सबसे ज्यादा एक्सीडेंट डंपर से ही क्यों ?
सबसे ज्यादा एक्सीडेंट डंपर से ही क्यों
30 सेकेंड में 80 की स्पीड, ओवरलोडिंग और गर्म सड़कों से फेल हो रहे ब्रेक
सोमवार, तारीख 27 मई। सुबह करीब 4 बजे इछावर का रहने वाला आकाश बरेला काम के लिए अपने घर से निकला था। घर से कुछ ही दूरी पर आकाश को पीछे से आ रहे तेज रफ्तार डंपर ने कुचल दिया।
इससे कुछ दिन पहले बड़वानी में पैदल जा रही तीन बहनों को गिट्टी से भरा डंपर कुचलते हुए आगे बढ़ गया। दो बहनों की मौके पर ही मौत हो गई। कमोबेश हर दिन डंपर से एक्सीडेंट की खबरें आ रही हैं।
गर्मी बढ़ते ही ऐसे एक्सीडेंट कुछ ज्यादा ही बढ़ गए हैं। ….. ने समझने की कोशिश की कि आखिर डंपर से क्यों ज्यादा एक्सीडेंट हो रहे हैं? इसके लिए हमने डंपर ड्राइवरों से लेकर मैकेनिकल इंजीनियर और ट्रक ऑपरेटर्स से भी बात की। पढ़िए रिपोर्ट…
चार पॉइंट्स में समझते हैं क्यों होते हैं डंपर से सड़क हादसे…
- कंस्ट्रक्शन साइट के लिए डंपर चलाने ड्राइवरों के मुताबिक हादसों के पीछे मुख्य वजह ओवर स्पीड और ओवर लोडिंग है।
- मैकेनिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि डंपर के ब्रेक शू बहुत ज्यादा घिसने की वजह से ब्रेक सिस्टम ठीक तरह से काम नहीं करता।
- एक्सपर्ट के मुताबिक हर 15 दिन में डंपर की जांच करना जरूरी है। मेंटेनेंस न होना सबसे बड़ी दिक्कत है।
- ट्रक एसोसिएशन के मुताबिक डंपर के ड्राइवर प्रोफेशनल नहीं होते। सड़क पर गाड़ियों की जांच न होने से वे परवाह नहीं करते।
ड्राइवर बोला- डंपर पर हमारा कंट्रोल नहीं, हम सिर्फ गाड़ी चलाते हैं
डंपर ड्राइवर राजू शर्मा रातभर डंपर चलाने के बाद अयोध्या बायपास के करीब सुस्ताने के लिए सड़क किनारे रुका था। हमने उससे बात की और डंपर से होने वाले हादसे की वजह जानी। उसने कहा- यदि हमारा कंट्रोल हो तो एक्सीडेंट नहीं होंगे। न तो हम डंपर में ओवरलोडिंग रोक सकते हैं न ही मेंटेनेंस के लिए खुद फैसला ले सकते हैं। ये मालिकों के डंपर है। हमें तो रोजी रोटी कमानी है।
राजू के मुताबिक हादसों के पीछे मुख्य वजह ओवर स्पीड और ओवरलोडिंग है। वो कहता है डंपर में ड्राइवर के अलावा दूसरा सहयोगी नहीं होता। यदि एक सहयोगी क्लीनर हो तो टर्निंग में ये समझने में मदद मिलती है कि उस तरफ से कोई गाड़ी तो नहीं आ रही है।
लेफ्ट टर्न वक्त इंडिकेटर देते हैं, साइड मिरर में भी देखते हैं, लेकिन कई बार ब्लाइंड स्पॉट आने की वजह से एक्सीडेंट हो जाते हैं। दूसरे ड्राइवरों ने भी नाम न छापने की शर्त पर यही बताया कि ब्रेक न लगने की सबसे बड़ी वजह ओवरलोडिंग है। उन्होंने उल्टा हमसे सवाल किया कि 20 टन के डंपर में 40 टन माल होता है, ब्रेक कैसे लगेंगे?
राजू ने कहा- लोगों को भी डंपर से संभलकर चलना होगा
राजू आगे कहते हैं कि कई बार मेरी आंखों के सामने एक्सीडेंट हुए हैं। इतने सालों में मैंने एक चीज देखी कि लोग एक्सीडेंट होने के बाद सिर्फ डंपर वालों को ही बुरा कहते हैं। हर बार डंपर ड्राइवर गलत नहीं होता।
कई बार बाइक सवार रॉन्ग साइड से ओवरटेक करते हैं। डंपर को कट मारने की कोशिश करते हैं। ड्राइवर का ध्यान सामने की ओर होता है। यदि उसने साइड मिरर में देख भी लिया तो भी उतनी जल्दी वो ब्रेक पर कंट्रोल नहीं कर सकता।
विनोद बोला- नाइट ड्यूटी की वजह से नींद पूरी नहीं हो पाती
राजू के बाद भोपाल के प्रभात चौराह पर विनोद से मुलाकात हुई। वो भी पिछले 20 साल से डंपर चला रहा है। विनोद का कहना है कि डंपर का मालिक 20 टन के गाड़ी में 40 टन सामान भर देता है। गाड़ी तो हमें चलानी पड़ती है और ओवरलोड होने की वजह से ब्रेक नहीं लगते और एक्सीडेंट होता है।
विनोद का ये भी कहना है कि ज्यादातर डंपर रात में ही चलते हैं। दिन में तो शहरों में नो एंट्री होती है। हमें रात 11 से सुबह 5 बजे तक ही चलने का समय होता है। इसी तय समय में हमें माल पहुंचाना होता है। रात-रात भर गाड़ी चलाते हैं तो नींद नहीं हो पाती। यहां कोई शिफ्ट तो होती नहीं कि आज एक ड्राइवर डंपर चलाएगा, कल दूसरा। रोजी-रोटी के लिए रोज चलना है।
एक्सपर्ट बोले- ड्रम, ब्रेक शू निभाते हैं अहम रोल
डंपर ड्राइवर से बात करने के बाद हमने ऑटोमोबाइल फील्ड के एक्सपर्ट्स से बात की। मैनिट के प्रोफेसर डॉ. वीरेंद्रनाथ वर्मा परफॉर्मेंस, एमिशन और कंबशन के एक्सपर्ट हैं। वे बताते हैं कि ज्यादातर डंपर में मैकेनिकल ब्रेक सिस्टम ही यूज होता है। मैकेनिकल ब्रेक सिस्टम में लुब्रिकेशन बहुत खास होता है। यदि लुब्रिकेशन नहीं होगा तो ब्रेक लगाना मुश्किल होता है।
वहीं, ऑटोमोबाइल इंजीनियर प्रोफेसर डॉ. सुधांशु कुमार के मुताबिक, डंपर में ड्रम ब्रेक मैकेनिज्म होता है। उसी में ब्रेक शू होता है और अगर गाड़ी में जरूरत से ज्यादा सामान भर दिया जाता है, तो उस समय ब्रेक शू उतना काम नहीं करता है। जो गाड़ी ब्रेक लगाने के बाद एक मीटर के भीतर रुक जाना चाहिए वह ज्यादा दूरी पर जाकर रुकती है।
वे कहते हैं कि हैवी लोडेड डंपर की वजह से अगर रोड एक्सीडेंट हो रहे हैं तो उसमें टेक्निकल और मैन्युअल दोनों फाल्ट होंगे। वे कहते हैं कि अगर ड्राइवर अनुभवी हो तो उसे किसी कंडक्टर की जरूरत नहीं होती है। वह अकेला भी सारी चीजें ठीक से जज कर सकता है।
अब समझिए की ज्यादा गर्मी में क्यों फेल होते हैं ब्रेक
सड़क जब ज्यादा गर्म होती है तो टायर को एक्सेस हीट यानी अत्यधिक गर्मी का सामना करना पड़ता है। इसी एक्सेस हीट की वजह से ब्रेक स्लिप होने के चांस बढ़ जाते हैं। इस हीट से सामना करने के लिए कंपनियां वेन्टीलेटेड ड्रम या खास पार्ट बनाती है।
हाइड्रोलिक ब्रेक सिस्टम के इस्तेमाल के वक्त एक ग्रुप होता है, जहां ब्रेक पिन फंस जाता है। अगर रखरखाव समय से नहीं किया जा रहा है या हाइड्रोलिक ड्रम लीकेज हो रहा है तो ब्रेक लगाने पर स्लिप हो जाएगा। एक सेकेंड भी अगर ब्रेक स्लिप होता है, तब तक एक्सीडेंट हो जाता है।
एक्सपर्ट बोले- मानवीय भूल की वजह से हो रहे ज्यादातर एक्सीडेंट
सुधांशु कुमार के मुताबिक हर गाड़ी की क्षमता निर्धारित होती है। यदि कोई गाड़ी 2 टन का वजन ले जाने में सक्षम है और उसमें 5 टन सामान लोड होता है तो ब्रेक सिस्टम काम नहीं करता। वे कहते हैं कि काेई भी गाड़ी बनती है तो उसका ब्रेक उसके इनर्शिया (जड़त्व) के हिसाब से बनता है।
जैसे इनर्शिया के तहत ही साइकिल को छोटा और बड़ी गाड़ी को बड़ा ब्रेक लगाता है। इसी के साथ कोई भी गाड़ी या उसकी डिजाइन भारतीय रोड ओर वातावरण के कंडीशन की हिसाब से सटीक तौर पर डिजाइन की जाती है। वे कहते हैं कि इसके बाद भी एक्सीडेंट हो रहा है तो ये मानवीय भूल है। हम मेंटेनेंस और ड्राइविंग के तौर तरीके को उतना तवज्जो नहीं दे रहे हैं