चुनाव नतीजे बीजेपी को क्या सबक मिला ?
चुनाव 2024: पीएम मोदी और बीजेपी को जनता ने क्या दिया है सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश?
भारत की जनता ने भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता में रहने का जनादेश तो दिया है, मगर साथ ही उसपर लगाम भी लगा दी है. जनता ने भाजपा को सबसे बड़े दल का दर्ज दिया है मगर बहुमत से थोड़ा दूर ही रखा है.
लोकसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. मगर 2014 और 2019 जैसी जीत पार्टी नहीं दोहरा सकी. बीजेपी ने पिछली बार की अपेक्षा 63 सीटें गंवा दी हैं और महज 240 सीटों पर ही संतुष्ट होना पड़ा. हालांकि वोट शेयर में मामूली गिरावट ही देखी गई है.
2019 में बीजेपी का नेशनल वोट शेयर 37.3% था. साल 2024 में यह 36.56% पर पहुंच गया. लेकिन उसकी सीटों की संख्या 303 से घटकर 240 हो गई. वहीं कांग्रेस का वोट शेयर पिछली बार के 19.46% से थोड़ा बढ़कर 21.19% पर पहुंच गया है. मतलब कांग्रेस को इस बार सिर्फ 1.73% ज्यादा जनाधार मिला और 52 से लगभग दोगुनी 99 सीटें जीत ली.
आखिर पीएम मोदी और बीजेपी को जनता ने सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश क्या दिया है. चुनाव नतीजों से बीजेपी को क्या सबक लेना चाहिए. आइए समझते हैं.
पहले जानिए क्या रहे नतीजे
केंद्र में सरकार बनाने के लिए 272 सीटों का बहुमत चाहिए होता है. बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने कुल 293 सीटों पर जीत हासिल की है. एनडीए में बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा सीटें चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी (16) और नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू (12) ने हासिल की है. ये दोनों ही पार्टी एक तरह से किंग मेकर बनकर उभरी हैं. वहीं इंडिया गठबंधन के तमाम घटक दल मिलकर 234 सीट ही जीत सके. ये आंकड़ा बहुमत से 28 सीट कम है.
अब जोड़ तोड़ की राजनीति शुरू हो गई है. इंडिया गठबंधन के तमाम नेता अपनी सरकार बनाने की कोशिश में लगे हैं. खबर है कि इंडिया गठबंधन नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के साथ संपर्क में हैं. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति भवन पहुंचकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. राष्ट्रपति ने इसे स्वीकार कर लिया है और उन्हें कार्यवाहक प्रधानमंत्री बने रहने के लिए कहा है. 8 जून नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं.
क्या ये चुनाव नतीजे बहुत खराब हैं?
एबीपी न्यूज ने राजनीतिक विश्लेषक भुवन भास्कर ने बातचीत की. उन्होंने कहना है कि मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल, उत्तराखंड, दिल्ली, उड़ीसा में बीजेपी ने 90%-100% सीटें मिली हैं. केरल में पहली बार खाता खुल गया. 4 से 5 राज्य ही ऐसे हैं जहां से अप्रत्याक्षित नतीजें आए हैं. जिसमें सबसे बड़ा हिस्सा यूपी का है. इसके अलावा बंगाल और राजस्थान है. इन्हीं तीन राज्यों से करीब 50 सीटों का नुकसान हुआ है. अगर यहां नतीजा अच्छा होता तो बीजेपी अकेले 300 के आसपास पहुंच जाती.
“इसलिए ये नतीजे उतने खराब नहीं है जितना पहली दृष्टि से देखने पर लग रहा है कि जनता ने रिजेक्ट कर दिया, लेकिन असल में ऐसा नहीं है. इंडिया गठबंधन के सभी दलों को मिलाकर अकेले उससे भी ज्यादा सीटें बीजेपी ने जीती है.”
ये चुनाव नतीजे क्या राजनीतिक संदेश देते हैं?
राजनीतिक विश्लेषक भुवन भास्कर ने बताया, चुनाव नतीजे बीजेपी और पीएम मोदी को दो राजनीतिक संदेश देते हैं. एक ये कि नरेंद्र मोदी सरकार ने बहुत ईमानदारी से सबका साथ सबका विकास करने की कोशिश की, उसमें एक बड़ा तबका जो उनकी कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थी थे उन लोगों ने ही साथ नहीं दिया.
“पीएम मोदी ने सबका विकास किया लेकिन सबका साथ नहीं मिला. जो नेता साफ तौर पर बंटवारे की राजनीतिक करते रहे हैं उन्हें चुनाव में ज्यादा फायदा हुआ. इससे ये संदेश निकलता है कि राजनीति विचारधारा पर नहीं चलती है बल्कि अपने वोट बैंक की पहचान करके उसके साथ ही खड़ा होना होगा. उसे आपको ये बताना होगा कि आप उसके लिए है.”
भुवन भास्कर ने आगे कहा, दूसरा संदेश ये निकलता है कि लोकल नेतृत्व यानी सिटिंग सांसदों से लोगों में बहुत नाराजगी थी. लोकल नेता ये मानकर चल रहे थे कि जीतना तो मोदी-योगी के नाम पर है. इसलिए उन लोगों ने अपनी तरफ से ज्यादा मेहनत नहीं की थी. ज्यादातर नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं का ध्यान नहीं रखा था.
“कभी किसी छोटे छोटे काम के लिए भी अगर कार्यकर्ता उन्हें फोन करते थे तो वो नेता कभी काम नहीं आए. इसके अलावा कार्यकर्ताओं पर ध्यान नहीं देना, उनकी बातें नहीं सुनना, ठीक से बात नहीं करना और अंहकार दिखाना… ये सब शिकायतें भी आई हैं. कार्यकर्ता में इससे अविश्वास बना है.”
“यूपी में जाति आधार पर चुनाव में वोट डाले गए हैं. मुसलमानों ने काफी टेक्निकल वोटिंग की. हालांकि टेक्निकल हमेशा ही करते हैं लेकिन इस बार काफी ज्यादा टेक्निकल थी. बसपा ने सबसे ज्यादा मुसलमानों को टिकट दिया, लेकिन बसपा के किसी मुसलमान को जीत नहीं मिली, न ही ज्यादा वोट मिला. इसका मतलब मुसलमानों ने कितना एकजुट होकर इस बार वोटिंग की.”
बीजेपी को अब क्या सुधार करने की जरूरत?
राजनीतिक विश्लेषक भुवन भास्कर ने बताया, मिडिल क्लास ज्यादातर बीजेपी के साथ खड़ा रहता है, मगर देखा जाए तो सबसे ज्यादा नुकसान मिडल क्लास का हुआ है. टैक्स में कोई राहत नहीं देना, बल्कि तरह-तरह के टैक्स लगाना. ऑनलाइन पेमेंट को आप बढ़ावा दे रहे हैं और ऑनलाइन ट्रांजेक्शन पर तरह तरह के टैक्स लगा रहे हैं. माना कि सरकार देश के लिए कार्य करती है. मगर उसे अपने वोट बैंक की भी पहचान करनी चाहिए. जो मिडल क्लास आपके साथ खड़ा है आपको उसका ध्यान रखना चाहिए.
“जैसे नेशन फर्स्ट होता है, वैसे ही जब पार्टी लेवल पर कैडर फर्स्ट होना चाहिए. पार्टी में सैकड़ों नेता हैं जो दूसरी राजनीतिक पार्टियों से आए हैं, उनका पहले सालों तक आपने विरोध किया, फिर उनको पार्टी में शामिल कर लिया. ऐसे में कार्यकर्ताओं का भरोसा टूटता है. कार्यकर्ताओं के जब-जब छोटे काम फंस जाते हैं तो उन्हें लोकल लेवल पर मदद नहीं मिलती है. इस पर पार्टी को ध्यान रखना चाहिए.”
बीजेपी को अकेले दम पर क्यों नहीं मिला बहुमत?
इस पर एबीपी न्यूज ने राजनीतिक जानकार प्रेम कुमार से बातचीत की. उन्होंने बताया, ये जनादेश तानाशाही रवैये के खिलाफ है. विपक्ष के खिलाफ ईडी-सीबीआई-आईटी एजेंसियों का इस्तेमाल करना जनता ने पसंद नहीं किया. ‘राम जिसे लाएं हैं हम उसे लाएंगे’ ये नारे को जनता ने बिल्कुल नकार दिया और भगवान मानने की प्रवृत्ति का विरोध किया.
“हम ये भी मानते हैं कि पूरे देश में समान रूप से प्रतिक्रिया नहीं हुई. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा तानाशाही दिखाई गई. यहां नेताओं को जेल भेजा गया, उन्हें परेशान किया गया. शिवसेना-एनसीपी को तोड़ा गया और आखिरकार उनकी सरकार गिरा दी गई. उस महाराष्ट्र ने जवाब दिया है. दूसरा डबल इंजन की सरकार वाले राज्य यूपी से जवाब मिला है. बाकी जगह मिश्रित प्रतिक्रियाएं रहीं, लेकिन ज्यादातर जगह असंतोष की ध्वनि दिखी.”
“अब जनता ने पूरी तरह गठबंधन सरकार चलाने की ही इजाजत दी है. जो लोग गठबंधन सरकार चलाने के नाम पर सत्ता में आए, फिर उसे दो व्यक्ति, एक पार्टी और एक पार्टी के भीतर दो व्यक्ति की सरकार में बदल दिया. उसे जनता ने नापसंद किया है.”
क्या तीसरी बार नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना मुश्किल है?
राजनीतिक जानकार प्रेम कुमार का मानना है कि सरकारी किसी भी गठबंधन की बने, मगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के रूप में रिपीट नहीं हो पाएंगे. क्योंकि उनके पास अपने ही घटक दलों का विश्वास नहीं है. चंद्रबाबू नायडू कह रहे हैं भारत में परिवर्तन होने जा रहा है. नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव एक ही विमान में सवार होकर साथ-साथ दिल्ली पहुंचते हैं. नीतीश कुमार ने बीजेपी के दूत सम्राट चौधरी से मिलने को मना कर दिया. इससे काफी कुछ संकेत मिलता है.
प्रेम कुमार आगे कहते हैं कि तानाशाही से प्रभावित वर्ग चाहें जनता हो या नेता हो या कोई सहयोगी दल हो, कोई भी नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनते नहीं देखना चाहता है. ऐसे में एनडीए सरकार बनाने के लिए बीजेपी को अपना प्रधानमंत्री चेंज करना होगा या नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू इंडिया गठबंधन में शामिल हो सकता है. मतलब अब जनादेश सबको साथ लेकर चलने का है.