ग्वालियर : स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन …. फंसे 100 करोड़ के निर्माण कार्य
बास एक, फिर भी तकनीकी पेंच में फंसे 100 करोड़ के निर्माण कार्य
स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन द्वारा शहर में किए जा रहे लगभग 100 करोड़ रुपये के निर्माण कार्य अवैध की श्रेणी में आ गए हैं। इसमें मल्टी लेवल कार पार्किंग, इंटर स्टेट बस टर्मिनल, शिक्षा नगर में बन रहे स्कूल सहित अन्य प्रोजेक्ट शामिल हैं।
- बिना अनुमति निर्माण कार्य करने पर स्मार्ट सिटी को नगर निगम ने थमाए नोटिस
- नगर निगम के नाम की जमीनों पर कार्पोरेशन से करा रहे काम, मालिकाना हक के दस्तावेज ही नहीं
स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन द्वारा शहर में किए जा रहे लगभग 100 करोड़ रुपये के निर्माण कार्य अवैध की श्रेणी में आ गए हैं। इसमें मल्टी लेवल कार पार्किंग, इंटर स्टेट बस टर्मिनल, शिक्षा नगर में बन रहे स्कूल सहित अन्य प्रोजेक्ट शामिल हैं। इन सभी प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए नगर निगम से अनुमति नहीं लेने के कारण अवैध निर्माण की श्रेणी के नोटिस जारी किए गए हैं, लेकिन इसके साथ ही एक तकनीकी पेंच भी फंस गया है। स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन द्वारा तैयार किए जाने वाले ज्यादातर प्रोजेक्ट नगर निगम के नाम पर चढ़ी जमीनों पर तैयार किए जा रहे हैं, जबकि निर्माण अनुमति के लिए मालिकाना हक से जुड़े दस्तावेज दिखाना जरूरी है। ऐसे में निर्माण कार्यों की मंजूरी का मामला भी अटक गया है। दिलचस्प बात यह है कि ऐसा तब है जब नगर निगम और स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन के बास एक ही हैं यानी नगर निगम आयुक्त हर्ष सिंह स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन के कार्यकारी संचालक भी हैं।
ये दस्तावेज हैं जरूरी
भवन निर्माण की अनुमति के लिए नगर निगम के आटोमेटिक बिल्डिंग परमिशन अप्रूवल सिस्टम-दो (एबीपीएएस-दो) पोर्टल में आनलाइन आवेदन करना पड़ता है। आवेदन में जमीन के मालिकाना हक से संबंधित दस्तावेज जैसे रजिस्ट्री, आवंटन पत्र के साथ ही संपत्तिकर की रसीद अपलोड करनी पड़ती है। इसके साथ ही प्रस्तावित भवन की ड्राइंग-डिजाइन भी आर्किटेक्ट के माध्यम से अपलोड कराई जाती है। इसके बाद विभिन्न स्तरों पर अप्रूवल मिलने के बाद सर्वर के जरिये अंतिम परमिशन जारी होती है। इसमें सर्वर सिस्टम खुद ही दस्तावेजों को चेक कर आपत्तियां लगाता है, जिनका निराकरण करना होता है। स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन के कार्यों के मामले में शुरुआती दस्तावेज यानी रजिस्ट्री और आवंटन पत्र ही नहीं हैं। ऐसे में अनुमति मिलने पर दिक्कत आएगी ही।
राजस्व वसूली का जरिया हैं नोटिस
विधानसभा चुनाव के समय से ही प्रदेश के नगरीय निकायों के सामने वित्तीय संकट खड़ा हुआ है। ऐसे में जिन छोटी-छोटी बातों को कभी निकायों द्वारा नजरअंदाज किया जाता था, उन सभी पर बारीकी से काम कर राजस्व वसूली के प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में सरकारी एजेंसियों के निर्माण कार्यों की मंजूरी की प्रक्रिया शुरू की गई है, जिससे निगम को भवन निर्माण की मंजूरी के बदले में राजस्व प्राप्त होगा, क्योंकि संबंधित एजेंसी को आवेदन करते समय संपत्तिकर की रसीद भी लगानी होगी। ऐसे में उसे संपत्तिकर भी जमा करना होगा और निर्माण शुल्क भी चुकाना पड़ेगा। इससे निगम के खजाने में राजस्व आएगा।
हमारे नाम पर दस्तावेज नहीं हैं
यह सही है कि स्मार्ट सिटी के कई प्रोजेक्ट को नगर निगम की ओर से नोटिस जारी किए गए हैं। हम निर्माण की मंजूरी की प्रक्रिया करें, लेकिन हमारे नाम पर जमीन के दस्तावेज ही नहीं है। कई प्रोजेक्ट में नगर निगम के नाम ही जमीन है। ऐसे में हमने निगम से कहा है कि वे ही निर्माण मंजूरी के लिए कोई रास्ता निकालें।
सीईओ स्मार्ट सिटी कार्पोरेशन।
आइडी तैयार करा रहे हैं
कई निर्माण एजेंसियों के कार्यों को नोटिस जारी किए गए हैं। एजेंसियां भवन निर्माण की अनुमति के लिए आवेदन भी कर रही हैं। स्मार्ट सिटी के प्रोजेक्टों के मामले में शिक्षा नगर स्कूल के लिए स्कूल शिक्षा विभाग ने आवेदन कर दिया है। मल्टी लेवल कार पार्किंग की मंजूरी के लिए हम आइडी तैयार करा रहे हैं। आइएसबीटी की मंजूरी के लिए भी प्रक्रिया की जा रही है।
आयुक्त नगर निगम।