफ से हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है.  

साल 2013: 

साल 2013 के सितंबर महीने में सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं के सामने नोटा का विकल्प रखा था. नोटा का मतलब होता है नन ऑफ द एबव. उस वक्त कोर्ट ने कहा था कि किसी भी वोटिंग करने वाले मतदाताओं को ये हक मिलना चाहिये कि वह राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव में खड़े किए गए उम्मीदवारों को खारिज कर सके. 

उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर जनता नोटा बटन दबाकर उम्मीदवारों को खारिज करती है तो इससे राजनीतिक दलों को भी लोगों की इच्छाओं का सम्मान करने पर मजबूर होना पड़ेगा, और पार्टी ऐसे लोगों को मैदान में उतारेगी जो ईमानदार होंगे.

इस बटन का मतदाता में काफी इस्तेमाल भी करते हैं. आंकड़ों के अनुसार साल 2023 के दिसंबर महीने में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कुल 47 सीटें ऐसी थीं जहां पर जीते और हारे हुए उम्मीदवार के अंतर से ज्यादा वोट नोटा को मिले थे.  
क्या होता है नोटा 
निर्वाचन क्षेत्र में कोई भी उम्मीदवार पसंद नही आने पर इलेक्शन कमीशन ने ईवीएम में NOTA पर वोट करने का मौका दिया है.

वोटिंग के दौरान नोटा का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और बैलेट पेपर, दोनों ही तरह किया जा सकता है. यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि नोटा भले किसी की हार तय नहीं कर सकता, लेकिन इस वोट की गिनती होती है और इसे अमान्य वोट नहीं माना जा सकता. 

साल 2013: 

इसी साल के अक्टूबर महीने में सुब्रमण्यम स्वामी के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इलेक्शन कमीशन से वैरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी (वीवीपैट) का इस्तेमाल करने के लिए कहा था, हालांकि पहले तो चुनाव आयोग ने इस फैसले का विरोध किया लेकिन उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए पेपर ट्रेल बेहद जरूरी है और वोटर्स का विश्वास केवल पेपर ट्रेल को लागू करने से ही जीता जा सकता है. 

उस वक्त सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा था कि ईवीएम के साथ वीवीपैट सिस्टम होने से ही यह पता चलेगा कि हमारी मतदान व्यवस्था कितनी सटीक है. 

साल 2023: 

साल 2023 के मार्च महीने में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्तों का चयन तीन सदस्यों का एक पैनल करेगा और इस पैनल के सदस्यों में एक देश के प्रधानमंत्री, एक विपक्ष के नेता और एक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया शामिल होंगे. हालांकि इसी साल केंद्र सरकार ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए एक और कानून बनाया. जिसके चहत तीन सदस्य में शामिल चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की हटाकर उनकी जगह केंद्र सरकार के कैबिनेट मंत्री को दे दिया गया था.

साल 2024: 

साल 2017 में केंद्र सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना लेकर आई थी. जिसके तहत कोई भी शख्स, कंपनी या कॉरपोरेट समूह अपने मनपसंद राजनीतिक दल को जितनी मर्जी चाहे उतनी चुनावी फंडिंग कर सकता था.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया है. इतना ही नहीं कोर्ट ने फैसले के दौरान राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों के नाम गुप्त रखने को असंवैधानिक भी ठहराया था. 

इलेक्टोरल बॉन्ड कोर्ट के इस फैसले के बाद पहली बार आम जनता को पता चला कि लोकसभा चुनाव के लिए किस राजनीतिक दल को किस कंपनी या व्यक्ति ने किसने कितना पैसे इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए दिए है.     

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