450 से ज्यादा स्कूलों के छात्र हैंडपंप के पानी के भरोसे
450 से ज्यादा स्कूलों के छात्र हैंडपंप के पानी के भरोसे
– सिर्फ 55 स्कूलों में सीएसआर के तहत लगे आरओ
– जुनेदपुर गांव के सरकारी स्कूल में लाल रंग के पानी आने की वजह से तीन साल से बंद है हैंडपंप
नोएडा/जेवर/दनकौर/दादरी/रबूपुरा। जिले के 450 से ज्यादा परिषदीय स्कूलों के छात्र हैंडपंप और सबमर्सिबल के पानी के भरोसे हैं। इनमें से बड़ी संख्या में ऐसे स्कूल हैं, जहां हैंडपंप से लाल रंग का पानी आ रहा था और अब वह भी बंद हो गया है। मजबूरी में छात्र घर से पानी भरकर ला रहे हैं। अब स्कूलों के निवेदन पर आसपास के ग्रामीणों की ओर से भी पानी उपलब्ध कराया जा रहा है। इस परेशानी को देखते हुए कुछ स्कूलों के शिक्षकों ने मिलकर खुद के लिए तो आरओ सिस्टम लगवा लिया है, ताकि स्वच्छ पानी पी सकें। छात्र पूरी तरह से हैंडपंप के पानी के भरोसे ही हैं।
जिले में 511 परिषदीय स्कूलों में से 55 में निजी कंपनियों ने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) फंड की मदद से आरओ सिस्टम लगवाए गए हैं, ताकि छात्रों को पीने के लिए स्वच्छ पानी मिल सके। अन्य स्कूलों के छात्र हैंडपंप से पानी पीते हैं।
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घरों से पानी लाने को मजबूर
जेवर कस्बे के अलावा चौरोली, नीमका, कानीगढ़ी, झुप्पा, गोपालगढ़, रन्हेरा, जहांगीरपुर, थोरा समेत गांवों में जमीन से निकलने वाले पानी में बढ़ते जल प्रदूषण की वजह से टीडीएस बहुत ज्यादा मिल रहा है। यहां का पानी पीने लायक तक नहीं है। छात्र घर से पानी लेकर आने को मजबूर है। वहीं, प्राथमिक विद्यालय रबूपुरा अनाज मंडी, कन्या प्राथमिक विद्यालय द्वितीय, प्राथमिक विद्यालय फूल बिहार और प्राथमिक विद्यालय अंबेडकर नगर समेत सभी प्राथमिक विद्यालयों में छात्राओं के लिए बिजली कनेक्शन है, लेकिन छात्र पीने के लिए हैंडपंप के पानी के भरोसे हैं।
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नहीं होती कभी पानी की जांच
शिक्षकों का कहना है कि हैंडपंप की स्वच्छता की कोई गारंटी नहीं है। इसका टीडीएस बहुत ज्यादा रहता है। कभी बेसिक शिक्षा विभाग की ओर से पानी की गुणवत्ता की जांच भी नहीं की जाती है।
आखिर कौन करेगा शौचालय की सफाई
शिक्षकों का कहना है कि जब से ग्राम पंचायत की व्यवस्था खत्म हुई है, तब से स्कूल के सामने शौचालय की सफाई को लेकर बड़ी समस्या खड़ी हो गई है। पहले ग्राम पंचायत के सफाई कर्मचारी सफाई के लिए आते थे। अब प्राधिकरण के सफाई कर्मचारी स्कूल में सफाई के लिए नहीं आते हैं। जहां पर शिक्षकों का स्टाफ ज्यादा है, उन्हाेंने पैसे एकत्र करके खुद के स्तर पर सफाई की व्यवस्था की है। जहां पर एक दो शिक्षक हैं, वहां पर सबसे ज्यादा परेशानी है।
सरकार और स्वयं सेवी संस्थाओं की ओर से कई स्कूलों में शौचालय बनवाए गए हैं। लेकिन अधिकतर स्कूलों में स्कूल के समय ताला लटका रहता है। इनका ताला तब खुलता है, जब शिक्षकों को प्रयोग करना होता है। अभिभावकों ने बताया कि छात्रों को स्कूल में बने शौचालय का प्रयोग करने नहीं दिया जाता है। केवल उन्हीं स्कूलों में छात्रों को शौचालय का प्रयोग करने दिया जाता है, जहां पर दो या उससे अधिक शौचालय बने हुए हैं।
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55 प्रतिशत स्कूलों में छात्राओंं के लिए नहीं है अलग यूरिनल
कायाकल्प चरण -5 की रिपोर्ट के अनुसार, जिले के 55 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग से यूरिनल की व्यवस्था नहीं है। मात्र 45 प्रतिशत स्कूलोंं मेंं छात्राओं के लिए अलग से वाशरूम की व्यवस्था है। बाकी स्कूलों में छात्राओं को वाशरूम के लिए भी शौचालय का ही प्रयोग करना पड़ता है। 12 प्रतिशत स्कूल ऐसे हैं, जहां पर छात्राओं के लिए शौचालय नहीं है। वहीं, 34 प्रतिशत स्कूलों में दिव्यांगोंं के लिए शौचालय नहीं मिले। जबकि जिले में 2400 से अधिक दिव्यांग छात्र पढ़ते हैं। हालांकि शिक्षा विभाग का कहना है कि रिपोर्ट के बाद बड़े स्तर पर काम किया गया है।
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करीब 55 स्कूलों में सीएसआर के तहत आरओ लगे हुए हैं। अन्य जगह पर हैंडपप का पानी ही पीने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
मेघराज भाटी, अध्यक्ष, उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ में मेरठ मंडल अध्यक्ष
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सीएसआर के तहत स्कूलों में आरओ लगवाए जा रहे हैं। जल्द ही अन्य स्कूलों में भी लगाए जाएंगे।
बेसिक शिक्षा अधिकारी