सरकारी नौकरी ही सफलता का पैमाना क्यों है?

सरकारी नौकरी ही सफलता का पैमाना क्यों है?

विश्व प्रसिद्ध उपन्यास हैरी पॉटर की लेखिका जे. के. रॉलिंग सपने देखने पर जोर देती हैं। वो कहती हैं कि कल्पनाशक्ति से हम अपनी दुनिया बदल सकते हैं। बहरहाल, वह आकर्षण के नियम को आधार बनाकर अपनी बात कह रही थीं, लेकिन यहां हम आम भारतीयों की बात करने जा रहे हैं। क्या हम सपने देख रहे हैं? मध्यमवर्गीय लोगों के लिए सपनों की परिभाषा नौकरी से शुरू होकर पेंशन पर ही समाप्त हो जाती है।

बच्चे सरकारी नौकरी या सिविल सर्विस को ही सपना मानकर लक्ष्य बना रहे हैं। इन आंकड़ों पर गौर करें। साल 2022 में रिकॉर्ड 2,25,620 भारतीय अपनी नागरिकता छोड़कर विदेशों में बस गए। औसतन एक लाख भारतीय हर साल भारतीय नागरिकता छोड़कर विदेशों में जाकर बस रहे हैं। तो क्या भारत में उनके सपने पूरे नहीं हो रहे? 2019 से 2021 के बीच 35 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों ने आत्महत्या कर ली। क्या इन बच्चों ने अपने सपनों के आगे हार मान ली?

दरअसल हमारी सपनों की परिभाषा सिर्फ भौतिक चीजों पर सिमटती जा रही है। हमारे समाज में सिर्फ सरकारी नौकरी सफलता का पर्याय है या सिविल सर्विस सबसे बड़ी सफलता है। इससे कम कुछ भी स्वीकार्य नहीं। अगर कोई प्राइवेट नौकरी से अपना गुजर-बसर कर रहा है या उद्यमिता में संघर्ष कर रहा है, तो उसका कोई महत्व नहीं है!

लेकिन अगर सरकारी नौकरी या विदेश का ठप्पा है और साथ-साथ पैसा भी है तो फिर यह सपनों के पूरा होने जैसा है। आखिर सपने का आकाश होता कैसा है? अरबपति बनकर चमकना ही सपना है या सिविल सर्वेंट बनकर, या कुछ और? बस इन्हीं सपनों और सिविल सर्विसेज़ के परिप्रेक्ष्य में कुछ महीनों पहले एक बहस भी छिड़ी कि अगर भारतीय युवा सिविल सेवा की सीढ़ी पर चिपके रहने के बजाय इलॉन मस्क जैसे आंत्रप्रेन्योर बनने का सपना देखते, तो भारत में अरबपतियों की संख्या अधिक होती।

यानी भारत को नौकरशाह से ज्यादा उद्योगपति मिलते जो बेरोजगारी जैसे मुद्दों का हल निकालने में सरकार का सहयोग भी करते। इस तर्क के पीछे थोड़ा और गहराई से जाने की जरूरत है। एक विकासशील देश के रूप में भारत को अनेक अरबपतियों की जरूरत है जो एक उद्यमशीलता की संस्कृति का माहौल बना सकें और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बनाए रखने में भी मदद भी कर सकें।

और इसलिए किसी भारतीय युवा के लिए एक उद्यमी की तरह सोचना और अरबपति बनने का ख्वाब देखना बिलकुल तर्कसंगत है। इसलिए मेरी राय में उद्यमी बनकर सभी के सपनों को पूरा करने का सपना सही है। हालांकि सवाल यह भी है कि क्या उद्यमी बनकर अरबपति बनना ही एकमात्र सपना होना चाहिए या सेवा की भावना से लैस होकर देश सेवा का सपना भी महत्वपूर्ण है?

क्या केवल प्रॉफिट मार्जिन या बैलेंस शीट ही महत्वपूर्ण है या हाशिए पर रहने वाले लोग भी उतने ही मनुष्य हैं? आर्थिक मूल्य, पद का मूल्य, शक्ति का मूल्य ही सबसे बड़ा मूल्य है या जीवन मूल्य की परिधि सबसे बड़ी परिधि है? अगर कोई उद्यमी बनता है या अरबपति तो जरूर बने, लेकिन उसे यह ध्यान देना होगा कि उसकी पूंजी किसी आम आदमी को भयभीत न करे, किसी पर क्रूरता ना हो और उदारता से भरे पूंजीवाद को बढ़ावा मिले।

अमेरिकी दार्शनिक रॉल्स ने न्याय के अपने सिद्धांत के माध्यम से समझाया कि किसी भी उत्पादक समाज में असमानताएं मौजूद रहेंगी बशर्ते कि अमीर या शक्तिशाली, समाज के उन सबसे जरूरतमंद सदस्यों की स्थिति में सुधार करने की चेष्टा करे। धन का मूल्य और प्रोफाइल का मूल्य हम सभी के लिए तभी सार्थक हो सकता है जब यह मानवीय मूल्यों की परिधि के अंदर हो।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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